बुधवार, 11 दिसंबर 2013

कविता
मेरी धरती माँहै कितनी प्यारी
नर्मदा प्रसाद सिसोदिया

मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।    
हरी-हरी भरी-भरी तेरी क्यारी ।।
आई बसंत महकी-महकी फुलवारी ।
कली-कली खिली-खिली धूप से सुनहरी ।

    जरी गोटे से जड़ी-जड़ी ओढ़ी चुनरी ।
    मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।

श्रृंग शिखर, झरने है सुखकारी ।
आश्रय देती, जीव जन्तु की हितकारी ।
नदियन को कल-कल पानी भरे पनिहारी ।
अभिशापों को सहकर है, तारनहारी ।

    दूर-दूर-दूर सुनाती ममता की लोरी ।
    मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।

सागर से तूफान उठे, गाती स्वर लहरी ।
हिमालय और अरावली वन जाते प्रहरी ।।
प्रदूषित है जल, थल, हवा और हिम गिरी ।
जग की करनी धरती माँ ने निहारी ।

    तेरी छाया में रहते दिवस दुपहरी । 
    मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।

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