विज्ञान, हमारे आसपास
मौन की संस्कृतिऔर मोबाइल
मुरलीधर वैष्णव
सदियों से मौन हमारे धर्म और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण संस्कार रहा है । ध्यान और योग की अंर्तयात्रा मौन के पथ पर चलने से ही फलीभूत होती है लेकिन माचिस की डिबियानुमा हर वक्त जौंक की तरह कान से चिपके इस मोबाइल या सेलफोन ने आज हमारे तन मन और दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है ।
विशेष रूप से नयी पीढ़ी और बच्चें को मोबाइल के खतरों से सावधान रहना अत्यावशक है । नि:संदेह विज्ञान के इस लुभावने उपकरण ओर दिन प्रतिदिन नित नयी सुविधाआें से सुसज्जित इसके नये मॉडल बाजार में आ रहे है । लेकिन ये यंत्र एक सिद्धी के रूप में हैं । सिद्धी के लिए यह समझना जरूरी है कि इसका प्रयोग अति आवश्यक होने पर ही होना चाहिए अन्यथा इसका दुरूपयोग या अतिउपयोग हमारे जीवन और जीवन पद्धति के लिए घातक हो सकता है ।
केनबरा के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डा. विनीजी खुर्राना ने इस निष्कर्ष के पुख्ता सबूत एकत्रित किये हैं कि सेलफोन का प्रयोग ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ा देता हे । वैज्ञानिक शोध एवं सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि इसके अधिक एवं लम्बे समय तक प्रयोग से केंसर, रक्तचाप, कान का ट्यूमर, याददाश्त का कमजोर होना, त्वचा रोग एवं यहां तक कि लोग नामर्दगी के भी शिकार हो सकते है । सेलफोन से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों एवं ताप न केवल इसका प्रयोग करने वालों को बल्कि पास बैठे व्यक्ति को भी हानि पहुंचा सकती है । बच्चें का शरीर ओर उनकी कोमल त्वचा इन तरंगों के रेडियेसन से अधिक कुप्रभावित होती है ।
हाल ही में स्पेन १२ एवं १३ वर्ष के कुछ बच्चें को सेलफोन की लत ने मानसिक चिकित्सालय तक पहुंचा दिया । दिन में ६ घंटे से अधिक सेलफोन का प्रयोग करने की लत में पड़े बच्च्े पढ़ाई में पिछड़ने लगे और मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत असामान्य व्यवहार करत पाये गये । उत्तर पूर्व स्पेन के लियेडा स्थिति चाइल्ड एंड यूथ मेंटल हेल्थ सेंटर के निदेशक डाक्टर मेट उजेस के अनुसार १६ साल से कम उम्र के बच्चें को सेलफोन का प्रयोग करने देना उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थय के लिए खतरनाक है ।
सेलफोन का इस्तेमाल करते समय कान से दूरी रखने व दाहिने कान के ऊपर मस्तिष्क का स्मृति भाग होने से अधिकतर बायेंकान की ओर प्रयोग करना उचित है । इसी प्रकार रात में सेलफोन यथासंभव स्वीच ऑफ रखने, सेलफोन का की पेड वाला भाग शरीर के संपर्क में रहने, कार या ट्रेन में इसके इस्तेमाल से बचने से हम इसकी विद्युत चुंबकीय तरंगों के उत्सर्जन को कम कर सकते है । यथासंभव लेंड लाईन से बात करने व सेलफोन से संदेश (एस.एम.एस.) भेजकर काम चलाना अधिक सुरक्षित है । इसी प्रकार सेलफोन खरीदते समय कम से कम एस.ए.आर. (स्पेसिफिक ऑब्जोर्प्सन रेट) वाला ही उपकरण खरीदना ठीक रहता है । वाहन चलाते हुए इसका उपयोग करना दुर्घटना को आमंत्रित करना है । सेलफोन संबंधी उपभोक्ता विवादों की भी भरमार हो गयी है । उपभोक्ता को चाहिये कि स्तरीय कंपनी का ही सेलफोन खरीदें । उसका बिल एवं वारंटी दस्तावेज अवश्य प्राप्त् करें । सेलफोन में शिकायत होने पर उसके सर्विस सेंटर पर सेलफोन देते समय रसीद अवश्य प्राप्त् करें । मोबाइल कंपनी द्वारा सेवा में कमीं रखने पर विशेषत: कंपनी व सर्विस सेंेटर के विरूद्ध संबंघित जिला उपभोक्ता (विवाद प्रतितोष) फोरम में शिकायत पेश कर उचित हर्जाना आदि प्राप्त् किया जा सकता है ।
