गुरुवार, 10 जुलाई 2014

विज्ञान, हमारे आसपास
विमानों के ब्लैक बॉक्स क्या हैं ?
विमल श्रीवास्तव

    पिछले दिनों ८ मार्च २०१४ की मध्य रात्रि को मलेशियन एयरलाइन को बोइंग ७७७ विमान कुआलालम्पुर से बीजिंग जाते समय अचानक आकाश से लापता हो गया था । यह विमान संभवत: अपने २३९ यात्रियों तथा कर्मियों सहित दुर्घटनाग्रस्त होकर महासागर में समा गया था । दुर्भाग्यवश न तो विमान के मलबे का सुराग मिल पाया था, और न ही पता चल रहा था कि दुर्घटना किस स्थान पर हुई थी ।
    लापता विमान की खोज के लिए चीन, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, भारत, बांग्लादेश तथा मलेशिया सहित अनेक देशों के जलपोत निरन्तर गश्त लगा रहे थे, किन्तु लेख लिखे जाने तक कहीं कुछ सुराग तक नहीं मिल पाया था । ऐसे में खोजकर्ता तथा विमान से संबंधित कंपनियां अपना पूरा ध्यान लगाए हुए थे कि यदि किसी प्रकार विमान के ब्लैक बॉक्स का पता चल पाए तो काम सरल हो   सकेगा । 
     विमानोंमें लगाए जाने वाले ये ब्लैक बॉक्स अपने अंदर महत्वपूर्ण जानकारी समाए रखते हं, जो दुर्घटना के पश्चात उसके कारणों का पता लगाने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है । आश्चर्य की बात है कि ब्लैक बॉक्स  का रंग काला न होकर  सुर्ख लाल अथवा चटख नारंगी होता है ।
    वास्तव में प्रत्येक विमान में एक नहीं बल्कि दो ब्लैक बॉक्स  होते है, जो बाहर से देखने में बिल्कुल एक जैसे दिखते हैं किन्तु उनके कार्य एक-दूसरे से एकदम अलग-अलग होते हैं । ये दोनों ब्लैक बॉक्स क्रमश: फ्लाइट डैटा रिकार्डर (एफ.डी.आर.) तथा कॉकपिट वाइस रिकार्डर (सी.वी.आर.) कहलाते हैं । जहां एफ.डी.आर. विमान के उड़ान संबंधी आंकड़े रिकार्ड करता है वहीं सी.वी.आर. विमान के यान कक्ष में होने वाली बातचीत रिकॉर्ड करता    है । यह काम ब्लैक बॉक्स उड़ान के दौरान निरन्तर करते रहते हैं ।
    एफ.डी.आर. तथा सी.वी. आर. यद्यपि ब्लैक बॉक्स कहलाते हैं किन्तु नाम के विपरीत इनका रंग काला न होकर गहरा लाल अथवा नारंगी होता है । इन्हें ब्लैक बॉक्स इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें  अंकित सूचनाएं तब तक ज्ञात नहीं हो सकती है जब तक कि इन डिब्बों को खोलकर टेप को बाहर न निकाला   जाए । इनका रंग गहरा लाल अथवा नारंगी रखने का मकसद यह होता है कि दुर्घटना के बाद इनको आसानी से ढूंढा जा सके ।
    एफ.डी.आर. तथा सी.वी. आर. बाहर से देखने पर आकार तथा भार आदि में बिल्कुल एक जैसे लगते हैं  किन्तु वास्तव में ये बिल्कुल भिन्न-भिन्न उपकरण हैं । इनकी अंदरूनी बनावट व कार्य प्रणाली एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग होती हैं ।
    ब्लैक बॉक्स सामान्यत: आयताकार होते हैं, जिनकी लम्बाई ३० से.मी., चौडाई २० से.मी. तथा ऊंचाई  १३ से.मी. होती है और भार लगभग १० किलोग्राम होता है । इस प्रकार देखने में ये किसी ब्रीफ केस से बड़े नहीं दिखते हैं । इनके बाहरी आवरण अत्यन्त सुदृढ़, जल-रोधक तथा ताप-रोधक होते है जो विमान दुर्घटना के भयंकर आघात तथा कठोर ताप को सहने में सक्षम होते हैं ।
