हमारा भूमण्डल
एंटीबायोटिक : अपने पैरों पर कुल्हाड़ी
मार्टिन खोर
उस स्थिति की कल्पना ही डरावनी है जब साधारण चोट से हुए संक्रमण से मनुष्य के जीवन को खतरा हो जाएगा । लेकिन आगामी कुछ ही दशकों में यह एक वास्तविकता होगी । वहीं दूसरी ओर पिछले करीब तीन दशकों से नई पीढ़ी का एक भी नया एंटी बायोटिक सामने नहीं आया ।
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां अपना सारा धन केंसर, रक्तचाप, मधुमेह या कोलेस्ट्राल कम करने वाली दवाइयों की खोज पर लगा रही है। इसकी वजह है इन दवाओं को लंबे समय तक उपयोग में लाना होता है और इससे कंपनियों को भारी मुनाफा होता है ।
एंटीबायोटिक : अपने पैरों पर कुल्हाड़ी
मार्टिन खोर
उस स्थिति की कल्पना ही डरावनी है जब साधारण चोट से हुए संक्रमण से मनुष्य के जीवन को खतरा हो जाएगा । लेकिन आगामी कुछ ही दशकों में यह एक वास्तविकता होगी । वहीं दूसरी ओर पिछले करीब तीन दशकों से नई पीढ़ी का एक भी नया एंटी बायोटिक सामने नहीं आया ।
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां अपना सारा धन केंसर, रक्तचाप, मधुमेह या कोलेस्ट्राल कम करने वाली दवाइयों की खोज पर लगा रही है। इसकी वजह है इन दवाओं को लंबे समय तक उपयोग में लाना होता है और इससे कंपनियों को भारी मुनाफा होता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि बीमारी पहुंचाने वाले अनेकजीवाणुओं (बेक्टीरिया) का उपचार अब सामान्य एंटीबायोटिक से संभव नहीं है और आधुनिक उपचार के लाभ बड़ी मात्रा में घटते जा रहे हैं । सूक्ष्म जीवाणु प्रतिरोध से संबंधित २३४ पृष्ठ की विस्तृत रिपोर्ट में ११४ देशों के आंकड़ों के माध्यम से बताया गया है कि किस तरह विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में यह खतरा मंडरा रहा है और यह किसी भी देश को प्रभावित कर सकता है। एंटीबायोटिक से प्रतिरोध का अर्थ है जीवाणु से उत्पन्न संक्रमण का उपचार करने में एंटीबायोटिक असमर्थ होना ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि `समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि इसने आधुनिक चिकित्सा की उपलब्धियों के लिए खतरा पैदा कर दिया है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहायक निदेशक जनरल केजुकी फूकुड़ा जिन्होंने इस जीवाणु प्रतिरोध कार्यक्रम का समन्वय किया है, का कहना है, `एंटीबायोटिक के बाद का काल यानि ऐसी स्थिति या समय जबकि एंटीबायोटिक का असर समाप्त हो चुका होगा और जिसे हम भविष्य की कपोल कल्पना मानते थे वह २१वीं सदी की वास्तविक संभावना बन चुकी है ।`
रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है, `त्वरित व समन्वित कार्यवाही के बिना विश्व एंटीबायोटिक के बाद के ऐसे काल में प्रवेश कर जाएगा जहां पर सामान्य संक्रमण और छोटी-मोटी चोटें जिनका कि दशकों से उपचार संभव रहा है, की वजह से लोग पुन: मरने लगेंगे । गौरतलब है प्रभावशील एंटीबायोटिक ही वह एक स्तंभ है जिससे हमारी आयु बढ़ी है, जीवन स्वास्थ्यकर हुआ है और हम आधुनिक चिकित्सा के लाभ ले पाते हैं ।
अगर हम संक्रमण की रोक हेतु उपायों में सुधार नहीं करते और इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते तथा एंटीबायोटिक के उत्पादन, उनको लिखने और इस्तेमाल करने के ढंग में परिवर्तन नहीं लाते तो ऐसी दशा में विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य वस्तुओं में लगातार हानि होगी और इसके विध्वंसक परिणाम सामने आएंगे ।
सूक्ष्म जीवाणु विरोधी प्रतिरोध निगरानी संबंधी वैश्विक रिपोर्ट` में बताया गया है कि अनेक जीवाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है । जिससे अन्य अनेक प्रकार के संक्रमण फैल रहे हैं । इस रिपोर्ट में मुख्यतया सात जीवाणुओं में उत्पन्न प्रतिरोधकता जो कि गंभीर बीमारियां जैसे खून की नलियों में संक्रमण (सेप्सिस), डायरिया, निमोनिया, मूत्र नलिका में संक्रमण और सूजाक (गोनोरिया) के लिए जिम्मेदार होते हैं, के संबंध में बताया गया है ।
