गुरुवार, 10 जुलाई 2014

वन महोत्सव के अवसर पर विशेष
हरियाली और रास्ता
गिरीश त्रिवेदी

    मन में विचार आया चलो घूम आते है । तो हम टहलने के लिये किस तरफ जाएंगे । क्या हम कारखानों की तरफ जाएंगे या कांक्रींट की अट्टालिकाआें के चक्कर लगाएंगे । नहीं, हम जाते हैं प्रकृति की तरफ । जिधर हरियाली होगी उधर जाएंगे, जंगल हमें भायेंगे, घने वृक्षों की जिधर प्रचुरता होगी उधर जाएंगे । हम कुंज, उपवन, बाग-बगिचों की तरफ  जाएंगे । ऐसा क्यों है ?
    मनुष्य प्रकृति का अंग है अत: प्रकृति के पास जाकर उसके मन को शांति मिलती है । प्रकृति से जितना हम दूर रहेंगे बेचैनी बढ़ेगी, थकान बढ़ेगी । प्रकृति का संग जितना ज्यादा छूटेगा हम विकृत होते जायेंगे, हम तनावग्रस्त हो जाएंगे, झूंझलाहट बढेगी और अंतत: हम शारीरिक और मनोरूग्ण हो जायेगे । 
     पहाड़, बहती नदियां, खुला आसमान, हरिभरी धरती, समुद्र पंछी, तितलियाँ और पशु ये सब हमारे मन को लुभाते हैं क्योंकि ये प्रकृति के अंश है । इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है - हरे भरे बड़े-बड़े वृक्ष । वृक्षों के बिना सब कुछ खाली खाली लगेगा ।
    जितने अधिक वृक्ष उतना बड़ा स्वर्ग । इस वाक्य को आप किसी भी दृष्टिकोण से परखें, खरा उतरेगा । वृक्ष धरती के देवता है । पशु, पक्षी और मनुष्य सभी के जीवन का आधार है । इसीलिये तो हम वृक्षों की पूजा करते हैं अर्थात् सम्मान देते हैं ।
    यदि हम धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं तो हमें पूरी धरती को वृृक्षों से पाट देना चाहिये । सोच के देखें आपके घर के बाहर कोई वृक्ष नहीं है या एक अथवा दो वृक्ष हरे भरे खड़े है तो कौन सी स्थिति मनभावन सूंदर है, निश्चित ही वृक्षों से सुशोभित द्वार सबके आकर्षण का केन्द्र होगा और हमारी गली मोहल्ले में पंक्तिबद्ध पेड़ खड़े हो तो वह दृष्य तो निश्चित ही ्न्नयनामिराम होगा । इसमें कोई संशय नहीं है ।
    वृक्षों से हमें कितना पर्यावरण संतुलन, कितना आर्थिक लाभ होता हैं और कितना इनका वैज्ञानिक महत्व  है । यह तो लगभग हम सभी जानते   हैं । मैं तो बस यह कहना चाहता हॅूं कि वृक्षों के महत्व को समझने के साथ ही हमने यह समझ रखा है कि वृक्ष संवर्धन तो सार्वजनिक कार्य है । इसका हमारे निजी जीवन के प्रयत्नों से कोई लेना-देना नहीं है । यह कार्य नगर पालिका, महानगर पालिका और राज्य सरकारें करेगी । कुछ ही गिने चुने नागरिकों को छोड़ बाकी हम सब इस बारे में सोचना भी नहीं चाहते है, ये बड़ी हमारी भूल है ।
    भारत हमारा देश ही नहीं, भारत हमारा घर है । अत: संपूर्ण भारत को सजाना, स्वर्ग बनाना मात्र सरकारों से संभव नहीं । हम सभी नागरिकों का व्यक्तिगत, निजी दायित्व है कि हम सब अपने अपने निजी प्रयासों से हमारे घर, दुकान, कारखाने और कार्यालय के आसपास पौधारोपण करें और वृक्षों का संवर्धन करें ।
    सबसे महत्व की बात है कि सार्वजनिक स्तर पर लगाये गये पेड़ों से किसी का लगाव नहीं होता, ममत्व नहीं होता । प्राय: नागरिकों द्वारा उपेक्षित होते हैं ये पेड अत: पूर्ण विकसित हो पाना मात्र ईश्वर कृपा पर निर्भर रहता है ।
    मेरा सोचना है कि हम अपनी सोच बदले और वृक्ष संवर्धन के लिये निजी प्रयत्न करें और शौक से, रूची से करें । हमें अपने-अपने परिवेश में ऐसे स्थानों को निगाहों से चुने जहाँ-जहाँ पेड लगाना उचित होगा और जिन्हें हम कुछ काल तक पानी देने, दिलवाने में समर्थ हों अर्थात् आसानी से पानी दे सकें । फिर इन चुने हुए स्थानों पर वृक्षारोपण करें ।
