प्रसंगवश
हम सोते-सोते सीखते हैं
हाल ही में नेचर न्यूरोसांइस में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक सोते हुए हम एकदम नई जानकारियां सीख सकते हैं । यह तो हर छात्र का सपना होगा ।
इस्त्राइल के रिहोवाट में स्थित वाइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के अनत अर्जी और उनके साथियों ने सोते वक्त सीखने की क्रिया को समझने के लिए ५५ स्वस्थ प्रतिभागियों पर शोध कार्य किया । सोते हुए प्रतिभागियों को कभी डिओडोरेंट व शैंपू जैसी कोई मनोहर सुगंध और कभी सड़ी मछली व मांस जैसी कोई अप्रिय गंध सुंघाई गई । हर बार गंध के साथ एक विशिष्ट ध्वनि भी सुनाई गई ।
यह पहले से ज्ञात है कि पहले से मौजूद याददाश्त को बढ़ाने में नींद एक प्रमुख भूमिका अदा करती है । और यह भी पता है कि जागृत लोगों में इस तरह का गंध व ध्वनि का जुड़ाव गंध संबंधी व्यवहार को बदल देता है । ऐसे व्यक्ति जब किसी मनोहर सुंगध से संबंधित ध्वनि सुनते हैं तो उनकी सूंघने की क्रिया तेज होती है, लेकिन जब अप्रिय गंध से संबंधित ध्वनि सुनते हैं तब वे उसे हल्के से सूंघते है ।
लेकिन हाल ही के शोध में यह पता चला है कि नींद के दौरान हुआ अनुकूलन जागने के बाद भी बना रहता है । नींद के दौरान व्यक्ति किसी ध्वनि और गंध के बीच जो संबंध जोड़ता है वह उसे जागने के बाद भी याद रहता है । प्रयोग में किया यह गया था कि सोते समय प्रतिभागियों को कोई प्रिय या अप्रिय गंध सुंघाई गई और उसके साथ कोई विशिष्ट ध्वनि भी सुनाई गई । आमतौर पर माना जाता है कि सोते हुए व्यक्ति में घ्राणेंद्री सुप्त् रहती है मगर इस प्रयोग में देखा गया कि प्रिय गंध आने पर प्रतिभागी गहरी सांस लेते थे । इस प्रक्रिया से प्रतिभागी पूरी तरह अनजान थे ।
जागने के बाद जब प्रतिभागियों को वे ध्वनियां सुनाई गई तो उनकी सांसों में वही पैटर्न नजर आया जो प्रिय/अप्रिय गंध की वजह से होता है - सांस का गहरा और उथला होना । मतलब सोते-सोते भी हम ऐसे सह-सम्बन्धों को याद रख पाते हैं । वैसे तो यह प्रक्रिया सारे प्रतिभागियों में दिखी मगर उन लोगों में ज्यादा नजर आई जिन्हें रेपिड आई मूवमेंट (आरईएम) नींद के दौरान यह संबंध बनाना सिखाया गया था ।
हाल ही में नेचर न्यूरोसांइस में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक सोते हुए हम एकदम नई जानकारियां सीख सकते हैं । यह तो हर छात्र का सपना होगा ।
इस्त्राइल के रिहोवाट में स्थित वाइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के अनत अर्जी और उनके साथियों ने सोते वक्त सीखने की क्रिया को समझने के लिए ५५ स्वस्थ प्रतिभागियों पर शोध कार्य किया । सोते हुए प्रतिभागियों को कभी डिओडोरेंट व शैंपू जैसी कोई मनोहर सुगंध और कभी सड़ी मछली व मांस जैसी कोई अप्रिय गंध सुंघाई गई । हर बार गंध के साथ एक विशिष्ट ध्वनि भी सुनाई गई ।
यह पहले से ज्ञात है कि पहले से मौजूद याददाश्त को बढ़ाने में नींद एक प्रमुख भूमिका अदा करती है । और यह भी पता है कि जागृत लोगों में इस तरह का गंध व ध्वनि का जुड़ाव गंध संबंधी व्यवहार को बदल देता है । ऐसे व्यक्ति जब किसी मनोहर सुंगध से संबंधित ध्वनि सुनते हैं तो उनकी सूंघने की क्रिया तेज होती है, लेकिन जब अप्रिय गंध से संबंधित ध्वनि सुनते हैं तब वे उसे हल्के से सूंघते है ।
लेकिन हाल ही के शोध में यह पता चला है कि नींद के दौरान हुआ अनुकूलन जागने के बाद भी बना रहता है । नींद के दौरान व्यक्ति किसी ध्वनि और गंध के बीच जो संबंध जोड़ता है वह उसे जागने के बाद भी याद रहता है । प्रयोग में किया यह गया था कि सोते समय प्रतिभागियों को कोई प्रिय या अप्रिय गंध सुंघाई गई और उसके साथ कोई विशिष्ट ध्वनि भी सुनाई गई । आमतौर पर माना जाता है कि सोते हुए व्यक्ति में घ्राणेंद्री सुप्त् रहती है मगर इस प्रयोग में देखा गया कि प्रिय गंध आने पर प्रतिभागी गहरी सांस लेते थे । इस प्रक्रिया से प्रतिभागी पूरी तरह अनजान थे ।
जागने के बाद जब प्रतिभागियों को वे ध्वनियां सुनाई गई तो उनकी सांसों में वही पैटर्न नजर आया जो प्रिय/अप्रिय गंध की वजह से होता है - सांस का गहरा और उथला होना । मतलब सोते-सोते भी हम ऐसे सह-सम्बन्धों को याद रख पाते हैं । वैसे तो यह प्रक्रिया सारे प्रतिभागियों में दिखी मगर उन लोगों में ज्यादा नजर आई जिन्हें रेपिड आई मूवमेंट (आरईएम) नींद के दौरान यह संबंध बनाना सिखाया गया था ।
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