रविवार, 19 जनवरी 2014

सम्पादकीय
देश में प्रदूषण का बढ़ता खतरा

     वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण से निपटने की ठोस रणनीति न होने का ही परिणाम है कि हर वर्ष लाखों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, हजारों लोग काल के शिकार बन रहे है । अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो भविष्य में बड़ी वैश्विक जनसंख्या प्रदूषण की चपेट में होगी ।
    भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं । उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के १८९ शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है । २०१० में आई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता और दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर है । आंकड़ों के अनुसार भारत में २००९ से २०११ के बीच फेफड़े के कैंसर के सबसे अधिक मामले दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता में ही सामने आए हैं । सेंटर फॉर साईस एंड एनवायरमेंट का आंकलन है कि देश में २०२६ तक चौदह लाख लोग किसी ने किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे ।
    भारत समेत दुनिया में हर दिन करोड़ों मोटरवाहन सड़क पर चलते है । इनके धुंए के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं । ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं। कारखानों और विद्युत गृहों को चिमनियों तथा स्वचलित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईधनों का पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ाता है । १९८४ में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से विषैली गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुंह मेंचले गए और हजारों लोग अपंगता का दंश झेल रहे है ।
    वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है । जब भी वर्षा होती है तो वायुमण्डल में मौजूद विषैले तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मिट्टी को प्रदूषित कर देते हैं । अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है । पिछले दिनों देश के ३९ शहरों की १३८ ऐतिहासिक स्मारकों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया । कुछ स्मारकों के निकट तो यह चार गुना से भी अधिक पाया गया । सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आसपास है ।

कोई टिप्पणी नहीं: