जीवन शैली
मूर्ति विसर्जन से प्रदूषित होते जल स्त्रोत
नरेन्द्र देवांगन
आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन अब पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है । हर साल हमारे देश में कई स्थानों पर जोर-शोर से गणेशोत्सव मनाया जाता है और उसके बाद जगह-जगह दुर्गा पूजा का आयोजन होता है । एक अनुमान के मुताबिक हर साल लगभग दस लाख मूर्तियां नदी, तालाबों और झीलों के पानी के हवाले की जाती हैंऔर झीलों के पानी के हवाले की जाती हैंऔर उन पर लगे वस्त्र, आभूषण भी पानी में चले जाते हैं । ज्यादातर मूर्तियां पानी में अघुलनशील प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं और उन्हें विषैले एवं अघुलनशील नॉन बॉयोडिग्रेडेबल रंगों से रंगा जाता है । इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की जैविक ऑक्सीजन मांग तेजी से बढ़ जाती है जो जलचर जीवों के लिए कहर बनता है । चंद साल पहले मुम्बई से वह विचलित करने वाला समाचार मिला था कि मूर्तियों के धूमधाम से विसर्जन के बाद जुहू तट पर लाखों की तादाद में मरी मछलियां पाई गई थी ।
मूर्ति विसर्जन से प्रदूषित होते जल स्त्रोत
नरेन्द्र देवांगन
आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन अब पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है । हर साल हमारे देश में कई स्थानों पर जोर-शोर से गणेशोत्सव मनाया जाता है और उसके बाद जगह-जगह दुर्गा पूजा का आयोजन होता है । एक अनुमान के मुताबिक हर साल लगभग दस लाख मूर्तियां नदी, तालाबों और झीलों के पानी के हवाले की जाती हैंऔर झीलों के पानी के हवाले की जाती हैंऔर उन पर लगे वस्त्र, आभूषण भी पानी में चले जाते हैं । ज्यादातर मूर्तियां पानी में अघुलनशील प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं और उन्हें विषैले एवं अघुलनशील नॉन बॉयोडिग्रेडेबल रंगों से रंगा जाता है । इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की जैविक ऑक्सीजन मांग तेजी से बढ़ जाती है जो जलचर जीवों के लिए कहर बनता है । चंद साल पहले मुम्बई से वह विचलित करने वाला समाचार मिला था कि मूर्तियों के धूमधाम से विसर्जन के बाद जुहू तट पर लाखों की तादाद में मरी मछलियां पाई गई थी ।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिल्ली में यमुना नदी का अध्ययन इस संबंध में आंखेंे खोलने वाला रहा है कि किस तरह नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है । बोर्ड के मुताबिक नदी के पानी में पारा, निकल, जस्ता, लोहा, आर्सेनिक जैसी भारी धातुआें का अनुपात दिनोंदिन बढ़ रहा है । दिल्ली के जिन-जिन इलाकों में मूर्तियां बहाई जाती हैं वहां के पानी के सैंपल्स के अध्ययन में बोर्ड ने पाया कि मूर्तियां बहाने से पानी की चालकता, ठोस पदार्थो की मौजूदगी और जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग बढ़ जाती है और घुलित ऑक्सीजन कम हो जाती है । पांच साल पहले बोर्ड ने अनुमान लगाया था कि हर साल लगभग १८०० बड़ी मूर्तियां दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में बहाई जाती हैं और उसका निष्कर्ष था कि इस कर्मकाण्ड से नदी को अपूरणीय नुकसान हो रहा है और प्रदूषण फैल रहा है ।
सबसे ज्यादा जल प्रदूषण प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों के विसजर्न से होता है । इन मूर्तियों में प्रयुक्त हुए रासायनिक रंगों से भी जल प्रदूषण होता है । पूजा के दौरान उत्पन्न ऐसा कचरा, जिसकी रिसाइक्लिंग नहीं की जा सकती है, उससे भी जल प्रदूषण होता है ।
