स्वास्थ्य
कैंसर : कारण एवं निवारण
डॉ. ईश्वरचन्द्र शुक्ल/वीरेन्द्र कुमार
कैंसर एक ऐसी बिमारी है जिसे सुनकर ही मृत्यु का भय सताने लगता है । इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है कि कैसे इससे बचा जा सके तथा क्या उपचार किया जाये । अनुमानत: अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख व्यक्तियों की मृत्यु कैंसर से होती है । तम्बाकू के अधिक सेवन, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव तथा अल्पाहार से भी कैंसर होता है । भारत में २०१० में लगभग पाँच लाख लोगों की मृत्यु कैंसर से हो चुकी है । विश्व में कैंसर से मरने वालों में भारत द्वितीय स्थान पर है । पुरूषों में मुँह (२३%), अमाशय (१३%), फेफड़ों (११%) तथा स्त्रियों में गदर्न (१७%), आमाशय (१४%) एवं स्तन (१०%) कैंसर मुख्य रूप से होता है ।
कैंसर : कारण एवं निवारण
डॉ. ईश्वरचन्द्र शुक्ल/वीरेन्द्र कुमार
कैंसर एक ऐसी बिमारी है जिसे सुनकर ही मृत्यु का भय सताने लगता है । इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है कि कैसे इससे बचा जा सके तथा क्या उपचार किया जाये । अनुमानत: अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख व्यक्तियों की मृत्यु कैंसर से होती है । तम्बाकू के अधिक सेवन, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव तथा अल्पाहार से भी कैंसर होता है । भारत में २०१० में लगभग पाँच लाख लोगों की मृत्यु कैंसर से हो चुकी है । विश्व में कैंसर से मरने वालों में भारत द्वितीय स्थान पर है । पुरूषों में मुँह (२३%), अमाशय (१३%), फेफड़ों (११%) तथा स्त्रियों में गदर्न (१७%), आमाशय (१४%) एवं स्तन (१०%) कैंसर मुख्य रूप से होता है ।
कैंसर में कोशिकाआें का विभाजन अनियंत्रित गति से होता है जिसे मेडिकल भाषा में नई वृद्धि (न्यूओप्लास्म) कहा जाता है । जब साधारण वृद्धि किसी एक स्थान पर सीमित होती है तो उसे अर्बुद कहते हैं जो कि कैंसर कारक नहीं होता । लेकिन जब यह अर्बुद निकटवर्ती कोशिकाआें को प्रभावित करता है तब इसे कैंसर युक्त कहा जाता है । कैंसर का एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलना अपरूपान्तरण (मेटासिस) कहलाता है ।
कैंसर के योगदान मेंदो जीन मुख्य होते हैं जिन्हें आन्कोजीन, तथा सप्रेसर जीन कहा जाता है । आन्कोजीन सामान्य कोशिका विभाजन करते है लेकिन जब अधिकता हो जाती है तो अर्बुद बनता है । इसके विपरीत सप्रेसर जीन कोशिका विभाजन रोकती है या उसकी मृत्यु हो जाती है । इसे एपोटोसिस कहते हैं, यदि यह जीन लुप्त् है या काम नहीं कर रहा है तो आन्कोजीन का प्रभाव कम नहीं होता है तथा कोशिका कैंसर युक्त हो जाती है ।
कैंसर वंशानुगत नहीं होता लेकिन जीन का उत्परिवर्तन व्यतिक्रम पैदा हो जाता है । कैंसर कारक पदार्थ जैसे - उपपरिवर्तक एन-नाइट्रोसो अवशेष जो कि लाल मांस में होते है कैंसर कारक होते हैं । एक्रिल एमाइड जो कि सब्जियों विशेषत: आलू को उच्च् ताप पर भूनने से पैदा होता है कैंसर कारक होता है । एस्पर्जिलस फ्लैक्स नामक फफूँदी जो कि भंडारित अनाज, मूंगफली, मक्खन पर होता है, से एल्फोटोक्सिन पैदा होता है । अप्राकृतिक मिठास पैदा करने वाले पदार्थ जैसे एसपर्टेम मसालेदार तथा धूर्मित भोजन मनुष्यों में कैंसर पैदा करता है । अर्बुद विषाणु जैसे हिपैटायटिस बी, यकृत कैंसर, मानव पैपिलोना विषाणु, जननांग कैंसर, मानव टी-कोशिका ल्युकोमिया-सिम्फोमा विषाणु, ल्यूकोमिया तथा एपस्टिन-बार विषाणु नाक तथा गले का कैंसर पैदा करते हैं ।