चिंता की खास बात यह है कि जीवाणुओं की प्रतिरोधकता ने प्रचलित `आखिरी उपाय` वाले एंटीबायोटिक को भी हरा दिया है । ये वे शक्तिशाली दवाइयां हैं, जिन्हें चिकित्सक आखिरी उपाय के रूप में प्रयोग लाते हैं, जबकि अन्य उपाय काम करना बंद कर देते हैं, जिन्हें सामान्यतया पहली पीढ़ी की औषधियां कहा जाता है । इसके बाद चिकित्सक नई दूसरी पीढ़ी या पंक्ति की औषधि लिखते हैं, जिसकी कीमत सामान्यतया ज्यादा होती है । जब ये भी काम नहीं करतीं तब और भी नई और अधिक शक्तिशाली (कई बार इनके काफी दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं) एंटीबायोटिक का इस्तेमाल मरीज को अत्यंत महंगा भी पड़ता है ।
यदि यह तीसरी पीढ़ी पंक्ति या `आखिरी उपाय` की औषधियां उपलब्ध न हो या मरीज के हिसाब से अत्यधिक महंगी हों या एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता के चलते यह भी मरीज पर कारगर न हो तो मरीज लंबे समय तक बीमार बना रहता है या संक्रमण के गंभीर होने की दशा में उसकी मृत्यु भी हो सकती है ।
पूर्ववर्ती समय में प्रतिरोधकता विकसित हो जाने की स्थिति में या संक्रमण के उपचार में इनके असफल रहने की दशा में नए एंटीबायोटिक की खोज की जाती थी । लेकिन पिछले २५ वर्षों में ऐसे अविष्कार सामने नहीं आए हैं । बेक्टीरिया विरोधी दवाइयों की संपूर्ण श्रंृखला की अंतिम खोज सन् १९८० के दशकमें हुई थी । इस बीच अनेक रोग इन शक्तिशाली एंटीबायोटिकों केे खिलाफ प्रतिरोधकता उत्पन्न करते जा रहे हैं । इसमें शामिल है ई. कोली, के. निमोनिया, स्टेफऑरियस, एस. निमोनिया, साल्मोनेलिया, शिंगेला एवं एन.गोनोरी । इस रिपोर्ट में पाए गए मुख्य बिंदु हैं :-
(१) के. निमोनिया अस्पताल में लगे संक्रमण जैसे निमोनिया, खून की नलिका संक्रमण, नवजातों में संक्रमण और गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती मरीजों में संक्रमण का मुख्य कारण हैं । कुछ देशों में के.निमोनिया संक्रमणों को कार्बापेनेम से उपचारित करने पर आधे से ज्यादा लोगों पर इसका असर होना बंद हो गया है ।
(२) ई. कोलाई द्वारा फैले मूत्र नलिका के संक्रमण के प्रति लोरोक्यूलोनॉल्स एंटीबेक्टेरियल औषधियों के खिलाफ प्रतिरोधकता सर्वव्याप्त हो गई है । सन् १९८० में ये औषधियां सबसे पहले जारी की गई तो इनके विरुद्ध प्रतिरोधकता वस्तुत: शून्य थी । आज अनेक देशों में आधे से ज्यादा मरीजों पर यह उपचार अप्रभावशाली हो चुका है।
(३) यदि नई दवाइयां नहीं खोजी गई तो सूजाक जैसा यौन संक्रमण शीघ्र ही लाइलाज हो जाएगा ।
(४) सूजाक के उपचार के अंतिम उपाय के रूप में तीसरी पीढ़ी की सेफालोस्पोरिंस से उपचार अब असफल हो गया है और अनेक देशों ने इसे सत्यापित भी किया है ।
(५) एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता से लोग अधिक समय तक बीमार पड़े रहते हैं और मृत्यु का जोखिम भी बढ़ गया ह्ै ।
उदाहरण के लिए ऐसे लोग जो एमआरएसए (मेथिसिलिन प्रतिरोधकता स्टेफायलो कोकस ऑरियस) से प्रभावित हैं, को लेकर अनुमान है कि गैर प्रतिरोधक संक्रमण से मरने वालों की बनिस्बत उनकी मृत्यु की ६४ प्रतिशत अधिक संभावना है । अस्पतालों में एमआरएसए से संक्रमण अनेक मामले सामने आते हैं ।