मोबाइल कंपनियों के बाजारवाद एवं उनके भ्रामक बेहुदे विज्ञापनों ने सेलफोन की लत को बढ़ाकर मोटा लाभ कमाकर खुद का भला जरूर किया है लेकिन आम आदमी और विशेषत: युवा पीढ़ी के दैनिक जीवन पर भारी कुप्रभाव डाल रही है जिसका खामियाजा हमें भविष्य में भुगतना होगा । प्रेमी और प्रेमिका बगीचे में पीठ से पीठ टिकाये बैठे हैं और दोनों के कानों से सेलफोन चिपके हैं । विज्ञापन है लो कर लो बात । प्रश्न यह है कि जब पीठ से पीठ टिकाये बैठे है तब बातें करने के लिए सेलफोन की कहां जरूरत है ? सेलफोन की दरें कम होने या किसी विशेष स्थिति या नि:शुल्क बातें करने वाली सुविधा होने मात्र से क्या उचित और आवश्यक है कि आदमी अधिकांश समय केवल बातें करता रहे ।
सेलफोन पर अनावश्यक बातें और गपशप करने से हमारे तन मन पर पड़ने वाले कुप्रभावों के अलावा बातों में फिजून उर्जा और समय का जो अपव्यय होता है उसका क्या ? हमें क्यों अनावश्यक बातों में अपना समय व उर्जा बरबाद करना चाहिए । बातें कम काम ज्यादा जैसे उपदेश पर हमें गंभीरता से अमल करना ही होगा ताकि हम अपने कर्म क्षैत्र की मौन साधना में सफल हो सकें । आदमी अक्सर बोल कर ही पछताता है, चुप रहकर कभी नहीं । यह भी सत्य है कि बातें आदमी को धोखा दे सकती हैं लेकिन मौन नहीं । प्रसिद्ध विद्वान कार्लाइल के अनुसार मौन प्राय: वाकचातुर्य से अधिक प्रभावी होता है । वेदव्यास ने गणेश जी को महाभारत के लाखों श्लोकों का डिक्टेशन दिया, लेकिन इस बीच गणेश जी एक बार भी नहीं बोले । जो किसान खेतों में अपने गाय, बैल, फसल और पेड़ पौधों की संगति में अधिकतर उनसे मौन संवाद करता है वह अधिक स्वस्थ तनावरहित एवं दीर्घ जीवन जीता हैं ।
एक क्षणाशं में हजारों किलोमीटर दूर बात कर सकने, फोनांे एवं विडियो, आवाज रिकार्डिंग, संगीत, समाचार जानने, बिल भुगतान आदि अनेक सुविधाआें को अपने भीतर समाये सेलफोन नामक यह लघु जिन सदैव आपकी सेवा में उपलब्ध है जिसका केवलआवश्कतानुसार संतुलित एवं सावधानीपूर्वक उपयोग हमारे जीवन को सुगम बना सकता है । लेकिन यदि हम पर हावी होकर हमारे तन मन और जीवन पद्धति को कुप्रभावित करता रहा है तो इसके लिए केवल हम और हमारा विवेक ही दोषी है ।
मौन की संस्कृतिऔर मोबाइल
मुरलीधर वैष्णव
सदियों से मौन हमारे धर्म और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण संस्कार रहा है । ध्यान और योग की अंर्तयात्रा मौन के पथ पर चलने से ही फलीभूत होती है लेकिन माचिस की डिबियानुमा हर वक्त जौंक की तरह कान से चिपके इस मोबाइल या सेलफोन ने आज हमारे तन मन और दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है ।
विशेष रूप से नयी पीढ़ी और बच्चें को मोबाइल के खतरों से सावधान रहना अत्यावशक है । नि:संदेह विज्ञान के इस लुभावने उपकरण ओर दिन प्रतिदिन नित नयी सुविधाआें से सुसज्जित इसके नये मॉडल बाजार में आ रहे है । लेकिन ये यंत्र एक सिद्धी के रूप में हैं । सिद्धी के लिए यह समझना जरूरी है कि इसका प्रयोग अति आवश्यक होने पर ही होना चाहिए अन्यथा इसका दुरूपयोग या अतिउपयोग हमारे जीवन और जीवन पद्धति के लिए घातक हो सकता है ।
केनबरा के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डा. विनीजी खुर्राना ने इस निष्कर्ष के पुख्ता सबूत एकत्रित किये हैं कि सेलफोन का प्रयोग ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ा देता हे । वैज्ञानिक शोध एवं सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि इसके अधिक एवं लम्बे समय तक प्रयोग से केंसर, रक्तचाप, कान का ट्यूमर, याददाश्त का कमजोर होना, त्वचा रोग एवं यहां तक कि लोग नामर्दगी के भी शिकार हो सकते है । सेलफोन से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों एवं ताप न केवल इसका प्रयोग करने वालों को बल्कि पास बैठे व्यक्ति को भी हानि पहुंचा सकती है । बच्चें का शरीर ओर उनकी कोमल त्वचा इन तरंगों के रेडियेसन से अधिक कुप्रभावित होती है ।
हाल ही में स्पेन १२ एवं १३ वर्ष के कुछ बच्चें को सेलफोन की लत ने मानसिक चिकित्सालय तक पहुंचा दिया । दिन में ६ घंटे से अधिक सेलफोन का प्रयोग करने की लत में पड़े बच्च्े पढ़ाई में पिछड़ने लगे और मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत असामान्य व्यवहार करत पाये गये । उत्तर पूर्व स्पेन के लियेडा स्थिति चाइल्ड एंड यूथ मेंटल हेल्थ सेंटर के निदेशक डाक्टर मेट उजेस के अनुसार १६ साल से कम उम्र के बच्चें को सेलफोन का प्रयोग करने देना उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थय के लिए खतरनाक है ।
सेलफोन का इस्तेमाल करते समय कान से दूरी रखने व दाहिने कान के ऊपर मस्तिष्क का स्मृति भाग होने से अधिकतर बायेंकान की ओर प्रयोग करना उचित है । इसी प्रकार रात में सेलफोन यथासंभव स्वीच ऑफ रखने, सेलफोन का की पेड वाला भाग शरीर के संपर्क में रहने, कार या ट्रेन में इसके इस्तेमाल से बचने से हम इसकी विद्युत चुंबकीय तरंगों के उत्सर्जन को कम कर सकते है । यथासंभव लेंड लाईन से बात करने व सेलफोन से संदेश (एस.एम.एस.) भेजकर काम चलाना अधिक सुरक्षित है । इसी प्रकार सेलफोन खरीदते समय कम से कम एस.ए.आर. (स्पेसिफिक ऑब्जोर्प्सन रेट) वाला ही उपकरण खरीदना ठीक रहता है । वाहन चलाते हुए इसका उपयोग करना दुर्घटना को आमंत्रित करना है । सेलफोन संबंधी उपभोक्ता विवादों की भी भरमार हो गयी है । उपभोक्ता को चाहिये कि स्तरीय कंपनी का ही सेलफोन खरीदें । उसका बिल एवं वारंटी दस्तावेज अवश्य प्राप्त् करें । सेलफोन में शिकायत होने पर उसके सर्विस सेंटर पर सेलफोन देते समय रसीद अवश्य प्राप्त् करें । मोबाइल कंपनी द्वारा सेवा में कमीं रखने पर विशेषत: कंपनी व सर्विस सेंेटर के विरूद्ध संबंघित जिला उपभोक्ता (विवाद प्रतितोष) फोरम में शिकायत पेश कर उचित हर्जाना आदि प्राप्त् किया जा सकता है ।
मोबाइल कंपनियों के बाजारवाद एवं उनके भ्रामक बेहुदे विज्ञापनों ने सेलफोन की लत को बढ़ाकर मोटा लाभ कमाकर खुद का भला जरूर किया है लेकिन आम आदमी और विशेषत: युवा पीढ़ी के दैनिक जीवन पर भारी कुप्रभाव डाल रही है जिसका खामियाजा हमें भविष्य में भुगतना होगा । प्रेमी और प्रेमिका बगीचे में पीठ से पीठ टिकाये बैठे हैं और दोनों के कानों से सेलफोन चिपके हैं । विज्ञापन है लो कर लो बात । प्रश्न यह है कि जब पीठ से पीठ टिकाये बैठे है तब बातें करने के लिए सेलफोन की कहां जरूरत है ? सेलफोन की दरें कम होने या किसी विशेष स्थिति या नि:शुल्क बातें करने वाली सुविधा होने मात्र से क्या उचित और आवश्यक है कि आदमी अधिकांश समय केवल बातें करता रहे ।
सेलफोन पर अनावश्यक बातें और गपशप करने से हमारे तन मन पर पड़ने वाले कुप्रभावों के अलावा बातों में फिजून उर्जा और समय का जो अपव्यय होता है उसका क्या ? हमें क्यों अनावश्यक बातों में अपना समय व उर्जा बरबाद करना चाहिए । बातें कम काम ज्यादा जैसे उपदेश पर हमें गंभीरता से अमल करना ही होगा ताकि हम अपने कर्म क्षैत्र की मौन साधना में सफल हो सकें । आदमी अक्सर बोल कर ही पछताता है, चुप रहकर कभी नहीं । यह भी सत्य है कि बातें आदमी को धोखा दे सकती हैं लेकिन मौन नहीं । प्रसिद्ध विद्वान कार्लाइल के अनुसार मौन प्राय: वाकचातुर्य से अधिक प्रभावी होता है । वेदव्यास ने गणेश जी को महाभारत के लाखों श्लोकों का डिक्टेशन दिया, लेकिन इस बीच गणेश जी एक बार भी नहीं बोले । जो किसान खेतों में अपने गाय, बैल, फसल और पेड़ पौधों की संगति में अधिकतर उनसे मौन संवाद करता है वह अधिक स्वस्थ तनावरहित एवं दीर्घ जीवन जीता हैं ।
एक क्षणाशं में हजारों किलोमीटर दूर बात कर सकने, फोनांे एवं विडियो, आवाज रिकार्डिंग, संगीत, समाचार जानने, बिल भुगतान आदि अनेक सुविधाआें को अपने भीतर समाये सेलफोन नामक यह लघु जिन सदैव आपकी सेवा में उपलब्ध है जिसका केवलआवश्कतानुसार संतुलित एवं सावधानीपूर्वक उपयोग हमारे जीवन को सुगम बना सकता है । लेकिन यदि हम पर हावी होकर हमारे तन मन और जीवन पद्धति को कुप्रभावित करता रहा है तो इसके लिए केवल हम और हमारा विवेक ही दोषी है ।
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