मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

विज्ञान हमारे आसपास
क्या गर्भ में पल रहा बच्च सीख सकता है ?
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

    क्या मां की कोख में पल रहा बच्च सीख सकता है ? इस बात को लोक कथाआें और दंत कथाआें में ही माना जाता रहा है कि बच्च्े अपनी मां की कोख में सीख सकते हैं । इसी विश्वास के चलते उम्मीदी मांएं, उनके परिवार और जन-मन-जन्म से पहले ही बच्च्े के लिए लोरियां और मीठे-मीठे गीत गाते हैं । लम्बे समय से चले आ रहे इस विश्वास को अब फिनलैण्ड में किए गए एक अध्ययन से थोड़ा समर्थन मिला है । पीएनएस के प्रकाशित इस अध्ययन का शीर्षक है लर्निग-इंस्टीट्यूट न्यूरल प्लास्टिसिटी ऑफ स्पीच प्रोसेसिंग बीफोर बर्थ । मतलब है कि जन्म से पहले वाणी की प्रक्रिया में सीखने द्वारा प्रेरित लचीलापन । अध्ययन का निष्कर्ष है कि जब किसी भ्रूण का संपर्क वाणी से होता है तो उसका मस्तिष्क प्रतिक्रिया देता है, उसे रिकार्ड करता है और कुछ शब्दों को याद रखता है । 
     पहला सवला तो यह है कि आप ऐसा प्रयोग कैसे करेंगे और इतने ठोस निष्कर्षो तक कैसे पहुंचेगें ? गौरतलब है कि भू्रणावस्था में शिशु का मस्तिष्क क्रमिक रूप से बढ़ता है और काफी तेजी से बढ़ता है । जब मस्तिष्क का विकास होता है तो तंत्रिकाआें के बीच लगातार नए-नए कनेक्शन्स स्थापित होते हैं । इन कनेक्शन्स को सायनेप्स कहते हैं ।  ऐसे कनेक्शन्स बनने से पेचीदा सूचनाआें को पहचानने, उनका विश्लेषण करने और रिकॉर्ड करने में मदद मिलती है । दूसरे शब्दों में, भू्रूणावस्था में शिशु का सिर्फ शरीर ही नहीं मस्तिष्क भी विकास करता है ।
    हमारी पांच संवेदनाआें - दृष्टि, स्पर्श, गंध, स्वाद और ध्वनि- में से ध्वनि एक ऐसा उद्दीपन है जो प्राय: कोख के बाहर से आता है । बाहर की गंध तो गर्भ में नहीं पहुंच सकती क्योंकि इसके अणु सारी बाधाआें को पार करके भ्रूण की नाक तक नहीं पहुंच सकते । जहां तक आखों का सवाल है, तो उनका अभी विकास हो ही रहा है अैर वैसे भी भ्रूण गर्भ  के अंधकार में है । स्पर्श अवश्य महूसूस हो सकता है । यदि मां अथवा अन्य लोग मां के पेट को सहलाएं, तो गर्भ में पलता शिशु इसे अवश्य महसूस करता है । शायद उसे अच्छा भी लगता होगा । मगर यदि यही स्पर्श झटके के रूप में हो, तो परेशान कर सकता है और खतरनाक भी हो सकता है । और यदि गर्भस्थ शिशु आवाज निकाले भी तो बाहर बैठा शोधकर्ता मात्र यह रिकार्ड कर सकता है कि गर्भ में से कुछ कंपन किनल रहे हैं । इन कंपनों का कोई अर्थ निकालना टेढ़ी खीर साबित होगा ।
     मगर आप बाहर से ध्वनि पैदा कर सकते हैं और यह जांच कर सकते हैं कि क्या गर्भस्थ शिशु इस पर ध्यान देता है  । कहने का मतलब यह है कि भ्रूण की श्रवणेंदी के साथ प्रयोग करना संभव है । फिनलैण्ड के समूह ने इस काम के लिए १७ उम्मीदी मांआें को शामिल किया । इन्हें हर सप्तह पांच से सात बार तीन शब्दों वाली ध्वनि (ींर-ींर-ींर) सुनाई जाती । हर बार यह ध्वनि ४ मिनट के लिए सुनाई जाती थी और इतनी जोर से सुनाई जाती थी कि यह गर्भ की दीवार को पार करके भ्रूण तक पहुंच सके । अलबत्ता, ध्वनि इतनी जोरदार भी नहीं होती थी कि भ्रूण को कोई नुकसान  पहुंचे ।