रिपोर्ट में चार खतरनाक बीमारियों टीबी, मलेरिया, एचआईवी और इन्लूएंजा के प्रति बढ़ती प्रतिरोधकता की चिंताजनक स्थिति भी सामने रखी है । इसके अलावा पशुधन क्षेत्र में भी प्रतिरोधकता बढ़ रही है, क्योंकि वहां भोजन हेतु उपयोग में आने वाले पशुओं की वृद्धि हेतु खुलकर एंटीबायोटिक का उपयोग हो रहा है । इससे जानवरों में मौजूद जीवाणुओं में भी प्रतिरोधकता बढ़ रही है । मनुष्यों द्वारा इनके मांस को उपयोग में लाने पर ये जीवाणु उनमें प्रवेश कर जाते हैं । वैसे यूरोपीय संघ ने पशुओं की वृद्धि हेतु एंटीबायोटिक का उपयोग प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन अन्य देशों में अभी भी इसकी अनुमति है ।
विश्व स्वास्थ्य संग ठन ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में निम्न उपाय लागू करने पर जोर दिया है :-
देशों में इस समस्या को ढूंढने और निगरानी हेतु मूलभूत प्रणालियां तैयार की जाएं ।
एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम करने हेतु संक्रमणों को रोका जाए ।
वास्तविक आवश्यकता की स्थिति में ही इन्हें लिखा जाए और उपयोग किया जाए। बीमारी के उपचार हेतु ठीक प्रकार के एंटीबायोटिक लिखे जाएं ।
उभरती नई प्रतिरोधकता के समानांतर नए एंटीबायोटिक खोजे जाएं एवं अन्य उपाय करे जाएं ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि `समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि इसने आधुनिक चिकित्सा की उपलब्धियों के लिए खतरा पैदा कर दिया है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहायक निदेशक जनरल केजुकी फूकुड़ा जिन्होंने इस जीवाणु प्रतिरोध कार्यक्रम का समन्वय किया है, का कहना है, `एंटीबायोटिक के बाद का काल यानि ऐसी स्थिति या समय जबकि एंटीबायोटिक का असर समाप्त हो चुका होगा और जिसे हम भविष्य की कपोल कल्पना मानते थे वह २१वीं सदी की वास्तविक संभावना बन चुकी है ।`
रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है, `त्वरित व समन्वित कार्यवाही के बिना विश्व एंटीबायोटिक के बाद के ऐसे काल में प्रवेश कर जाएगा जहां पर सामान्य संक्रमण और छोटी-मोटी चोटें जिनका कि दशकों से उपचार संभव रहा है, की वजह से लोग पुन: मरने लगेंगे । गौरतलब है प्रभावशील एंटीबायोटिक ही वह एक स्तंभ है जिससे हमारी आयु बढ़ी है, जीवन स्वास्थ्यकर हुआ है और हम आधुनिक चिकित्सा के लाभ ले पाते हैं ।
अगर हम संक्रमण की रोक हेतु उपायों में सुधार नहीं करते और इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते तथा एंटीबायोटिक के उत्पादन, उनको लिखने और इस्तेमाल करने के ढंग में परिवर्तन नहीं लाते तो ऐसी दशा में विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य वस्तुओं में लगातार हानि होगी और इसके विध्वंसक परिणाम सामने आएंगे ।
सूक्ष्म जीवाणु विरोधी प्रतिरोध निगरानी संबंधी वैश्विक रिपोर्ट` में बताया गया है कि अनेक जीवाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है । जिससे अन्य अनेक प्रकार के संक्रमण फैल रहे हैं । इस रिपोर्ट में मुख्यतया सात जीवाणुओं में उत्पन्न प्रतिरोधकता जो कि गंभीर बीमारियां जैसे खून की नलियों में संक्रमण (सेप्सिस), डायरिया, निमोनिया, मूत्र नलिका में संक्रमण और सूजाक (गोनोरिया) के लिए जिम्मेदार होते हैं, के संबंध में बताया गया है ।
चिंता की खास बात यह है कि जीवाणुओं की प्रतिरोधकता ने प्रचलित `आखिरी उपाय` वाले एंटीबायोटिक को भी हरा दिया है । ये वे शक्तिशाली दवाइयां हैं, जिन्हें चिकित्सक आखिरी उपाय के रूप में प्रयोग लाते हैं, जबकि अन्य उपाय काम करना बंद कर देते हैं, जिन्हें सामान्यतया पहली पीढ़ी की औषधियां कहा जाता है । इसके बाद चिकित्सक नई दूसरी पीढ़ी या पंक्ति की औषधि लिखते हैं, जिसकी कीमत सामान्यतया ज्यादा होती है । जब ये भी काम नहीं करतीं तब और भी नई और अधिक शक्तिशाली (कई बार इनके काफी दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं) एंटीबायोटिक का इस्तेमाल मरीज को अत्यंत महंगा भी पड़ता है ।
