शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

प्रसंगवश   
भोपाल गैस त्रासदी, इतिहास का काला अध्याय
    ०२ दिसम्बर १९८४ को घटित भोपाल गैस त्रासदी को शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा । भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में २ दिसम्बर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मौत हो गई थी । घोर लापरवाही के कारण यूनियन कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसोसायनाइड गैस का रिसाव हुआ था । मिथाइल आइसोसायनाइड के रिसाव ने न सिर्फ फैक्ट्री के आसपास की आबादी को अपने चपेट में लिया था, बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर-दूर तक निवास करने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था । दो दिन तक फैक्टरी से जहरीली गैसों का रिसाव होता रहा ।  फैक्टरी के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे ।
    मिथाइल आइसोसायनाइड गैस की चपेट में आने से करीब १५ हजार लोगों की मौत हुई थी । पांच लाख से अधिक लोग घायल हुए थे । जहरीली गैस के चपेटे में आने से सैकड़ों लोगों की बाद में मौत हो गई । यही नहीं, आज भी हजारों पीड़ित ऐसे हैं, जो जहरीली गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं । भोपाल में कारखाने के आसपास की भूमि जहरीली हो गई है ।
    इस हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया था । लेकिन इससे भी दर्दनाक था इस मामले में सरकार का रवैया यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन को बचाने की सरकार ने पुरजोर कोशिश की । किसी भी अनहोनी से बचने के लिए उस देश से बाहर जाने का रास्ता दिया गया जिसके बाद से वह कभी भारत के हाथ नहीं लगा । मुआवजे के नाम पर धोखाधड़ी हुई है । यूनियन कार्बाइड कंपनी के साथ सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता में मुआवजे के लिए एक समझौता हुआ था । समझौते में एक तरह से भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के साथ अन्याय हीं नहीं हुआ, बल्कि उनके संघर्ष और भविष्य पर भी नकेल डाली गई थी । दुनिया की सबसे बड़ी औघोगिक त्रासदी और १५ हजार से ज्यादा जाने छीनने वाली व पांच लाख से ज्यादा लोगों को अपने घातक जद में लेने वाली इस नरसंहार घटना की मुआवजा राशि मात्र ७१३ करोड़ रूपये तय की गयी । भारत सरकार की अति रूचि और यूनियन गैस कार्बाइड कारपोरेशन के प्रति अतिरिक्त मोह ने गैस पीड़ितों की संभावनाआें का गला घोंट दिया । बात तो यह है कि इस नरसंहारक घटना में सैकड़ों लोग ऐसे मारे गए थे, जिनके पास न तो कोई रिहायशी प्रमाण थे और न ही नियमित पते का पंजीकरण था । ऐसे गरीब हताहतों के साथ भी न्याय नहीं हुआ और उन्हें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला ।

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