कैंसर होनें के अनेकों कारण हो सकते हैं आजकल का खान पान रहन-सहन वातावरण का प्रदूषण, औषधियों एवं कीटनाशकों का उपयोग, पराबैंगनी किरणें आदि सभी कैंसर कारक हैं । लेकिन मुख्यत: रेडियो धर्मिता वाले पदार्थ, रैडान गैस, एक्स-किरणों का विकिरण, रासायनिक पदार्थो के सम्पर्क में रहना या उनका उपयोग करना, एराजीन तथा इण्डोसल्फान कीटनाशक, एसबेस्टस, लेड, मरकरी, कैडमियम, बेन्जीन, निकेल, आर्सेनिक, नाइट्रोसामीन तथा पॉलीक्लोरीनेटेड डाइफेनिल यौगिक, तम्बाकू, धूम्रपान तथा एल्कोहल का सेवन हैं ।
कैंसर ऐसी बीमारी है जिसके लक्षण प्रारंभ में प्रकट नहीं होते अपितु इसके अधिक बढ़ जाने पर ही ज्ञात होता है । लेकिन कुछ केंसर जैसे अर्बुद जो कि शरीर की सतह के पास हो या ऐसी सृजन जो कि स्तन अथवा अण्डकोष मेंहो आसानी से पता चल जाते है । त्वचा कैंसर एक मस्से, किसी विशेष निशान अथवा घाव जो कि ठीक न हो रहा हो द्वारा जाना जा सकता है ।
मुख कैंसर में मुख के अंदर या जिव्हा पर सफेद दाग देखे जा सकते हैं। यदि अर्बुद कोशिका के अंदर है तो उसका पता तब तक नहींलगता जब तक कि अर्बुद बढ़कर शरीर के अन्य अंगों या रक्तवाहिनियों पर दबाव नहीं बनाता । आंत के कैंसर में कोष्ठबद्धता, दस्त होना तथा मल के आकार में परिवर्तन होता है । ब्लैडर या प्रास्टेट कैंसर में ब्लैडर की क्रियाबदल जाती है जैसे बार-बार या रूक-रूक कर पेशाब आना । यदि कैंसर मस्तिष्क में फैल गया है तो चक्कर आना, सरदर्द होना या अनिश्चितता पैदा होती है । फेफड़ें के कैंसर में खांसी आती है तथा सांस छोटी हो जाती है । अग्नाशय कैंसर में तब तक कोई लक्षण नहीं प्रकट होते जब तक निकटवर्ती नाड़ियों पर बने दबाव से दर्द नहीं होता या यकृत के कार्य को बाधित करके पीलिया रोग नहींपैदा हो जाता । इसी प्रकार आंत का अर्बुद कोष्ठबद्धता तथा उल्टी के लक्षण प्रकट करता है । अर्बुद के कारण पेट तथा सीने में दर्द होता है । ल्यूकोमिया या रक्त कैंसर में रक्ताल्पता, थकावट तथा जोड़ों का दर्द होता है । अन्य लक्षणों में शरीर में दुर्बलता आना ज्वर का रहना, ग्रंथियों की सूजन, पसीना तथा थकावट रहना होता है ।
जो चिकित्सक कैंसर का निदान एवं उपचार करते हैं उनको आनकोलोजिस्ट कहा जाता है । कैंसर का निदान एक्स-किरणों, सीटी स्कैन, एम.आर.आई. स्कैन, पी.ई.टी. रेडियोधर्मीस्कैनिंग तथा अल्ट्रासाउण्ड स्कैन द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त एफ.एन.ए.सी. तथा बायोप्सी द्वारा भी कैंसर का निदान किया जाता है । कैंसर उपचार के कई तरीके अपनाये जाते हैं । इनमें से शल्य चिकित्सा, विकिरण विधि, रसायन चिकित्सा, जैव चिकित्सा, हारमोन चिकित्सा आदि मुख्य है । शल्य चिकित्सा में शरीर के उस भाग को निकाल दिया जाता है जिसमें कैंसर प्रारंभ हुआ है । यह चिकित्सा की सर्वोत्तम विधि है । विकिरण समस्थानिक द्वारा कैंसर ग्रस्त कोशिकाआें को इस प्रकार नष्ट किया जाता है कि सामान्य कोशिकांए अप्रभावित रहे इससे अर्बुद सिकुड़ जाता है । इस क्रिया में कैंसर ग्रस्त कोशिकाआें के डी.एन.ए. को पूर्णता मार दिया जाता है । इस विधि में कैंसर कोशिकाएं नष्ट होती हैं साथ ही स्वस्थ्य कोशिकाएं भी नष्ट हो जाती है ।
रसायन चिकित्सा में विकिरण उपचार के पहले या उसी समय प्रति कैंसर औषधियों का प्रयोग किया जाता है । यह चिकित्सा कैंसर के उपचार हेतु अत्यन्त सफल है । दवाइयाँकभी-कभी गोलियों के रूप में ली जाती है लेकिन सामान्यत: इन्जेक्शन के रूप में शिराआें द्वारा दी जाती है । इस विधि में लाभ यह है कि औषधि एक स्थान पर नहीं रहती बल्कि पूरे शरीर में जाती है तथा अर्बुद को सिकोड़ती है जिससे शल्य चिकित्सा सरल हो जाती है । पार्श्व प्रभाव के रूपमें इससे कैंसर कोशिकाआें के अतिरिक्त मुंह, भोजन नली, बोन मेरो, और स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं जिससे उल्टी होना, बालों का गिरना, पेचिस तथा रक्त गणना कम हो जाती है । लेकिन शीघ्र ही स्वस्थ्य कोशिकाआें में सुधार हो जाता है । जैविक उपचार में प्रतिरक्षा तन्त्र द्वारा कैंसर कोशिकाआें को अवरोधित किया जाता है अथवा मार दिया जाता है । मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी को अंत:क्षेपण द्वारा संक्रमति स्थान पर दिया जाता है जिससे सूजन आती है तथा अर्बुद सिकुड़ने लगता है ।
हारमोन उपचार में कैंसर कारक हार्मोन के उत्पादन को उलट दिया जाता है जिससे कैंसर कोशिकाएं अवरोधित होती है या पूर्णत: मर जाती है । कुछ अंगो का जैसे अंडकोष, अधिवृक, पियूषिका जो कि हारमोन पैदा करते है को निकाल दिया जाता है जिससे कैंसर कारक हारमोन का उत्पादन बन्द हो जाता है या नियंत्रित हो जाता है । उदाहरणार्थ हारमोन टेस्टोस्टेरान पौरूष ग्रंथि के कैंसर को बढ़ावा देता है । यदि किसी औषधि द्वारा इस हारमोन उत्पादन को रोक दिया जाय जो कि अण्डकोष से आता है, तो पौरूष ग्रंथि का कैंसर रूक सकता है । लेकिन इसके भी पार्श्व प्रभाव होते हैं। स्त्री हारमोन एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टेरान स्तन कैंसर को बढ़ावा देते हैं । प्राय: इस केंसर को रोकने में एस्ट्रोजेन का स्तर कम किया जाता है कि कैंसर को रोकता है । इसके लिए अधिकतर प्रयोग होने वाली औषधि, टेमोक्सीकेन या फारेस्टोन होती है । जीन उपचार में कैंसर पैदा करने वाले जीनों को हटाकर दूसरे जीनों का प्रत्यारोपण किया जाता है ।
कैंसर एक जानलेवा कष्टकारी बीमारी है जिससे बचने का कोई कारगर उपाय नहीं लेकिन जीवन शैली में परिवर्तन लाने तथा खान पान में संशोधन करके कुछ हद तक कैंसर होने की संभावना को कम किया जा सकता है । लम्बे अध्ययन से यह ज्ञात हो चुका है कि फल तथा सब्जियाँ कैंसर रोकने में सहायक हो सकते हैं । खाद्य पदार्थो के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि स्वास्थ्य कारक भोजन में फल एवं सब्जियों का उचित समावेश किया जाये । जो लोग फल तथा सब्जियाँ नहीं खाते हैं उनको कैंसर होने की संभावना उनकी तुलना में जो फल तथा सब्जियाँ खाते हैं दो गुना हो सकती है ।
एक विषद अध्ययन में निम्नवत सावधानियाँ बरतने पर कैंसर से बचाव किया जाना बताया गया है । राष्ट्रीय कैंसर संस्थान द्वारा यह बताया गया है कि फलों तथा सब्जियों का सेवन दिन में लगभग पाँच बार किया जाय तो कैंसर की संभावना कम होती है । पशुआेंके मांस के स्थान पर मुर्गा, मछली, अखरोट, बादाम आदि फलीदार पदार्थ तथा दूध से बने पदार्थ का अधिक सेवन किया जाये । शराब तथा तम्बाकू का प्रयोग कम से कम किया जाये । अनाजों को जितना संभव हो उतना उनके प्राकृतिक रूप मेंलिया जाय । इसके साथ ही स्तनों का स्वयं निरीक्षण