गुरुवार, 10 जुलाई 2014

प्रसंगवश   
जंगल का अधिकार लोगों को दें
चंडी प्रसाद भट्ट, गोपेश्वर (उत्तराखण्ड) 
     पर्यावरण का पहला पाठ वहीं पढ़ा जाना चाहिए जहां से पर्यावरण बनता-बिगड़ता है । गांव के लोगों को साथ लेकर और गांव के लोगों के लिए ही पर्यावरण को बनाया और संवारा जा सकता है । इसकी एक समृद्ध परम्परा रही है ।
    पर्यावरण और विकास मेंविरोधाभास जरूरी नहीं है कि हमेशा मौजूद ही रहे । संसोधनों का इतना ही उपयोग हो जितने में संसाधन बचे रहें । संसाधनों के विकास की चिंता भी करनी होगी । कितनी अजीब बात है । मैं कहीं पढ़ रहा था कि देश में सबसे गरीब राज्यों में सबसे अधिक वन है । आखिर इसकी वजह क्या है ? जंगलों को लोगों से जोड़ा जाना चाहिए । इससे जंगल भी बचेंगे और जीडीपी भी बढ़ेगी । जंगलों का अधिकार लोगों को दें । जंगलों की वनस्पतियों, जड़ी बूटियों और पेड़ों की रक्षा का काम लोग करेंगे और बदले में वन उपज से अपनी आर्थिकी मजबूत करेंगे । सरकारी तंत्र इसमें सहयोग करें । उत्तराखण्ड में ६५ प्रतिशत जंगल है । हम सभी जानते हैं कि यह ६५ प्रतिशत जंगल नहीं, बल्कि वन भूमि है । सघन वन तो सिर्फ ४१ प्रतिशत हीं है । सघन वन का विस्तार क्यों नहीं हो रहा है ? साफ है जंगल के रखवालों को ही अपने जंगल से दूर कर दिया । जंगल में खर्चा करने से भले ही आपको तुरन्त कुछ न मिले, पर दस-बीस साल में कायाकल्प हो जाएगा । यह पाया गया है कि जंगल से धन वापसी तो आपको छह माह में ही मिलना शुरू हो जाएगा । जरूरत योजना बनाकर और लोगों को साथ लेकर काम करने की है ।
    हिमालयी क्षेत्र की आपदा का एक कारण और भी था । पहले रहन-सहन, खाना-पीना सब कुछ प्रकृति के अनुकूल हुआ करता था । एटकिंसन ने गजेटियर में लिखा है कि १८८३ में बदरीनाथ में साल भर में दस हजार यात्री आए थे । आज एक ही दिन में दस हजार यात्री बदरीनाथ पहुंच जाते हैं । इतने यात्रियों को लाने वाली बसों और अन्य वाहनों, इनके खाने-पीने, रहने आदि का कुछ तो फर्क पड़ता ही होगा । सवाल भूमि प्रबंधन का भी है । बरसात की बूंदों की भी तीव्रता होती है । खाली मैदान बूंदों की जगह हरीतिमा होनी चाहिए । यह देखा जाना चाहिए कि बरसात की इस मारक क्षमता का प्रभाव कम से कम कैसे किया जाए ?
    पारम्परिक ज्ञान के साथ आधुनिक ज्ञान का समन्वय होना चाहिए । समग्र अध्ययन की जरूरहत है । हिमालय के बारे में हमारी जानकारी बहुत कम है । सबको मिलकर इस पर काम करना चाहिए । जब हमारी जानकारी पूरी होगी तो हमारा कोई भी कदम बेहतरी की दिशा में बढ़ेगा । आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर फैसले किए जाएंगे तो फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है ।

कोई टिप्पणी नहीं: