मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

कविता
कविता और पेड़
डॉ. किशोर काबरा

तुमने खुब कविताएँ लिखी,
अच्छा किया ।
बहुत पुस्तकें छपवाई
यह भी अच्छा किया,
अब यह बताओ कि तुमने कितने पेड़ लगाए ?
क्योंकि
तुम्हारी एक पुस्तक तब छपी होगी,
जब सौ पेड़ कटे होंगे,
जब सौ पेड़ कटे होंगे
तब कितनी नदियाँ सूखी होगी ?
कितने पर्वत मिट होंगे,
कितने ग्लेशियर हटे होंगे ?
तुम कविता नहीं लिख रहे हो,
पर्यावरण का असन्तुलन बढ़ा रहे हो
जंगलों की छाती पर रेगिस्तान चढ़ा रहे हो ।
तुम्हें पीढ़ियां माफ कर दे, इतिहास क्षमा कर दे
पर ये पेड़ तुम्हें नहीं बख्शेगे ।
कविता के बदले सम्मान और पुरस्कार चाहते हो
तो पेड़ो का शाप भी तुम्हें भोगना पड़ेगा ।
और अब भी नहीं रूके
तो वह शाप तुम्हें चौगुना पड़ेगा ।
अब सब पक्षी पेड़ों का मातम मनाऍगे,
कोई एक शब्द भी नहीं चुगेगा ।
और-तो-और,
मरने के बाद तुम्हारी कब्र पर
एक तिनका भी नहीं उगेगा ।

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