    इसका बहुत बड़ा फायदा यह होगा कि इन हमारे स्वयं के हाथों से, निजी प्रयास से लगाये गये पेड़ हमें अपने लगेंगे । उनसे ममत्व जुडेगा उन पेड़ों से अत्यधिक प्रेम होगा । वहाँ से आते-जाते हमारी नजरें उन  पर ही रहेगी । हम उन पेड़ों के पास खड़े     रहेगे । प्रतिदिन के हो रहे विकास पर हमारी सूक्ष्म दृष्टि होगी । हम उस पेड को प्रेम करेंगे और वह भी हमें प्रेम करेगा जिस कारण हम आनन्द की अनुभूति करेंगे । हमें उस पेड की रक्षा करने, खाद पानी देने में किसी श्रम का कष्ट नहीं होगा । इसके विपरीत हम अपने पेड़ को पानी डालकर सन्तुष्ट होंगे । यह सुख चीर जीवीं होता है । हमारी मृत्यु पर्यन्त इनकी याद इनको देखना हमें आनन्दित करता रहेगा । हमारे जीवन का हर कार्य हम सुख की चाहत से ही करते हैं । इस दृष्टिकोण से भी अर्थात् हमारे निजी सुख की वृद्धि के लिये यह काम करना बुद्धिमत्ता      है ।
    मानसून आ रहा है तो क्यों न अभी ही इस कार्य को प्रारंभ कर दिया जाय । पेड कौन से लगाए यह आपकी मर्जी का विषय है लेकिन पेड़ लगाते समय निम्न बातों का विचार करना ठीक रहेगा :-
(१) अपने क्षेत्र में आसानी से पनपने वाले पेड़ लगाएं ।
(२) फलदार वृक्ष लगाएँ । जिन पेड़ों पर पक्षियों और मनुष्य के खाने लायक फल लगते हो उन्हें सर्वाधिक प्रधानता है । अपने-अपने क्षेत्र के अनुकूल जैसे जामुन, इमली, चीकु, फालसा, अंजीर, रामफल, आम, शहतूत, बडगुंदा आदि में से भी आप पौधे चुन सकते हैं । जब वृक्ष बड़े होकर फल देने लगेंगे तब आप देखेंगे वृक्षों पर कई तरह के सुन्दर-सुन्दर पक्षी आ रहे हैं । तितलियाँ भी बढ़ेगी । पक्षियों का कर्णप्रिय संगीत फिर वहाँ गंुंजेगा । यह आपके द्वारा निर्मित किया हुआ स्वर्ग होगा ।
    गली मोहल्ले के बालक जो आज नेचर को भूल गए हैं, वे जो मोबाईल, लेपटॉप, टीवी और वीडियो गेम की दुनिया में कैद हो गये हैं वे भी अब वृक्ष के फलों से आकर्षित होकर प्रकृति के साथ खेलेंगे । वृक्षों की लंबी-लंबी शाखाआें पर फिर से सावन के झुले लगेंगे । कोई गरीब व्यक्ति आपके जामुन जैसे पेड़ के टोकरी भर फल तोड़ बेच कर परिवार पालन भी कर सकता है । यह सब आप चाहें तो हो सकता है ।
(३) लम्बी आयु के घनी छायादार वृक्ष जैसे बरगद, इमली, पीपल भी लगा सकते हैं ।
(४) औषधीय वृक्ष जैसे नीम, आंवला और पीपल भी लगाने आवश्यक है ।
(५) सुन्दर वृक्ष जैसे अशोक, गुलमोहर और बादाम के बारे में भी सोच के देखें । वैसे तो अनगिनत प्रकार के पेड़ हैं । आप अपनी पसंद के लगाए ।
    यदि आप दो-तीन पेड से अधिक लगाना चाहते है तो अपने आस पड़ोस के पन्द्रह से बीच वर्ष के लड़कों को एकत्र करें उन्हें अपनी योजना बताए और सलाह लें कि क्या वे ऐसा चाहते हैं । मेरा अनुभव है । योजना सुनते ही सभी लड़के उत्साहित हो उठते है । फिर बहुत सरलता से पूरी योजना क्रियान्वित हो जाती है । इसका दूसरा लाभ यह है कि दल का हर सदस्य हर पेड को अपना पेड समझता है, फिर उन पेड़ों की सुरक्षा भी कई गुना बढ़ जाती है चूंकि सबकी निगाहें उन वृक्षों की निगरानी करती रहती हैं ।
    हमें हमारी भारत माता को सुन्दरता से सजाना और प्रदूषण मुक्त करना हमारा निजी कर्तव्य है । हम स्वयं भी प्रदूषण फैलाते हैं । मल त्याग कर, कूडा फेक कर वसुंधरा को मैला तो हम नियमित रूप से करते ही हैं फिर वृक्षारोपण करना भी हमारा दायित्व है, इसे पूरा कर हम धरती को स्वर्ग बना सकते है ।

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