पिछले कई सालों से यह बात प्रकाश में आई है कि जल प्रदूषण सबसे ज्यादा प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के विसर्जन से होता है । ये सभी मूर्तियां झीलों, नदियों एवं समुद्रों में बहाई जाती है, जिससे जलीय वातावरण में समस्या सामने आती है । प्लास्टर ऑफ पेरिस ऐसा पदार्थ है जो नष्ट नहीं होता है । इससे वातावरण में प्रदूषण की मात्रा के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक है । प्लास्टर ऑफ पेरिस दरअसल कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है । दूसरी ओर, ईको फ्रेडली मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनती हैं, जिन्हें विसर्जित करने पर वे आसानी से पानी में घुल जाती हैं । लेकिन जब इन्हीं मूर्तियों को रासायनिक रंगों से रंगा जाता है तो ये रंग जल प्रदूषण को बढ़ाते हैं ।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में मार्गदर्शिका तैयार की है । जिसके अनुसार मूर्तियों का निर्माण प्राकृतिक पदार्थोसे किया जाना चाहिए । इनमें पा्रकृतिक मिट्टी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । मूर्तियों पर विषैले एवं जैविक रूप से नष्ट न होने वाले रंगों एवं पेंटों का उपयोग प्रतिबंधित है । प्राकृतिक, अविषैले एवं जल में घुलनशील रंगों का उपयोग किया जाना चाहिए । प्रतिमाआें को सुशोभित करने वाले गहने, फूल,वस्त्र एवं अन्य सजावटी वस्तुआें का विसर्जन के पूर्व हटा लेना चाहिए । इनमेंसे फूल आदि जैविक रूप से नष्ट होने वाले पदार्थो की कंपोस्टिंग की जानी चाहिए एवं अन्य सामग्री जैसे प्लास्टिक, थमोकोल आदि का पुनर्चक्रण किया जाना चाहिए । फल, नारियल, वस्त्र आदि को गरीबों में बांट दिया जाना चाहिए जबकि अनुपयोगी सामग्री को लैंडफिल के रूप में उपयोग किया जा सकता है । इस संबंध में व्यापक जन जागरूकता की आवश्यकता है, ताकि लोग पवित्र जल स्त्रोतों को प्रदूषण से बचा सकें ।
जिन स्त्रोतों पर प्रतिमा विसर्जन किया जा रहा है वहां विसर्जन के पूर्व संश्लेषित शीट्स बिछाकर, विसर्जन के पश्चात् शेष बचे हुए पदार्थो को किनारों पर ला कर उनका आवश्यकतानुसार उपयोग या निपटान किया जाना चाहिए ।
स्थानीय निकायों और जिला प्रशासन के सहयोग से नदियों एवं अन्य जल स्त्रोतों में विसर्जन बिन्दुआें को चिन्हांकित किया जाना चाहिए तथा वहां अनावश्यक भीड़ जमा न हो, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए । इन स्त्रोतों के किनारे विसर्जन के दौरान उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को जलाने पर प्रतिबंध होना चाहिए । विसर्जन के ४८ घंटे के भीतर समस्त सामग्री, मलबे आदि को किनारे लाकर उसका उचित निष्पादन किया जाए ।
नदियों, तालाबों या झीलों में प्रतिमा विसर्जन के पूर्व इनके किनारे अस्थाई सीमांकित पोखर बनाए जाएं जिनमें संश्लेषित लाइनिंग बिछाई जाए एवं इनमें प्रतिमाआें का विसर्जन करवाया जाए । इन अस्थाई पोखरों के ऊपरी पानी को आंशिक रूप से उपचारित करने के लिए चूना मिलाया जा सकता है ताकि पानी मेंउपस्थित गंदगी को अवक्षेपित किया जा सके एंव उसकी उदासीनता बनाए रखी जा सके । इस आंशिक उपचार के उपरांत ऊपरी जल को जल स्त्रोतों में बहने दिया जा सकता है तथा मलबे एवं गंदगी को पृथक कर संपूर्ण जल स्त्रोत को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है । इस संबंध में मूर्ति निर्माण से लेकर विसर्जन तक की गतिविधियों में संलग्न लोगों को जागरूक करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना है ताकि हम वांछित लक्ष्य को प्राप्त् कर सकें ।
प्रतिमाआें निर्माण एवं विसर्जन के समय थोड़ी सी सावधानी रखकर अपने पवित्र जल स्त्रोतों को, जो वास्तव में हमारे जीवन का आधार भी है, प्रदूषित होने से बचा सकते हैं । रीति-रिवाजों, मान्याताआें का पालन करें, शास्त्र सम्मत विधि से प्रतिमाआें की स्थापना और पूजा अर्चना करें तथा साथ ही पर्यावरण के प्रति सजगता के साथ समस्त विधान सम्पन्न करें ताकि ये खुबसूरत धरती और इसके संसाधन चिरकाल तक हमें प्राकृतिक और स्वच्छ रूप में उपलब्ध होते रहें । जल अमृत है इसे किसी भी प्रकार से प्रदूषित न होने दें ।
सबसे ज्यादा जल प्रदूषण प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों के विसजर्न से होता है । इन मूर्तियों में प्रयुक्त हुए रासायनिक रंगों से भी जल प्रदूषण होता है । पूजा के दौरान उत्पन्न ऐसा कचरा, जिसकी रिसाइक्लिंग नहीं की जा सकती है, उससे भी जल प्रदूषण होता है ।