    इसके बाद उन्होनें यही प्रयोग जन्म के पांच दिन बाद दोहराया । वही ींर-ींर-ींर ध्वनि बजाई गई । मगर बीच में एकाध बार जानबूझकर बीच के शब्द का सुर बदल दिया गया (कहें तो ध्वनि को ींर-ढअ-ींर कर दिया गया) । या फिर कोई और बेमेल ध्वनि जोड़ दी जाती     थी । इन शिशुआें की खोपड़ी पर इलेक्ट्रोड लगाए गए थे ताकि लगातार उनक इलेक्ट्रो-एनसिफेलोग्राम (ईईजी) रिकॉर्ड होते रहें ।
    ईईजी से यह स्पष्ट हुआ कि जब भी जन्म-पूर्व वाली ध्वनि (ींर-ींर-ींर) बजाई जाती तो शिशु के मस्तिष्क में इसे दर्ज किया जाता था मगर जब बेमेल ध्वनि ींर-ढअ-ींर बजाई जाती तो प्रतिक्रिया अविलंब होती थी । यानी शिशु का मस्तिष्क इस बात को दर्ज करता था कि कुछ गड़बड़ है, मानो कह रहा हो, यह तो मेरे शब्द भण्डार से बाहर की चीज हैं ।
    तुलना के लिए यही प्रयोग कुछ ऐसे बच्चें के साथ भी किया गया जिन्हें जन्म से पहले ींर-ींर-ींर जैसी कोई ध्वनि नहीं सुनाई गई थी । इन शिशुआें ने ींर-ढअ-ींर जैसी बेमेल ध्वनि पर ऐसी कोई प्रतिक्रियापर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । इस प्रयोग से पता चलता है कि शिशु गर्भ में सुनी हुई शब्द ध्वनियों को सीख सकते हैं और जन्म से पूर्व सुने गए    शब्दों को जन्म के बाद भी याद रख सकते हैं ।        
    तथ्य यह है कि मानव भ्रूण में श्रवण शक्ति का विकास गर्भ के २७वें सप्तह में शुरू होता है । इसका मतलब यह होगा कि यदि इससे पहले गर्भस्थ शिशु का संपर्क ध्वनयिों से हो, तो इन्हें  दर्ज नहीं किया जाएगा । यह भी गौरतलब है कि शोधकर्ताआें ने निचले सुर की आवाजों का उपयोग किया था, ऊँचे सुर की नही । निचले सुर वाली आवाजें पदार्थो में से होकर बेहतर गुजरती हैं । जंगलों में हाथी और समुद्रों में व्हेल्स ऐसी ही निचले सुर वाली ध्वनियों का उपयोग संप्रेषण में करते  हैं ।
    एक सवाल यह है कि ऐसी   जन्म पूर्व स्मृतियां कितनी देर तक बरकरार रहेगी । इस दिशा में प्रयोग होंेगे तो कुछ रोचक परिणाम मिलने की उम्मीद की जा सकती है । और एक सवाल यह भी है कि क्या गर्भ में इस तरह के प्रशिक्षण से उन समस्याआें से छुटकारा पाया जा सकता है जो भाषा अर्जन में बाधा पैदा करती है (जैसे डिसलेक्सिया) । फिनलैण्ड के समूह को लगता है कि गर्भावस्था के दौरान सुनाए गए शब्द और गीत मददगार हो सकते हैं ।
    सुधी पाठकों के मन में यूनानी मायथॉलॉजी या महाभारत में अभिमन्यु का किस्सा तो कौंधा ही होगा । कहा जाता है कि अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह तोड़ने का तरीका बता रहे थे । अभिमन्यु ने गर्भ में यह वार्तालाप सुन लिया था मगर सुभद्रा बीच में सो गई और अभिमन्यु अधूरी बात ही सुन पाया । परिणाम यह हुआ कि १६ साल बाद महाभारत युद्ध के दौरान अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस तो गया मगर परिणाम घातक रहे क्योंकि चक्रव्यूह को तोड़ना उसे नहीं आता था । सवाल यह है कि क्या जन्म-पूर्व सुने गए शब्द १६ साल तक याद रहते हैं ।

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