    इन ब्लैक बॉक्सों के माइक्रोफोन तथा अन्य रिकार्डिग यंत्र यद्यपि विमान के यान कक्ष (कॉकपिट) तथा अन्य स्थानों पर लगे होते हैं, किन्तु ये बक्से प्राय: विमान के पिछले हिस्से में लगाए जाते हैं । इन्हें पिछले भाग में लगाने का प्रयोजन यह है कि ऐसा समझा जाता है कि विमान दुर्घटना होने पर अधिकतर मामलों में उसकी पंूछ का हिस्सा नष्ट होने से बच जाता है ।
    दोनों प्रकार के ब्लैक बॉक्सों में एक-एक ध्वनि प्रसारक यंत्र भी लगा रहता है जो एक विशेष प्रकार की बैटरी द्वारा संचालित होता है । इस बैटरी की विशेषता यह है कि जब यह जल के सम्पर्क में आती है तभी अपना कार्य आरंभ करती है, अन्यथा सुप्त् बनी रहती है । अर्थात यदि दुर्घटना के समय विमान किसी नदी, झील या सागर में गिर जाए तो यह बैटरी चालू हो जाती है तथा ध्वनि प्रसारक यंत्र से विशेष प्रकार की बीप-बीप आवाजें आने लगती हैं । इन ध्वनियों को सुनकर खोजकर्ता जल में डूबे ब्लैक बॉक्स  को ढूंढ सकते हैं ।
    एक बार चालू हो जाने के बाद यह बैटरी ३० दिन तक कार्य करती है और तब तक इन्हें ढूंढा जा सकता है । इसी कारण एयर इंडिया के कनिष्क विमान की दुर्घटना के समय सागर की लगभग दो कि.मी. की गहरी तलहटी से इन छोटे-छोटे बक्सों को निकाला जा सका था । यह कार्य कुछ-कुछ भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा   था । वास्तव में ८ मार्च २०१४ को गायब हुए मलेशियन एयरलाइन के विमान के संबंध में भी इसी कारण उन ब्लैक बॉक्सों को ढूंढने की जल्दी थी, क्योंकि ३० दिनों के बाद उनसे सिग्नल आने बंद हो जाते हैं और फिर उनका मिल पाना लगभग असंभव हो जाता ।
    ब्लैक बॉक्स कितने मजबूत होते हैं इसका अनुमान आगे के विवरण से लगाया जा सकता है । पहली जनवरी १९७८ को नववर्ष के अवसर पर मुम्बई के निकट एयर इंडिया का सम्राट अशोक नामक जम्बो जेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया तथा सम्पूर्ण विमान २१३ सवारों के साथ सागर की तलहटी मेंधंस गया । लगभग तीन दिनों के बाद विमान का मलबा खोजा जा सका तथा ब्लैक बॉक्सों को निकाला गया । इतने भयंकर झटकों तथा   सागर के खारे जल से संपर्क के बावजूद भी ब्लैक बॉक्स बिल्कुल सही पाए    गए ।
    इसी प्रकार ४ अगस्त १९७९ को इंडियन एयरलाइंस का एक एवरो (एच.एस.७४८) विमान मुम्बई के निकट पहाड़ियों से टकरा कर नष्ट हो गया और उसमें सवार सभी ४५ व्यक्तियों की मृत्यु हो गई । आग लग जाने के कारण विमान पूरी तरह से नष्ट हो गया तथा केवल उसके कुछ जले हुए टुकड़े ही पाए गए । इस विमान के ब्लैक बॉक्सों के ऊपरी कवच भी काफी हद तक जल गए थे किन्तु अन्दरूनी हिस्से बिल्कुल सही सलामत पाए गए । उनके अन्दर के टेप भी बिल्कुल सही हालत में  थे । उन्हीं की सहायता से दुर्घटना के कारणों का पता चल पाया ।
    ब्लैक बॉक्सों की शीत, गर्मी, बारिश, आघात आदि को झेल सकने की क्षमता सिद्ध हो चुकी है । इन बॉक्सों के इतने परिचय के बाद सी.वी.आर. तथा एफ.डी.आर को अलग-अलग जानने की बारी आती  है ।
