मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

पर्यावरण परिक्रमा
दुनिया की २० फीसदी प्रजातियां लुप्त् होने के कगार पर
    संसार में जीव-जन्तुआें की लगभग २० प्रतिशत प्रजातियां लुप्त् होने के कगार पर है । पृथ्वी पर इस समय लगभग तीन करोड़ प्रजातियां है । एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है ।
    वैज्ञानिकों को डर है कि यदि इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में प्रतिवर्ष ५० प्रजातियों की दर से इनके विलुप्त् होने का खतरा है । उनका कहना है कि पर्वतीय गोरिल्ला और बंगाल टाइगर की दयनीय स्थिति के बारे में खूब चर्चा हो रही है, परन्तु लाखों अन्य प्रजातियों के भी विलुप्त् होने का खतरा है, जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा । ब्रिटिश मीडिया में जारी रिपोर्टो के अनुसार, वैज्ञानिकों ने २५ हजार से अधिक प्रजातियों का अध्ययन करने के बाद यह बात कही है । अध्ययन में पाया गया कि २५ प्रतिशत स्तनधारी, १३ प्रतिशत पक्षी, २२ प्रतिशत सरीसृप (रेंगकर चलने वाले) और ४१ प्रतिशत उभयचर (जल और जमीन दोनों पर रहने वाले) जीवों के विलुप्त् होने का खतरा है । शार्क, रेंज, स्केट और कुछ अन्य मछलियों की ३३ प्रतिशत प्रजातियों के भी खत्म होने का खतरा है । इंटरनेशल जर्नल ऑफ साईंस के अध्ययन में शामिल प्रोफेसर जोना-थाम बेली के हवाले से जानकारी दी गई है कि लगभग ११ हजार रीढयुक्त प्रजातियों पर विलुप्त् होने का खतरा मंडरा रहा है । बेली का कहना है कि अध्ययन से प्रतीत होता है कि पृथ्वी की तीन करोड़ प्रजातियों में से भविष्य में लगभग ६० लाख प्रजातियों के विलुप्त् होने का खतरा है ।
    वैज्ञानिकों ने पाया कि पिछले कुछ वर्षो में जीवों के संरक्षण के लिए किए गए उपायां से ६४ प्रजातियों को लाभ पहुंचा है । वैसे, जीवों के संरक्षण उपायोंपर बहुत कम पैसा खर्च किया जा रहा है । प्रजातियों के विलुप्त् होने के अभूतपूर्व खतरे को देखते हुए इस दिशा में प्रयास और तेज करना   होगा ।
क्या फिर आएगा हिम युग
    क्या धरती पर मिनी हिम युग आ रहा है ? क्या सूरज को नींद  आ रही है और वह सोने जा रहा है ? वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा हो रहा है और सूरज की गतिविधियों सुस्त हो रही हैं । स्थिति बहुत हद तक १६४५ जैसी है, जब धरती पर मिनी हिम युग आया था और लंदन की थेम्स नदी जम गई थी । वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सोलर ठहराव पृथ्वी के मौसम में बड़ा परिवर्तन ला सकता है । इस बात की भी २० प्रतिशत संभावना है कि इसके चलते पृथ्वी के तापमान में जबरदस्त कमी आएगी ।
    ऑक्सफोर्डशायर की रदरफोर्ड एप्पलटन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों रिचर्ड हैरीसन कहते हैं, सूरज पर होने वाली गतिविधियां अपने उच्च्तम स्तर को छूकर नीचे आ रही है । वह कहते है, मैं ३० साल से सौर विज्ञानी हॅू । मैने इससे पहले ऐसी चीज कभी नहीं देखी । यह सौर घटना हिम युग जैसी सदी ला सकती है । युनीवर्सिटी ऑफ रीडिग के माइक लॉकवुड कहते हैं कि तापमान बेहद कम हो जाने से पृथ्वी की मौसम प्रणाली ध्वस्त हो सकती है ।
    पिछले वर्ष अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चेतावनी दी थी कि सूर्य पर कुछ अवांछित हो सकता है । वैज्ञानिकों के अनुसार २०१४ सोलर मैक्सिमम वर्ष है । यह ११ साल चलने वाले सन स्पॉट साइकिल (सूर्य धब्बों के चक्र) का उच्च्तम स्तर होता है । लेकिन नासा द्वारा ली गई सूर्य की तस्वीरों से साफ है कि सौर गतिविधियों तुलनात्मक तौर पर काफी धीमी है । नासा का कहना है कि सूर्य पर नजर आ रहे धब्बे भी २०११ की तुलना में काफी कम संख्या में दिखाई दे रहे हैं । इसके साथ ही सूर्य से उठने वाली ताकतवर सौर लपटें भी कभी-कभी ही उठ रही है ।
    हालांकि कुछ सौर वैज्ञानियों का मानना है कि नासा सूर्य पर हो रही गतिविधियों को पढ़ने में गलती कर रही है । नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट के सौर विज्ञानी डीन पेनसेल का मानना है कि यह सोलर मैक्सिमम ही है । यह हमारी अपेक्षाआें से अलग इसलिए दिख रहा है, क्योंकि इसके २उच्च्तम स्तर है । इससे पहले १९८९ और २००१ में आए अंतिम २ सोलर मैक्सिमम में भी एक नहीं बल्कि २ उच्च्तम स्तर देखे गए थे । उनका मानना है कि सौर गतिविधियों को चक्र २ साल का होता है । इसमें यह तेज होती है, धीमी होती है और फिर तेज होती     है । इस तरह यह एक मिनी साइकिल बनाती है ।
