कविता
मेरी धरती माँहै कितनी प्यारी
नर्मदा प्रसाद सिसोदिया
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।
हरी-हरी भरी-भरी तेरी क्यारी ।।
आई बसंत महकी-महकी फुलवारी ।
कली-कली खिली-खिली धूप से सुनहरी ।
जरी गोटे से जड़ी-जड़ी ओढ़ी चुनरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
श्रृंग शिखर, झरने है सुखकारी ।
आश्रय देती, जीव जन्तु की हितकारी ।
नदियन को कल-कल पानी भरे पनिहारी ।
अभिशापों को सहकर है, तारनहारी ।
दूर-दूर-दूर सुनाती ममता की लोरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
सागर से तूफान उठे, गाती स्वर लहरी ।
हिमालय और अरावली वन जाते प्रहरी ।।
प्रदूषित है जल, थल, हवा और हिम गिरी ।
जग की करनी धरती माँ ने निहारी ।
तेरी छाया में रहते दिवस दुपहरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
मेरी धरती माँहै कितनी प्यारी
नर्मदा प्रसाद सिसोदिया
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।
हरी-हरी भरी-भरी तेरी क्यारी ।।
आई बसंत महकी-महकी फुलवारी ।
कली-कली खिली-खिली धूप से सुनहरी ।
जरी गोटे से जड़ी-जड़ी ओढ़ी चुनरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
श्रृंग शिखर, झरने है सुखकारी ।
आश्रय देती, जीव जन्तु की हितकारी ।
नदियन को कल-कल पानी भरे पनिहारी ।
अभिशापों को सहकर है, तारनहारी ।
दूर-दूर-दूर सुनाती ममता की लोरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
सागर से तूफान उठे, गाती स्वर लहरी ।
हिमालय और अरावली वन जाते प्रहरी ।।
प्रदूषित है जल, थल, हवा और हिम गिरी ।
जग की करनी धरती माँ ने निहारी ।
तेरी छाया में रहते दिवस दुपहरी ।
मेरी धरती माँ है कितनी प्यारी ।।
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