रविवार, 19 जनवरी 2014

पर्यावरण समाचार
भारत के पक्ष में रहा किशनगंगा पर फैसला

    पिछले साल भारत ने जम्मू कश्मीर में किशनगंगा जलविघुत परियोजना को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में जीत लिया जिसके लिए विशेषज्ञों ने खूब मेहनत की । भारत को एक और सफलता मिली जब छह साल की देरी के बाद १९ फरवरी २०१३ को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अंतिम फैसले को अधिसूचित किया गया । इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में देरी के लिए केन्द्रों को आड़े हाथ लिया था ।
    सरकार के मंत्रालयों के बीच गहरे मतभेदों के बावजूद, जल संसाधन मंत्रालय को ५५२०० करोड़ रूपए के आवंटन के साथ त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआइबीपी को जारी रखने के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की मंजूरी मिलने में भी सफलता    मिली । भारत के लिए राहत की बात रही कि हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने जम्मू कश्मीर में बिजली उत्पादन के लिए किशनगंगा नदी से पानी लेने के नई दिल्ली के अधिकार को बरकरार रखते हुए पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया । मध्यस्थता अदालत ने भारत पाकिस्तान के मामले में अपने अंतिम फैसले में यह भी कहा कि भारत हर समय किशनगंगा जलविद्युत परियोजना के नीचे किशनगंगा नीलम नदी में नौ क्यूमेक (क्यूबिक मीटर प्रति सेकण्ड) पानी छोड़ेगा । अदालत ने २० दिसम्बर को अपना अंतिम निर्णय घोषित किया ।

मार्च तक पर्यावरण नियामक गठित करने का आदेश

    सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को पर्यावरण मंजूरी देने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक नियामक गठित करने का निर्देश दिया है । पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को यह काम मार्च महीने तक पूरा कर लेने का कहा गया है । अदालत ने नियामक को गैर जरूरी बताने वाले सरकार के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया । समिति ने राष्ट्रीय वन नीति के सुचारू रूप से अमल के लिए सरकार को कहा है ।

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