भी करते रहना चाहिए । युवावस्था में शरीर की भार वृद्धि को बचाना चाहिए । राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था ने विषद अध्ययन में पाया कि मोटापा तथा कैंसर में गहन संबंध हैं । यदि शरीर का भार कम कर लिया जाये तो कोलन, स्तन कैंसर, गुर्दा कैंसर तथा गले के कैंसर से रक्षा हो सकती है । स्तन कैंसर से बचे मरीजों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि निदान के उपरांत व्यायाम करने से कैंसर से मृत्यु तथा पुनरावृत्ति में कमी की जा सकती है । इसी प्रकार कोलन कैंसर में भी शारीरिक व्यायाम द्वारा इसके घातक परिणाम तथा पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है ।
अच्छा स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीने के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को इसका ज्ञान होना चाहिए कि कैंसर उपचार के लाभ तथा हानि क्या हो सकते हैं । कैंसर के भय को जीने के उत्साह से जीतना चाहिए । प्रतिदिन नई खोज की जा रही है जिससे कैंसर का उपचार किया जा सके ।
कैंसर के योगदान मेंदो जीन मुख्य होते हैं जिन्हें आन्कोजीन, तथा सप्रेसर जीन कहा जाता है । आन्कोजीन सामान्य कोशिका विभाजन करते है लेकिन जब अधिकता हो जाती है तो अर्बुद बनता है । इसके विपरीत सप्रेसर जीन कोशिका विभाजन रोकती है या उसकी मृत्यु हो जाती है । इसे एपोटोसिस कहते हैं, यदि यह जीन लुप्त् है या काम नहीं कर रहा है तो आन्कोजीन का प्रभाव कम नहीं होता है तथा कोशिका कैंसर युक्त हो जाती है ।
कैंसर वंशानुगत नहीं होता लेकिन जीन का उत्परिवर्तन व्यतिक्रम पैदा हो जाता है । कैंसर कारक पदार्थ जैसे - उपपरिवर्तक एन-नाइट्रोसो अवशेष जो कि लाल मांस में होते है कैंसर कारक होते हैं । एक्रिल एमाइड जो कि सब्जियों विशेषत: आलू को उच्च् ताप पर भूनने से पैदा होता है कैंसर कारक होता है । एस्पर्जिलस फ्लैक्स नामक फफूँदी जो कि भंडारित अनाज, मूंगफली, मक्खन पर होता है, से एल्फोटोक्सिन पैदा होता है । अप्राकृतिक मिठास पैदा करने वाले पदार्थ जैसे एसपर्टेम मसालेदार तथा धूर्मित भोजन मनुष्यों में कैंसर पैदा करता है । अर्बुद विषाणु जैसे हिपैटायटिस बी, यकृत कैंसर, मानव पैपिलोना विषाणु, जननांग कैंसर, मानव टी-कोशिका ल्युकोमिया-सिम्फोमा विषाणु, ल्यूकोमिया तथा एपस्टिन-बार विषाणु नाक तथा गले का कैंसर पैदा करते हैं ।
कैंसर होनें के अनेकों कारण हो सकते हैं आजकल का खान पान रहन-सहन वातावरण का प्रदूषण, औषधियों एवं कीटनाशकों का उपयोग, पराबैंगनी किरणें आदि सभी कैंसर कारक हैं । लेकिन मुख्यत: रेडियो धर्मिता वाले पदार्थ, रैडान गैस, एक्स-किरणों का विकिरण, रासायनिक पदार्थो के सम्पर्क में रहना या उनका उपयोग करना, एराजीन तथा इण्डोसल्फान कीटनाशक, एसबेस्टस, लेड, मरकरी, कैडमियम, बेन्जीन, निकेल, आर्सेनिक, नाइट्रोसामीन तथा पॉलीक्लोरीनेटेड डाइफेनिल यौगिक, तम्बाकू, धूम्रपान तथा एल्कोहल का सेवन हैं ।
कैंसर ऐसी बीमारी है जिसके लक्षण प्रारंभ में प्रकट नहीं होते अपितु इसके अधिक बढ़ जाने पर ही ज्ञात होता है । लेकिन कुछ केंसर जैसे अर्बुद जो कि शरीर की सतह के पास हो या ऐसी सृजन जो कि स्तन अथवा अण्डकोष मेंहो आसानी से पता चल जाते है । त्वचा कैंसर एक मस्से, किसी विशेष निशान अथवा घाव जो कि ठीक न हो रहा हो द्वारा जाना जा सकता है ।
