प्रसंगवश
जल संरक्षण, आज की आवश्यकता नंदलाल मिश्रा, दि.वि.वि., नई दिल्ली
भारत सरकार ने साल २०१३ को जल संरक्षण वर्ष घोषित किया है । वैश्विक स्तर पर जल संसाधनों के बढ़ते अनियमित दोहन, प्रदूषण, घटती मात्रा, गुणवत्ता, ग्लोबल वार्मिग और सुखाड़ की आशंका के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र प्रतिवर्ष बाईस मार्च को अंतरराष्ट्रीय जल दिवस के रूप में मनाया जाता है । लेकिन कुछ वैश्विक सम्मेलनों और समझौतों के अतिरिक्त कोई अन्य क्रांतिकारी परिणाम सामने नहींआया है ।
ज्ञात ब्रह्मांड में पृथ्वी ही जीवन से सम्पन्न एकमात्र ग्रह है क्योंकि यहां जल है । धरती के कुल पानी का केवल २.७ फीसद मानव के लिए उपयोगी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमानी और धु्रवीय बर्फ के रूप में जमा है । विश्व में स्वच्छ पानी की मात्रा लगातार गिर रही है, और जैसे-जैसे विश्व जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही है, निकट भविष्य में इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है ।
प्राचीन यूनान के आयोनियन शहर के निवासी, उस समय के दार्शनिक एवं वैज्ञानिक मिलेटस केथेलीज (६३६-५४६ इपू) ने कहा था - यह पानी ही है, जो विभिन्न रूपों में धरती, आकाश, नदियों, पर्वत, देवता और मनुष्य, पशु और पक्षी, घास-पात, पेड़-पौधों और जीव-जन्तुआें से लेकर कीड़े-मकोड़ों तक में मौजूद है । इसलिए पानी पर चिंतन करो । लेकिन हम सिर्फ इसका दोहन करते रहे । हम यह भूल गए कि हमने ये संसाधन अपने पूर्वजों से विरासत की बजाय अपनी भावी पीढ़ियों से ऋण में लिए हैं । नतीजतन, आज पारिस्थितीकीय जलचक्र का संतुलन बिगड़ चुका है । गौरतलब है कि भारत में विश्व का मात्र चार फीसद जल है जबकि संसार की अठारह फीसद आबादी यह बसती है । देश की कई नदियां अब सदानीरा नहीं रही, गंगा जैसी नदियों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है । उत्तरी मैदानी इलाके में भी अब मई के अंत तक ताल-तलैये और नलकूप सुख जाते हैं स्वच्छ पेयजल अब नदारद है । भारत, जिसकी अर्थव्यवस्था आज भी कृषि प्रधान है, में मानसून भी अनियमित हो चला है ।
देश में ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू करनी होगी जिनसे जल संरक्षण को बढ़ावा मिले । मसलन, शहरीकरण और औद्योगीकरण से होने वाले जल प्रदूषण पर नियंत्रण पाना, नदियों का संरक्षण, वनों की कटाई पर रोक लगाकर वृक्षारापेण को बढ़ावा देना, समुद्री जल के उपयोग के लिए वैज्ञानिक शोधों और तकनीक को बढ़ावा देना, जल की बर्बादी रोकने के लिए जन जागरूकता फैलाना आदि । इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी ।
ज्ञात ब्रह्मांड में पृथ्वी ही जीवन से सम्पन्न एकमात्र ग्रह है क्योंकि यहां जल है । धरती के कुल पानी का केवल २.७ फीसद मानव के लिए उपयोगी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमानी और धु्रवीय बर्फ के रूप में जमा है । विश्व में स्वच्छ पानी की मात्रा लगातार गिर रही है, और जैसे-जैसे विश्व जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही है, निकट भविष्य में इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है ।
प्राचीन यूनान के आयोनियन शहर के निवासी, उस समय के दार्शनिक एवं वैज्ञानिक मिलेटस केथेलीज (६३६-५४६ इपू) ने कहा था - यह पानी ही है, जो विभिन्न रूपों में धरती, आकाश, नदियों, पर्वत, देवता और मनुष्य, पशु और पक्षी, घास-पात, पेड़-पौधों और जीव-जन्तुआें से लेकर कीड़े-मकोड़ों तक में मौजूद है । इसलिए पानी पर चिंतन करो । लेकिन हम सिर्फ इसका दोहन करते रहे । हम यह भूल गए कि हमने ये संसाधन अपने पूर्वजों से विरासत की बजाय अपनी भावी पीढ़ियों से ऋण में लिए हैं । नतीजतन, आज पारिस्थितीकीय जलचक्र का संतुलन बिगड़ चुका है । गौरतलब है कि भारत में विश्व का मात्र चार फीसद जल है जबकि संसार की अठारह फीसद आबादी यह बसती है । देश की कई नदियां अब सदानीरा नहीं रही, गंगा जैसी नदियों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है । उत्तरी मैदानी इलाके में भी अब मई के अंत तक ताल-तलैये और नलकूप सुख जाते हैं स्वच्छ पेयजल अब नदारद है । भारत, जिसकी अर्थव्यवस्था आज भी कृषि प्रधान है, में मानसून भी अनियमित हो चला है ।
देश में ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू करनी होगी जिनसे जल संरक्षण को बढ़ावा मिले । मसलन, शहरीकरण और औद्योगीकरण से होने वाले जल प्रदूषण पर नियंत्रण पाना, नदियों का संरक्षण, वनों की कटाई पर रोक लगाकर वृक्षारापेण को बढ़ावा देना, समुद्री जल के उपयोग के लिए वैज्ञानिक शोधों और तकनीक को बढ़ावा देना, जल की बर्बादी रोकने के लिए जन जागरूकता फैलाना आदि । इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी ।
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