यदि यह तीसरी पीढ़ी पंक्ति या `आखिरी उपाय` की औषधियां उपलब्ध न हो या मरीज के हिसाब से अत्यधिक महंगी हों या एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता के चलते यह भी मरीज पर कारगर न हो तो मरीज लंबे समय तक बीमार बना रहता है या संक्रमण के गंभीर होने की दशा में उसकी मृत्यु भी हो सकती है ।
पूर्ववर्ती समय में प्रतिरोधकता विकसित हो जाने की स्थिति में या संक्रमण के उपचार में इनके असफल रहने की दशा में नए एंटीबायोटिक की खोज की जाती थी । लेकिन पिछले २५ वर्षों में ऐसे अविष्कार सामने नहीं आए हैं । बेक्टीरिया विरोधी दवाइयों की संपूर्ण श्रंृखला की अंतिम खोज सन् १९८० के दशकमें हुई थी । इस बीच अनेक रोग इन शक्तिशाली एंटीबायोटिकों केे खिलाफ प्रतिरोधकता उत्पन्न करते जा रहे हैं । इसमें शामिल है ई. कोली, के. निमोनिया, स्टेफऑरियस, एस. निमोनिया, साल्मोनेलिया, शिंगेला एवं एन.गोनोरी । इस रिपोर्ट में पाए गए मुख्य बिंदु हैं :-
(१) के. निमोनिया अस्पताल में लगे संक्रमण जैसे निमोनिया, खून की नलिका संक्रमण, नवजातों में संक्रमण और गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती मरीजों में संक्रमण का मुख्य कारण हैं । कुछ देशों में के.निमोनिया संक्रमणों को कार्बापेनेम से उपचारित करने पर आधे से ज्यादा लोगों पर इसका असर होना बंद हो गया है ।
(२) ई. कोलाई द्वारा फैले मूत्र नलिका के संक्रमण के प्रति लोरोक्यूलोनॉल्स एंटीबेक्टेरियल औषधियों के खिलाफ प्रतिरोधकता सर्वव्याप्त हो गई है । सन् १९८० में ये औषधियां सबसे पहले जारी की गई तो इनके विरुद्ध प्रतिरोधकता वस्तुत: शून्य थी । आज अनेक देशों में आधे से ज्यादा मरीजों पर यह उपचार अप्रभावशाली हो चुका है।
(३) यदि नई दवाइयां नहीं खोजी गई तो सूजाक जैसा यौन संक्रमण शीघ्र ही लाइलाज हो जाएगा ।
(४) सूजाक के उपचार के अंतिम उपाय के रूप में तीसरी पीढ़ी की सेफालोस्पोरिंस से उपचार अब असफल हो गया है और अनेक देशों ने इसे सत्यापित भी किया है ।
(५) एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता से लोग अधिक समय तक बीमार पड़े रहते हैं और मृत्यु का जोखिम भी बढ़ गया ह्ै ।
उदाहरण के लिए ऐसे लोग जो एमआरएसए (मेथिसिलिन प्रतिरोधकता स्टेफायलो कोकस ऑरियस) से प्रभावित हैं, को लेकर अनुमान है कि गैर प्रतिरोधक संक्रमण से मरने वालों की बनिस्बत उनकी मृत्यु की ६४ प्रतिशत अधिक संभावना है । अस्पतालों में एमआरएसए से संक्रमण अनेक मामले सामने आते हैं ।
रिपोर्ट में चार खतरनाक बीमारियों टीबी, मलेरिया, एचआईवी और इन्लूएंजा के प्रति बढ़ती प्रतिरोधकता की चिंताजनक स्थिति भी सामने रखी है । इसके अलावा पशुधन क्षेत्र में भी प्रतिरोधकता बढ़ रही है, क्योंकि वहां भोजन हेतु उपयोग में आने वाले पशुओं की वृद्धि हेतु खुलकर एंटीबायोटिक का उपयोग हो रहा है । इससे जानवरों में मौजूद जीवाणुओं में भी प्रतिरोधकता बढ़ रही है । मनुष्यों द्वारा इनके मांस को उपयोग में लाने पर ये जीवाणु उनमें प्रवेश कर जाते हैं । वैसे यूरोपीय संघ ने पशुओं की वृद्धि हेतु एंटीबायोटिक का उपयोग प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन अन्य देशों में अभी भी इसकी अनुमति है ।
विश्व स्वास्थ्य संग ठन ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में निम्न उपाय लागू करने पर जोर दिया है :-
देशों में इस समस्या को ढूंढने और निगरानी हेतु मूलभूत प्रणालियां तैयार की जाएं ।
एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम करने हेतु संक्रमणों को रोका जाए ।
वास्तविक आवश्यकता की स्थिति में ही इन्हें लिखा जाए और उपयोग किया जाए। बीमारी के उपचार हेतु ठीक प्रकार के एंटीबायोटिक लिखे जाएं ।
उभरती नई प्रतिरोधकता के समानांतर नए एंटीबायोटिक खोजे जाएं एवं अन्य उपाय करे जाएं ।
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