पर्यावरण परिक्रमा
सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में दिल्ली, भोपाल और रायपुर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की ओर से कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है । एम्बिएंट एयर पाल्यूशन नामक इस रिपोर्ट के २०१४ के संस्करण में ९१ देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति का ब्यौरा दिया गया है । राष्ट्रीय राजधानी वायु प्रदुषण का रूवरूप २.५ माइक्रेान्स से कम परएम २.५ सघनता के तहत आता है जो सबसे गंभीर माना जाता है । सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट की अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि डब्लयूएचओ का नया विवरण भारत में स्वास्थ्य संबंधी चिंताआें की पुष्टि करता है ।
सुश्री रायचौधरी ने कहा कि वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण है । ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति पहले के वर्षोंा के मुकाबले ज्यादा बिगड़ी है । कई ऐसे कारण है जो वायु प्रदूषण को बढ़ा रह हैं । इन कारणों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्र, निजी मोटर वाहनों पर निर्भरता और भवनों में ऊर्जा के बड़ी मात्रा में इस्तेमाल जैसी चीजें शामिल हैं ।
मध्यप्रदेश और उसके पड़ोसी छत्तीसगढ़ राज्य के दो बड़े शहर भोपाल एवं रायपुर अब दुनिया के नक्शे पर विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो गए हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) के ताजा आंकड़ों ने मध्य प्रदेश और उसके पड़ोसी छत्तीसगढ़ के लिए खतरे की घंटी बजा दी है ।
भोपाल जहां खतरे की ओर बढ़ रहा हैं, वहीं ग्वालियर शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली से अब ज्यादा दूर नहीं रहा है । गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सद्प्रयास के अब्दुर जब्बार ने डब्लयूएचओ के नए आंकड़ों को लेकर कहा कि मध्यप्रदेश के ग्वालियर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ने तो वायु प्रदूषण के मामले मेंदेश ही नहीं, दुनिया के तमाम औद्योगिक महानगरों को पीछे छोड़ दिया है, जो एक खतरे की घंटी है । डब्लयूएचओ द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों में दिल्ली को दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित शहर बताया गया है । आंकड़े बताते हैं कि ग्वालियर और रायपुर दोनों शहर वायु में मौजूद सूक्ष्म कणों (पीएम-१०) से होने वाले प्रदूषण के मामले में देश में सबसे आगे हैं । श्री जब्बार कहते हैं कि अति सूक्ष्म कणों (पीएम- २.५) से होने वाले प्रदूषण के मामले में डब्लयूएचओ की रिपोर्ट तो ग्वालियर और रायपुर शहर तो दिल्ली के आसपास खड़े हैं । भोपाल में पीएम - १० की मात्रा तय पैमाने से काफी ज्यादा है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक समझे जाने वाले पीएम-२.५ से हाने वाले प्रदूषण के मामले मेंभोपाल में स्थिति देश के अन्य शहरों की तुलना में बेहतर है । वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले एनजीओ शुरूआत के राजीव लोचन ने हवा में पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) के बारे में बताया कि यह हवा में ठोस अथवा तरल के रूप में मौजूद अति सूक्ष्म कण हैं । इनका व्यास २.५ माइक्रोमीटर से कम होता है, इसलिए उन्हें पीएम-२.५ कहा जाता है और जिनका व्यास १० माइक्रोमीटर से कम होता है, उन्हें पीएम-१० कहा जाता है । उन्होंने बताया कि इन कणों में हवा में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, लेड आदि घुले होते हैं और इससे यह जहरीला हो जाता है । पीएम-२.५ का स्तर ६० से अधिक होने पर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है ।
साढ़े चार लाख बच्च्े ई-कचरा ढो रहे है
देश के करीब साढ़े चार लाख बच्च्े कागज, कलम, पकड़ने की उम्र में बिना पर्याप्त् सुरक्षा के विभिन्न यार्ड और वर्क शॉप में इलेक्ट्रॉनिक ई-कचरा ढोने का काम कर रहे हैं । वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा उद्योग मेंदस से १४ वर्ष आयु वर्ग के बच्च्े काम कर रहे हैं । एसोचैम ने इस बाजार में बच्चें के प्रवेश को रोकने और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त् कानून बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के चार प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण के लिए इस्तेमाल होने वाले बुनियादी ढांचे की हालात बद्तर है । इसकी वजह से प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही पर्यावरण और इनमें काम करने वाले लागों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है । करीब ९५ प्रतिशत कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र और इस बाजार में रद्दी का कारोबार करने वाले डीलरों के द्वारा किया जाता है ।
