रविवार, 19 जनवरी 2014

प्रसंगवश 
पर्यावरण विनाश का संकेत है कोहरा
रोहित कुमार           
    हर साल की तरह इस साल भी राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में कोहरे का प्रकोप शुरू हो चुका है । हर वर्ष ठंड के साथ कोहरे की चादर हमारे जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है । सड़कों पर रेंगते वाहन, ट्रेनों की गति का थमना, उत्तर भारत की तरफ से आने-जाने वाली ट्रेनों का कई-कई घंटों की देरी से चलना और हवाई सेवा का ठप हो जाना तो हर साल का किस्सा है । कोहरे के अप्रत्याशित आक्रमण से सड़क दुर्घटनाआें में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है, पर हमारा शासन प्रशासन लापरवाही बना रहता है । उसके द्वारा हर बार आग लगने पर कुंआ खोदने की कहावत को चरितार्थ किया जाता है ।
    पिछले कुछ वर्षो से लगातार कोहरे का बढ़ना हमारे पारिस्थितिकीय असंतुलन की ओर भी इशारा करता है । कोहरे की मार का प्रभाव उन शहरों में अधिक होता है, जहां हवा में प्रदूषण अधिक है । जाड़ों में निर्माण कार्यो में तेजी, बढ़ते वाहन और अन्य औद्योगिक प्रदूषणों के नमी के संपर्क मेंआने से कोहरा बढ़ता है । वैज्ञानिकों शोधों से पता चला है कि जीवाश्म और जैविक ईधन की खपत बढ़ने से न केवल भारत, बल्कि पूरे ही दक्षिण एशिया में कोहरे का प्रकोप बढ़ा है । धंुध और धुएं के बादल आसमान में छाकर कई-कई दिनों तक धूप को  रोक देते हैं । अभी तो देश में इस बात का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना बाकी है कि कोहरे का लोगों के स्वास्थ्य पर कितना प्रतिकूल असर पड़ता है, खासकर श्वास रोग से पीड़ित लोगों पर । बहरहाल, कोहरा यातायात व्यवस्था को तो पंगु कर ही देता है, सड़कों पर रेंगते वाहन अर्थव्यवस्था को भी क्षति पहुंचाते हैं । इस समस्या को गंभीरता से ही लिया जाना चाहिए ।
    ध्यान इस ओर भी जाना चाहिए कि कश्मीर या अन्य पहाड़ी इलाकों को छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में भी अभी ठंड का प्रकोप नहीं हुआ है, रात में सर्दी अवश्य तेज होती है, पर दिन में बहुत ज्यादा ठंड नहीं पड़ रही है । इसके बाद भी कोहरे का प्रकोप अगर शुरू हो गया है, तो प्रकृति का इशारा एकदम साफ है । कम सर्दी में भी कोहरे का कारण यह है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा के प्रति बिल्कुल भी सतर्क नहीं है । वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है, जब प्रकृतिने पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने का संकेत दिया है । बरसात के मौसम में थोड़ी सी बारिश के बाद ही नदियां उफनने लगती हैं। पानी कहीं कम गिरता है, तो कहीं ज्यादा । इधर, गर्मी के मौसम में भी कभी तापमान में अचानक उछाल आ जाता है तो कभी उसमें गिरावट देखी जाती है । धरती     का तापमान बढ़ता चला रहा है । ये सब पर्यावरण के बिगड़ने के ही संकेत है ।                               

कोई टिप्पणी नहीं: