रविवार, 19 जनवरी 2014

कविता
हरा रंग
उदय ठाकुर
जब मैंने पूरे मानचित्र को
हरे रंग से पोत दिया
तो देश के मसीहा बौखलाए
पढ़े लिखे भी अंधविश्वासी हो गए
एकता का स्वर उभरा
और मैं अनेकता का प्रतीक बन गया ।
एकता बोली
इतने सुन्दर देश को
एक ही रंग में रंगना
पीठ पर विदेशी हाथ का प्रभाव है ।
मैं सिर पर पहाड़ उठाना नहीं चाहता था
इसलिए मौन धारण किए बैठा रहा
मसीहाआें ने इसे पराजय मान लिया
क्योंकि अनेकता में एकता थी ।
एक दिन मसीहा के घर में हाथी चिघांड़ा
दूसरे मसीहा ने राहत की सांस ली
दूसरे दिन उस मसीहा के घर बाघ घुस आया
पहले ने सुख की साँस ली
हर्ष-विषाद का क्रम चलता रहा
एकता में अनेकता जारी रही ।
एक मसीहा ने आखिर एक दिन
मुझसे पूछ ही लिया
ये जंगली जानवर घरों में
क्यों घुस आते है ?
मैंने कहा
मैनें मानचित्र से हरा रंग धो दिया है इसलिए ।

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