गुरुवार, 10 जुलाई 2014

कविता
हमारी प्यारी धरती माता
डॉ. संजीव गोयल
    प्रथम माँ है निज जननी, और दूजी भारत माता
    किन्तु सारे जग को जीवन देती धरती माता ।।
    हमारी प्यारी धरती माता, हमारी प्यारी धरती माता
    धरती में ही बसते सारे खनिज और इंर्धन
    बनके लहू सा बहता जल, जिससे चलता जीवन ।
    सूरज तपन से मौसम बनता, मन चेतना हो जाता,
    सारे जग को जीवन देती प्यारी धरती माता ।।
    वृक्ष होते बेटी, बेटे, और बेलें बहुआें जैसी,
    लताएँ लगती प्रेमिका, और झाड़ें सौतन जैसी ।
    पौधे होते नाती पोते, मन देख-देख हर्षाता,
    सारे जग को जीवन देती प्यारी धरती माता ।।
    माँ से मिलता कोमल मन और पिता से मिलता कर्म
    धरती माँ से पोषण मिलता और सूरज से श्रम ।
    जीवन भर ऋण लेते लेते, तन माटी-सा हो जाता,
    सारे जग को जीवन देती प्यारी धरती माता ।।
    धरती का मन मौसम होता, हर पल नय कुछ रचता,
    स्वार्थ धुन में मानव कहता, अब न यहाँ कुछ बचता ।
    सब चुप सहती, अति होती तो, सब स्वाह हो जाता,
    सारे जग को जीवन देती प्यारी धरती माता ।।
    सोचे हम तुम क्या करना है, संग जीना है, या मरना है,
    धरती अंबर के साये से माँका, फूलों सा हरपल खिलना है ।
    अपने सत्कर्मोंा से माँ का, श्रृंगार हमें फिर करना है,
    प्रथम माँ है निज जननी, और दूजी भारत माता
    किन्तु सारे जग को जीवन देती धरती माता ।।

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