    सी.वी.आर. विमान के यानकक्ष (कॉकपिट) में कर्मी दल के सदस्यों की आपस की बातचीत तथा रेडियो पर किए गए वार्तालाप को रिकार्ड करता है । यह केवल मानवीय आवाज ही नहींबल्कि अन्य ध्वनियां भी,  जैसे इंजिनों का शोर, चेतावनी की घंटियां, बजर, खतरे के संकेत, स्विचों की आवाजें, तथा बजर की आवाजें, यान कक्ष के द्वार के खुलने बंद होने की आवाजें तथा अन्य प्रकार का शोर-शराबा आदि भी रिकार्ड करता रहता   है ।
    वास्तव में सी.वी.आर. काफी कुछ एक घरेलू टेप रिकार्डर जैसा ही होता है । अन्तर सिर्फ यह होता है कि यह अत्यन्त सुदृढ़ ढांचे में सुरक्षित होता है । सी.वी.आर. के टेप की अवधि आधे घण्टे की होती है । आधे घन्टे के बाद पुरानी रिकार्डिग मिटती जाती है तथा नई रिकार्डिग स्वत: होती जाती है । इस प्रकार किसी भी समय सी.वी.आर. को खोला जाए तो उसमें केवल पिछले आधे घण्टे की रिकार्डिग मिलेगी । सी.वी.आर. विमान के इंजिनों से चलने की शक्ति प्राप्त् करता है और इंजिनों के बंद होने पर कार्य करना बंद कर देता है ।
    विमान दुर्घटना जांच के दौरान सी.वी.आर. के टेप को खोला जाता है, तथा रिकार्ड किए गए वार्तालाप तथा ध्वनियों आदि के लिखित विवरण तैयार किए जाते    हैं । यह काम काफी कठिन होता है क्योंकि अनेक प्रकार की मिली-जुली ध्वनियां तथा वार्तालाप बहुत धीमे तथा क्षीण होते हैं जिनको समझना काफी कठिन होता है । किन्तु अनुभवी विमान दुर्घटना अन्वेषक यह कार्य कर लेते हैं । तत्पश्चात् विमान चालकों की आवाजों से परिचित लोगों की सहायता से बोलने वालों की पहचान की जाती है । इस प्रकार यह पता चल जाता है कि दुर्घटना  से पूर्व कर्मीदल के किस सदस्य ने किस मौके पर क्या कहा था । इन सबके आधार पर सी.वी.आर. की रिपोर्ट तैयार हो जाती है ।
    सी.वी.आर. पर रिकार्ड की गई जानकारी दुर्घटना की जांच में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होती हैं । जैसे यानकक्ष में कर्मीदल के सदस्यों की आपसी बातचीत से यह मालूम पड़ सकता है कि दुर्घटना के समय यान कक्ष में वातावरण सामान्य था या चालक दल को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था । यह भी पता चल जाता है कि यंत्रों का उपयोग सही ढंग से किया गया था या नहीं, तथा क्या विमान के सभी यंत्र सही ढंग से कार्य कर रहे थे अथवा क्या किसी यंत्र से खतरे या चेतावनी की घंटी या अलार्म आया था । यदि दुर्घटना किसी अपहरणकर्ता अथवा बाहरी व्यक्ति के कारण हुई हो, तब उसकी आवाज भी रिकार्ड हो जाती है । इन सूत्रों के आधार पर विमान दुर्घटना से संबंधित अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती है ।
    एफ.डी.आर. विमान की उड़ान संबंधी सूचनाएं, जैसे विमान की ऊंचाई, गति, दिशा, विमान के ऊपर अथवा नीचे जाने की गति, समय तथा गुरूत्व बल तथा उसके इंजिनोंसे संबंधित ५० से लेकर लगभग २०० से भी अधिक सूचनाएं रिकॉर्ड करता रहता है । इसकी अवधि २५ घंटे या अधिक की हो सकती है। 
    एफ.डी.आर. द्वारा रिकार्ड की गई सूचनाआें के आधार पर विमान दुर्घटना से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त् हो जाती है, जिससे विमान दुर्घटना का कारण जानने में सहायता मिलती । जैसे टेप पर अंकित समय द्वारा यह ज्ञात हो सकता है कि दुर्घटना किस समय घटित हुई थी तथा उसके पूर्व यदि कोई उल्लेखनीय घटना घटी थी तो उसके तथा दुर्घटना के बीच समयान्तर क्या था । दिशा के आधार पर विमान के उड़ान पथ में किसी असामान्य परिवर्तन का पता लग सकता है । इसी प्रकार अंकित की गई गति के आधार पर यह पता चल सकता है कि दुर्घटना से पूर्व विमान सामान्य गति से उड़ान भर रहा था या उसकी गति में असामान्य तेजी या कमी आई थी । गुरूत्व बल के आधार पर यह पता चल सकता है कि विमान कितनी शक्ति से नीचे आया था अथवा भूमि से टकराया  था । इन्हीं सूत्रों के आधार पर जांचकर्ता अपनी रिपोर्ट तैयार करते     है ।
    जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि इन ब्लैक बॉक्सों की सहायता से जांचकर्ता विमान की दुर्घटना से पूर्व की उड़ान का पूरा लेखा-जोखा तैयार कर पाने में सक्षम होते हैं । इस प्रकार जहां एफ.डी.आर. विमान के उड़ान संबंधी चित्रण प्रदान करते हैं वहीं सी.वी.आर. उन दृश्यों में आवाज भर देते हैं । यदि हम इसकी तुलना क्रिकेट कमेन्ट्री से करें तो यह कह सकते हैं कि जहां सी.वी.आर. उड़ान का रेडियो जैसा आंखों देखा हाल सुनाता है, वहीं एफ.डी.आर. उन दृश्यों को एक बिना आवाज वाले टेलीविजन पर दर्शाता  है। यदि दोनों को मिला कर देखा जाए तो पूरा दृश्य सामने आ जाता है ।
    ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब ब्लैक बॉक्सों के कारण ही विमान दुर्घटना  का वास्तविक कारण जानना संभव हो सका है । जैसे वर्ष १९७४ में नैरोबी में लुफ्तांसा (जर्मन एयरलाइन्स) का एक बोइंग ७४७ विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था । जांच के समय जब सी.वी.आर.टेप को सुना गया तो पता चला कि चिमान चालक उड़ान से पूर्व चेक लिस्ट पढ़ते समय विमान की वायु प्रणाली (न्यूमैटिक सिस्टम) को चालू करना भूल गया था । इस कारण उड़ान के समय विमान का एक नियंत्रण साधन लीडिंग एज फ्लैप चालू नहीं हुआ था तथा समुचित उछाल बल प्राप्त् न हो पाने के कारण विमान नीचे गिर गया था ।
    इसी प्रकार पहली जनवरी १९७८ को हुई  एयर इंडिया के जम्बो जेट की दुर्घटना की जांच के दौरान पता चला कि उस दौरान विमान का एट्टीट्यूड डायरेक्टर इन्डीकेटर (ए.डी.आई.) नामक यंत्र काम नहीं कर रहा था । ऐसा इसलिए मालूम चल पाया था क्योंकि सी.वी.आर. टेप में विमान का कप्तन अपने सहचालक से कहता हुआ पाया गया था - ाू खिीींीीर्ााशिींी रीश ींििश्रिशव- अर्थात मेरे यंत्र पलट गए हैं । और उस विमान में ए.डी.आई. ही एक ऐसा यंत्र है जो   पलट सकता है । अब यदि सी.वी.आर. से सहायता न मिलती तो संभवत: दुर्घटना के कारण का पता नहीं चल पाता ।
    इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि ब्लैक बॉक्स विमानें के लिए कितने जरूरी होते हैं । इन्हीं सबकारणों से महानिदेशक नागर विमानन द्वारा भारत के यात्री विमानों में नियमानुसार ब्लैक बॉक्स लगाया जाना अनिवार्य कर दिया गया हैं ।

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