मुख कैंसर में मुख के अंदर या जिव्हा पर सफेद दाग देखे जा सकते हैं। यदि अर्बुद कोशिका के अंदर है तो उसका पता तब तक नहींलगता जब तक कि अर्बुद बढ़कर शरीर के अन्य अंगों या रक्तवाहिनियों पर दबाव नहीं बनाता । आंत के कैंसर में कोष्ठबद्धता, दस्त होना तथा मल के आकार में परिवर्तन होता है । ब्लैडर या प्रास्टेट कैंसर में ब्लैडर की क्रियाबदल जाती है जैसे बार-बार या रूक-रूक कर पेशाब आना । यदि कैंसर मस्तिष्क में फैल गया है तो चक्कर आना, सरदर्द होना या अनिश्चितता पैदा होती है । फेफड़ें के कैंसर में खांसी आती है तथा सांस छोटी हो जाती है । अग्नाशय कैंसर में तब तक कोई लक्षण नहीं प्रकट होते जब तक निकटवर्ती नाड़ियों पर बने दबाव से दर्द नहीं होता या यकृत के कार्य को बाधित करके पीलिया रोग नहींपैदा हो जाता । इसी प्रकार आंत का अर्बुद कोष्ठबद्धता तथा उल्टी के लक्षण प्रकट करता है । अर्बुद के कारण पेट तथा सीने में दर्द होता है । ल्यूकोमिया या रक्त कैंसर में रक्ताल्पता, थकावट तथा जोड़ों का दर्द होता है । अन्य लक्षणों में शरीर में दुर्बलता आना ज्वर का रहना, ग्रंथियों की सूजन, पसीना तथा थकावट रहना होता है ।
जो चिकित्सक कैंसर का निदान एवं उपचार करते हैं उनको आनकोलोजिस्ट कहा जाता है । कैंसर का निदान एक्स-किरणों, सीटी स्कैन, एम.आर.आई. स्कैन, पी.ई.टी. रेडियोधर्मीस्कैनिंग तथा अल्ट्रासाउण्ड स्कैन द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त एफ.एन.ए.सी. तथा बायोप्सी द्वारा भी कैंसर का निदान किया जाता है । कैंसर उपचार के कई तरीके अपनाये जाते हैं । इनमें से शल्य चिकित्सा, विकिरण विधि, रसायन चिकित्सा, जैव चिकित्सा, हारमोन चिकित्सा आदि मुख्य है । शल्य चिकित्सा में शरीर के उस भाग को निकाल दिया जाता है जिसमें कैंसर प्रारंभ हुआ है । यह चिकित्सा की सर्वोत्तम विधि है । विकिरण समस्थानिक द्वारा कैंसर ग्रस्त कोशिकाआें को इस प्रकार नष्ट किया जाता है कि सामान्य कोशिकांए अप्रभावित रहे इससे अर्बुद सिकुड़ जाता है । इस क्रिया में कैंसर ग्रस्त कोशिकाआें के डी.एन.ए. को पूर्णता मार दिया जाता है । इस विधि में कैंसर कोशिकाएं नष्ट होती हैं साथ ही स्वस्थ्य कोशिकाएं भी नष्ट हो जाती है ।
रसायन चिकित्सा में विकिरण उपचार के पहले या उसी समय प्रति कैंसर औषधियों का प्रयोग किया जाता है । यह चिकित्सा कैंसर के उपचार हेतु अत्यन्त सफल है । दवाइयाँकभी-कभी गोलियों के रूप में ली जाती है लेकिन सामान्यत: इन्जेक्शन के रूप में शिराआें द्वारा दी जाती है । इस विधि में लाभ यह है कि औषधि एक स्थान पर नहीं रहती बल्कि पूरे शरीर में जाती है तथा अर्बुद को सिकोड़ती है जिससे शल्य चिकित्सा सरल हो जाती है । पार्श्व प्रभाव के रूपमें इससे कैंसर कोशिकाआें के अतिरिक्त मुंह, भोजन नली, बोन मेरो, और स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं जिससे उल्टी होना, बालों का गिरना, पेचिस तथा रक्त गणना कम हो जाती है । लेकिन शीघ्र ही स्वस्थ्य कोशिकाआें में सुधार हो जाता है । जैविक उपचार में प्रतिरक्षा तन्त्र द्वारा कैंसर कोशिकाआें को अवरोधित किया जाता है अथवा मार दिया जाता है । मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी को अंत:क्षेपण द्वारा संक्रमति स्थान पर दिया जाता है जिससे सूजन आती है तथा अर्बुद सिकुड़ने लगता है ।
हारमोन उपचार में कैंसर कारक हार्मोन के उत्पादन को उलट दिया जाता है जिससे कैंसर कोशिकाएं अवरोधित होती है या पूर्णत: मर जाती है । कुछ अंगो का जैसे अंडकोष, अधिवृक, पियूषिका जो कि हारमोन पैदा करते है को निकाल दिया जाता है जिससे कैंसर कारक हारमोन का उत्पादन बन्द हो जाता है या नियंत्रित हो जाता है । उदाहरणार्थ हारमोन टेस्टोस्टेरान पौरूष ग्रंथि के कैंसर को बढ़ावा देता है । यदि किसी औषधि द्वारा इस हारमोन उत्पादन को रोक दिया जाय जो कि अण्डकोष से आता है, तो पौरूष ग्रंथि का कैंसर रूक सकता है । लेकिन इसके भी पार्श्व प्रभाव होते हैं। स्त्री हारमोन एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टेरान स्तन कैंसर को बढ़ावा देते हैं । प्राय: इस केंसर को रोकने में एस्ट्रोजेन का स्तर कम किया जाता है कि कैंसर को रोकता है । इसके लिए अधिकतर प्रयोग होने वाली औषधि, टेमोक्सीकेन या फारेस्टोन होती है । जीन उपचार में कैंसर पैदा करने वाले जीनों को हटाकर दूसरे जीनों का प्रत्यारोपण किया जाता है ।
कैंसर एक जानलेवा कष्टकारी बीमारी है जिससे बचने का कोई कारगर उपाय नहीं लेकिन जीवन शैली में परिवर्तन लाने तथा खान पान में संशोधन करके कुछ हद तक कैंसर होने की संभावना को कम किया जा सकता है । लम्बे अध्ययन से यह ज्ञात हो चुका है कि फल तथा सब्जियाँ कैंसर रोकने में सहायक हो सकते हैं । खाद्य पदार्थो के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि स्वास्थ्य कारक भोजन में फल एवं सब्जियों का उचित समावेश किया जाये । जो लोग फल तथा सब्जियाँ नहीं खाते हैं उनको कैंसर होने की संभावना उनकी तुलना में जो फल तथा सब्जियाँ खाते हैं दो गुना हो सकती है ।
एक विषद अध्ययन में निम्नवत सावधानियाँ बरतने पर कैंसर से बचाव किया जाना बताया गया है । राष्ट्रीय कैंसर संस्थान द्वारा यह बताया गया है कि फलों तथा सब्जियों का सेवन दिन में लगभग पाँच बार किया जाय तो कैंसर की संभावना कम होती है । पशुआेंके मांस के स्थान पर मुर्गा, मछली, अखरोट, बादाम आदि फलीदार पदार्थ तथा दूध से बने पदार्थ का अधिक सेवन किया जाये । शराब तथा तम्बाकू का प्रयोग कम से कम किया जाये । अनाजों को जितना संभव हो उतना उनके प्राकृतिक रूप मेंलिया जाय । इसके साथ ही स्तनों का स्वयं निरीक्षण भी करते रहना चाहिए । युवावस्था में शरीर की भार वृद्धि को बचाना चाहिए । राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था ने विषद अध्ययन में पाया कि मोटापा तथा कैंसर में गहन संबंध हैं । यदि शरीर का भार कम कर लिया जाये तो कोलन, स्तन कैंसर, गुर्दा कैंसर तथा गले के कैंसर से रक्षा हो सकती है । स्तन कैंसर से बचे मरीजों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि निदान के उपरांत व्यायाम करने से कैंसर से मृत्यु तथा पुनरावृत्ति में कमी की जा सकती है । इसी प्रकार कोलन कैंसर में भी शारीरिक व्यायाम द्वारा इसके घातक परिणाम तथा पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है ।
अच्छा स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीने के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को इसका ज्ञान होना चाहिए कि कैंसर उपचार के लाभ तथा हानि क्या हो सकते हैं । कैंसर के भय को जीने के उत्साह से जीतना चाहिए । प्रतिदिन नई खोज की जा रही है जिससे कैंसर का उपचार किया जा सके ।
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