    माउंडर मिनिमम उस अवधि को कहते है जो १६४५ से शुरू होकर १७१५ तक चली थी । तत्कालीन सौर पर्यवेक्षकों के रिकार्ड के अनुसार इस दौरान सूर्य के धब्बे अत्यन्त कम या दुर्लभ हो गए थे । इसके चलते लंदन की थेम्स नदी जम गई थी । सौर ठहराव की इस अवधि मेंसामान्यत: बर्फ से मुक्त रहने वाली नदियां जम जाती है और कम ऊँचाई के मैदानों में साल भर बर्फ जमी रहती है ।
कम कैलोरी खर्च करने से मानव ज्यादा जीत हैं
    हाल में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि मानव और वानर जाति के प्राणी अन्य स्तनधारियों के मुकाबले रोजाना आधी कैलोरी की खपत करते हैं ।
    वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके कारण मानव और वानरों का जीवन अपेक्षाकृत सुस्त होता है और यही उनके लम्बे जीवन का राज है । मानव, चिम्पाजी, बबून तथा अन्य वानर श्रेणी के जीव अन्य स्तनधारी प्राणियों के मुकाबले आधी कैलोरी की खपत करते हैं ।
    न्यूयार्क के हंटर कॉलेज के मानव विज्ञानी और अध्ययन के प्रमुख लेखक हरमन पोंट्जर ने काह कि इस बात को ध्यान में रखा जाए तो एक अत्यधिक सक्रिय जीवन शैली वाले व्यक्ति को भी अपने आकार के दूसरे स्तनधारी प्राणियों इतनी औसत ऊर्जा कम खर्च करने के लिए रोज मैराथन दौड़ लगाना होगा । उपापचय की इतनी सुस्त प्रक्रिया से ही पता चलता है कि मानव और अन्य वानर जाति के प्राणी क्यों धीरे-धीरे बढ़ते है और क्यों इतना लंबा जीवन जीते हैं । शोध पत्रिका प्रोसिडिग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित शोध आलेख में कहा गया कि परिवार में पलने वाले कुत्ते या अन्य कई ऐसे स्तनधारी जीव हैं, जो कुछ ही महीनों में जवान हो जाते हैं और ढेर सारे बच्च्े पैदा कर लेते हैं तथा अधिक से अधिक १०-२० साल में मर जाते हैं ।    
    आलेख में आगे कहा गया है कि दूसरी ओर मानव तथा वानर जाति के अन्य प्राणियों का बचपन काफी लंबा होता है । वे कम बच्च्े पैदा करते हैं और काफी लम्बा जीवन जीते है ।
भारतीय भाषाआें में अनुवाद की सुविधा देगा इंडो-वर्डनेट
अंग्रेजी से भारतीय भाषाआें में अनुवाद की कठिनाई दूर करने के लिए इंडो-वर्डनेट ट्रांसलेशन टूल  लाया जा रहा है । इसके जरिए १८ भारतीय भाषाआें में अनुवाद किया जा सकेगा । इसे आईआईटी बॉम्बे की टीम विकसित कर रही है ।
    इंग्लिश टू इंडियन लैंग्वेज मशीन ट्रांसलेशन (ईआईएलएमटी) के दूसरे चरण पर काम चल रहा है । इस पूरे प्रोजेक्ट का नाम इंडो-वर्डनेट रखा गया है । इस टूल और सर्च इंजन के जरिए अंग्रेजी से हिन्दी, बांग्ला, मराठी, उड़िया, उर्दू, तमिल, बोडो, गुजराती, असमिया, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी नेपाली, पंजाबी, संस्कृत और तेलुगु में अनुवाद हो सकेगा । इन भाषाआें से अंग्रेजी अथवा इन्हीं में से एक-दूसरे में भी अनुवाद करना सरल होगा । इंडो-वर्डनेट पर्यटन उद्योग, लेखकों और अनुवादकों के लिए खास उपयोगी होगा । भाषा विज्ञान में शोध कर रहे लोगों को भी लाभ मिलेगा ।
    अभी उपलब्ध अनुवाद टूल्स पर्याप्त् नहीं है । इन टूल्स के साथ फीड किए शब्द भारतीय भाषाआें की विविधता और व्याकरण के मुताबिक फिट नहीं बैठते है । लिहाजा पहले अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया जाता है । फिर अन्य किसी भाषा में अनुवाद होता है । कई बार कंटेट का सही अनुवाद भी नहीं हो पाता ।
    भारत की १८ भाषाआें के ४लाख ५६ हजार ७३९ शब्दों को इंडो-वर्डनेट का डिक्शनरी में फीड किया गया है । जिस भाषा का चयन अनुवाद के लिए किया जाएगा, की-बोर्ड भी खुद ही उस भाष में सिलेक्ट हो जाएगा । इस टूल के जरिए मणिपुरी बोलने वाला पर्यटक तेलुगु के शब्दों को आसानी से समझ सकता है । लीगल फील्ड में सक्रिय होने के बाद सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों को सभी भारतीय भाषाआें में अनुवाद के जरिए आसानी से पढ़ा-समझा जा सकेगा ।
    आईआईटी बॉम्बे से पहले ही द्रविड़ वर्डनेट का काम पूरा हो चुका है । प्रो. पुष्पक भट्टाचार्य और उनकी टीम ने इस काम को पूरा करने के बाद इंडो-वर्डनेट का काम शुरू किया था । द्रविड वर्डनेट में कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगु भाषाआें के बाद दो और भाषाआें    उर्दू व मराठी भाषा को जोड़ा गया  था ।

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