बुधवार, 11 दिसंबर 2013

पर्यावरण परिक्रमा

चांद पर सब्जियां उगाने की योजना

    अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद पर वर्ष २०१५ तक पौधे और सब्जियां जैसे शलजम और तुलसी उगाने की योजना बना रही  है । इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि पृथ्वी के इस उपग्रह पर मानव रह सकते हैं अथवा नहीं । नासा ने बताया कि इस योजना पर लूनर प्लांट ग्रोथ हैबिटेट टीम ने काम शुरू कर दिया है । इसके लिए कॉफी कैन आकार के कप (स्टील ग्रोथ चेंबर) के इस्तेमाल पर विचार किया जा रहा है । इसे वहां के जलवायु में मौजूद कठोर तत्वों से पौधों की रक्षा करने के अनुरूप डिजाइन किया जाएगा । इन्हें कैमरा, सेंसर और इलेक्ट्रानिक उपकरणों से युक्त किया जाएगा जिससे पौधों की पृथ्वी की तुलना में अच्छी या बुरी दशा का पता चल सकेगा ।
    इस चेंबर को इस तरह विकसित किया जाएगा कि यह चांद पर अंतरिक्षयान में पांच से दस दिनों की अवधि में अंकुरण में सहायक  हो । इस विशेष कप में शलजम और तुलसी के पौधों को उगाने की कोशिश होगी । इन्हें व्यावसायिक अंतरिक्ष यान से भेजा जाएगा ।
    चांद पर पहुंचने के बाद बीजों को अंकुरित होने के लिए इसमेंखास तरीके से पानी डाला जाएगा । सील बंद ग्रोथ चेंबर में पहले से ही इतनी हवा रहेगी जो इसके विकास के लिए पर्याप्त् होगी । जबकि अंकुरण के लिए प्राकृतिक सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल किया जाएगा । इनकी पांच से दस दिनों तक धरती से निगरानी की जाएगी । इन जानकारियों से इन सवालों को जानने में मदद मिल सकेगी कि क्या चांद पर इंसान रह और काम कर सकते है ।


भारतीयों की दिक्कतें दोगुनी हुई


    भारत में लोगों की दुश्वारियां हाल के वर्षो में दोगुनी से भी अधिक हो गई है । जहां हर चौथा व्यक्ति हालिया वर्षो में देश के खराब आर्थिक हालात की मार झेल रहा है । अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी गैलप के ताजा  सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह बात कही गई । सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत मेंदुश्वारिया बढ़ने की वजह से दक्षिण एशिया की दुश्वारियों से भी इजाफा देखने को मिला है । इसमें कहा गया है कि वर्ष २०१० से २०१२ के बीच भारतीयों की औसत पीड़ा में वर्ष २००६ से २००८ के बीच के मुकाबले दोगुना से अधिक इजाफा हुआ है ।
    रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीयों की खुशहाली में आई इस अहम गिरावट की मूल वजह संभवत: देश का निराशाजनक आर्थिक प्रदर्शन है । भारत की विकास दर वर्ष २०१० की पहली तिमाही के ९.४ फीसदी से घटकर वर्ष २०१३ की दूसरी तिमाही में अब ४.४ फीसदी हो गयी है । गैलप ने कहा कि भ्रष्टाचार और लाल फीता शाही रोकने के अलावा श्रमिक ऊर्जा एवं भूमि के मामले में अपने बाजार को उदार बनाने में भारत सरकार की असफलता यह बताती है कि विश्व बैंक क्यों इस देश को व्यापार करने के लिए खराब जगह की सूची में रखे हुए हैं ।
    रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया दुश्वारियों के मामले में दुनिया में टॉप पर है । यहां पर २४ प्रतिशत परेशानियॉ है । जबकि २१ में बाल्कन, मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका शामिल है । गैलप के मुताबिक, दक्षिण एशिया की इस हालत के पीछे भारत के नकारात्मक विकास का योगदान ज्यादा है । नेपाल की स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है । यहां २००६-०८ और २०१०-१२ के बीच १७ पॉईट का इजाफा हुआ । नेपाल की डावांडोल होती राजनीतिक स्थिति के कारण अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है ।

हर साल १३३०० करोड़ की फल-सब्जियां बरबाद
    फल और सब्जियां उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, लेकिन यहां हर साल १३,३०० करोड़ रूपये के उत्पादन बर्बाद हो जाते हैं । देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज और रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट की कमी के चलते ऐसा होता है ।
    अमेरिका की मैन्युफैचरिंग और टेक्नोलॉजी कंपनी इमर्सन की इकाई इमर्सन क्लाइमेट टेक्नोलॉजीज इंडिया की नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है । देश को कोल्ड इंफ्रांस्ट्रक्चर जरूरतों को देखते हुए इमर्सन क्लाइमेट टेक्नोलॉजीज ने चाकन में पहला कोल्ड चेन और डिस्ट्रिब्यूटशन सेंअर बनाया है । इसके जरिए वह इंडस्ट्री के लिए देश में मौजूद टेक्नोलॉजी सौल्यूशंस और सर्विसेज के बारे में अवेयनेस बढ़ाएगी । इमर्सन फूड वेस्टजे एण्ड कोल्ड स्टोरेज रिपोर्ट में स्टीडीज का हवाला देते हुए कहा गया है कि इंडिया में परूट्स, वेजिटेबल्स और ग्रेन्स की बर्बादी सालाना करीब ४४,००० करोड़ रूपये की है । परूट्स एण्ड वेजिटेबल की इस बर्बादी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है । देश के परूट और वेजिटेबल प्रॉडक्शन का करीब १८ फीसदी हिस्सा हर साल बर्बादा हो जाता है । इसकी वैल्यू करीब १३,३०० करोड़ रूपये है । फलों और सब्जियों के खराब होने की बड़ी वजह रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम और हाई  क्वॉलिटी कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज की कमी है ।
    इमर्सन की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जब तक कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार नहीं होगा, तब तक देश के सामने यह प्रॉब्लम बनी रहेगी । रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोल्ड स्टोरेज की संख्या नहीं बढ़ती और क्वॉलिटी में सुधार नहीं होता, तो यह समस्या और बड़ी हो सकती है । अभी देश में ६३०० कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज    है । इनकी इस्टॉल्ड कैपेसिटी ३०११ करोड़ टन है । स्टडीज से पता चला है कि ये कोल्ड स्टोरेज इंडिया की कुल जरूरत का आधा हिस्सा ही पूरा कर पा रहे है । देश में सभी फूड प्रॉडक्ट्स के लिए कोल्ड स्टोरेज कैपेसिटी ६.१ करोड़ टन से ज्यादा होनी चाहिए ।
    रिपोर्ट में कहा गया है कि इस टारगेट तक पहुंचने के लिए २०१५-१६ तक ५५,००० करोड़ रूपये के इनवेस्टमेंट की जरूरत होगी, तभी फलों और सब्जियों की बढ़ती पैदावार को देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज का स्पोर्ट मिल पाएगा । इंडिया में १.२ अरब लोग रहते है । ऐसे में फलों और सब्जियों के बेहतर इस्तेमाल और इन्हेंं बर्बादी से बचाना सबके हित में है ।

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