पिछले कई सालों से यह बात प्रकाश में आई है कि जल प्रदूषण सबसे ज्यादा प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के विसर्जन से होता है । ये सभी मूर्तियां झीलों, नदियों एवं समुद्रों में बहाई जाती है, जिससे जलीय वातावरण में समस्या सामने आती है । प्लास्टर ऑफ पेरिस ऐसा पदार्थ है जो नष्ट नहीं होता है । इससे वातावरण में प्रदूषण की मात्रा के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक है । प्लास्टर ऑफ पेरिस दरअसल कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है । दूसरी ओर, ईको फ्रेडली मूर्तियां चिकनी मिट्टी से बनती हैं, जिन्हें विसर्जित करने पर वे आसानी से पानी में घुल जाती हैं । लेकिन जब इन्हीं मूर्तियों को रासायनिक रंगों से रंगा जाता है तो ये रंग जल प्रदूषण को बढ़ाते हैं ।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में मार्गदर्शिका तैयार की है । जिसके अनुसार मूर्तियों का निर्माण प्राकृतिक पदार्थोसे किया जाना चाहिए । इनमें पा्रकृतिक मिट्टी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । मूर्तियों पर विषैले एवं जैविक रूप से नष्ट न होने वाले रंगों एवं पेंटों का उपयोग प्रतिबंधित है । प्राकृतिक, अविषैले एवं जल में घुलनशील रंगों का उपयोग किया जाना चाहिए । प्रतिमाआें को सुशोभित करने वाले गहने, फूल,वस्त्र एवं अन्य सजावटी वस्तुआें का विसर्जन के पूर्व हटा लेना चाहिए । इनमेंसे फूल आदि जैविक रूप से नष्ट होने वाले पदार्थो की कंपोस्टिंग की जानी चाहिए एवं अन्य सामग्री जैसे प्लास्टिक, थमोकोल आदि का पुनर्चक्रण किया जाना चाहिए । फल, नारियल, वस्त्र आदि को गरीबों में बांट दिया जाना चाहिए जबकि अनुपयोगी सामग्री को लैंडफिल के रूप में उपयोग किया जा सकता है । इस संबंध में व्यापक जन जागरूकता की आवश्यकता है, ताकि लोग पवित्र जल स्त्रोतों को प्रदूषण से बचा सकें ।
जिन स्त्रोतों पर प्रतिमा विसर्जन किया जा रहा है वहां विसर्जन के पूर्व संश्लेषित शीट्स बिछाकर, विसर्जन के पश्चात् शेष बचे हुए पदार्थो को किनारों पर ला कर उनका आवश्यकतानुसार उपयोग या निपटान किया जाना चाहिए ।
स्थानीय निकायों और जिला प्रशासन के सहयोग से नदियों एवं अन्य जल स्त्रोतों में विसर्जन बिन्दुआें को चिन्हांकित किया जाना चाहिए तथा वहां अनावश्यक भीड़ जमा न हो, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए । इन स्त्रोतों के किनारे विसर्जन के दौरान उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को जलाने पर प्रतिबंध होना चाहिए । विसर्जन के ४८ घंटे के भीतर समस्त सामग्री, मलबे आदि को किनारे लाकर उसका उचित निष्पादन किया जाए ।
नदियों, तालाबों या झीलों में प्रतिमा विसर्जन के पूर्व इनके किनारे अस्थाई सीमांकित पोखर बनाए जाएं जिनमें संश्लेषित लाइनिंग बिछाई जाए एवं इनमें प्रतिमाआें का विसर्जन करवाया जाए । इन अस्थाई पोखरों के ऊपरी पानी को आंशिक रूप से उपचारित करने के लिए चूना मिलाया जा सकता है ताकि पानी मेंउपस्थित गंदगी को अवक्षेपित किया जा सके एंव उसकी उदासीनता बनाए रखी जा सके । इस आंशिक उपचार के उपरांत ऊपरी जल को जल स्त्रोतों में बहने दिया जा सकता है तथा मलबे एवं गंदगी को पृथक कर संपूर्ण जल स्त्रोत को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है । इस संबंध में मूर्ति निर्माण से लेकर विसर्जन तक की गतिविधियों में संलग्न लोगों को जागरूक करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना है ताकि हम वांछित लक्ष्य को प्राप्त् कर सकें ।
प्रतिमाआें निर्माण एवं विसर्जन के समय थोड़ी सी सावधानी रखकर अपने पवित्र जल स्त्रोतों को, जो वास्तव में हमारे जीवन का आधार भी है, प्रदूषित होने से बचा सकते हैं । रीति-रिवाजों, मान्याताआें का पालन करें, शास्त्र सम्मत विधि से प्रतिमाआें की स्थापना और पूजा अर्चना करें तथा साथ ही पर्यावरण के प्रति सजगता के साथ समस्त विधान सम्पन्न करें ताकि ये खुबसूरत धरती और इसके संसाधन चिरकाल तक हमें प्राकृतिक और स्वच्छ रूप में उपलब्ध होते रहें । जल अमृत है इसे किसी भी प्रकार से प्रदूषित न होने दें ।
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