एसोचैम ने कहा कि वर्ष २०१५ तक देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरा मौजूदा १२.५ लाख टन वार्षिक से २५ प्रतिशत की दर से बढ़कर १५ लाख टन पर पहुंच सकता है । देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पादन के मामले मेंमुबंई ९६००० टन के साथ सबसे ऊपर है । इसके बाद दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर ६७००० टन, बेंगलूर ५७ हजार टन, कोलकाता ३५०००, अहमदाबाद २६०००, हैदराबाद २५ हजार और पुणे १९००० टन के साथ शामिल है । रिपोर्ट के अनुसार देश इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पादन में कम्प्यूटर उपकरणों का योगदान सर्वाधिक ६८ प्रतिशत है । इसके बाद दूरसंचार उपकरणों का १२ प्रतिशत, इलेक्ट्रिकल उपकरणों का आठ प्रतिशत और चिकित्सा उपकरणों का सात प्रतिशत तथा अन्य उपकरणों का योगदान पांच प्रतिशत है ।
रिपोर्ट के अनुसार घरेलू स्तर पर कम्प्यूटर, टेलीविजन, मोबाइल और रेफ्रिजरेटर से निकलने वाले कचरे में १००० से अधिक जहरीले पदार्थ पाए जाते हैं जिससे जल एवं मृदा प्रदूषण बढ़ने के साथ लोगों में सिर दर्द चिड़चिड़ाहट, बैचेनी, उल्टी और आंखों में दर्द जैसी समस्या बढ़ जाती है । इन कारखानों में काम करने वाले लोगों को लीवर, किडनी, स्नायुतंत्र से जुड़ी बीमारियां हो जाती है । रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कारखानों में काम करने वाले अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग नहीं होते । इलेक्ट्रॉनिक कचरे में लीड, कैडमियम, मरकरी, हेकसावैलेंट, क्रोमियम, प्लास्टिक, बेरियम, बेरिलियम और कैंसर जनित पदार्थ भी पाए जाते है ।
इलेक्ट्रॉनिक कचरा में कम्प्यूटर मानीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रेट्यूब, प्रिटेंड सर्किट बोर्ड, मोबाइल फोन एवं चार्जर, काम्पैकट डिस्क, सीडी, हेडफोन, प्लाज्मा टेलीविजन और एयर कंडिशन (एसी) तथा इसके उपकरणों को शामिल किया जाता है । एसोचैम ने कहा कि अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक कचरा सरकारी, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्योगोंसे आते हैं जबकि घरों से निकलने वाले कचरे का योगदान १५ प्रतिशत है । इसके साथ ही इसमें टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन का सर्वाधिक योगदान है जबकि कम्प्यूटर का २० प्रतिशत और मोबाइल फोन का दो प्रतिशत है ।
शीतल पेय से बढ़े किडनी स्टोन के मामले
ठंडे पेय को पानी का विकल्प बना देने के कारण युवाआें में किडनी स्टोन के मामलों में खतरनाक बढ़त देखी जा रही है । कम पानी पीने के अलावा फैट और कारबोहाइड्रेट युक्त आहार प्रमुखता सेे लेने के कारण भी स्टोन की समस्या बढ़ी है । विशेषज्ञों के अनुसार किडनी स्टोन के ३० प्रतिशत मरीजों की आयु २५ से ३५ के बीच है । आजकल किशोरोंऔर युवाआें में खाने के साथ सॉफ्ट ड्रिंक लेने का चलन बढ़ा है । विशेषज्ञों के अनुसार यह चलन स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है । उनके अनुसार इस तरह की जीवनशैली के कारण लोगोंमें कम उम्र में ही किडनी स्टोन की समस्या बढ़ी है । स्त्रूखे मेवे, चॉकलेट और जंक फूड का उपयोग समस्या को गंभीर रूप दे रहा है । हांलाकि किडनी में स्टोन बनने का कोई स्थायी नुकसान नहीं होता है लेकिन कुछ वक्त के लिए कार्यक्षमता पर खासा असर पड़ता है खासतौर पर घर से दूर रहने वाले युवाआें पर । पर्याप्त् पानी पीना, हरी सब्जियां और दूध लेना व जंक फूड खाने से बचना इसकी रोकथाम के उपाय है ।
क्या है किडनी स्टोन ? यह किडनी के भीतर कैल्शियम ऑक्जलेट नामक पदार्थ का कड़ा जमाव है । इसके कारण पसली के नीचे व किनारे की ओर तेज दर्द होता है । दर्द रूक रूककर और घटता-बढ़ता रहता है । पेशाब करने में दर्द एवं उल्टियां या जी मिचलना जैसे लक्षण सामान्यत: दिखाई पड़ते हैं । वैसे तो खाने के बीच पानी भी कम से कम पीना चाहिए जबकि युवा शीतल पेय का अधिक उपयोग कर रहे हैं । वहीं वे दिनभर में आवश्यकता से भी कम पानी का सेवन कर रहे हैं । इस वजह से शरीर के भीतर ऑक्जलेट स्टोन बनने लगा है जो किडनी स्टोन का कारण है । इसके अलावा प्रोटीनयुक्त आहार अधिक मात्रा मेंलेने पर शरीर से यूरिक एसिड का स्त्राव अधिक होता है जो इसका कारण बनता है । कम पानी, ठंडा पेेय, अधिकाधिक प्रोटीनयुक्त आहार, जंक फूड, सोया सॉस जैसे खानपान को अपनाने के कारण २५ से ३५ वर्ष के बीच के मरीज ज्यादा आ रह हैं ।
दुनिया की शीर्ष दो हजार कंपनियोंमें एनटीपीसी
बिजली बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी फोबर्से की सूची में शामिल दुनिया की शीर्ष २००० कंपनियों में ४२४वें स्थान पर है । फोबर्स ग्लोबल सूची दुनिया की बड़ी और प्रभावशाली कंपनियों कंपनियों की वृहत सूची है । इसके साथ किसी कंपनी का नाम जुड़ना काफी महत्त्व का माना जाता है । एनटीपीसी के कोयला और गैस से चलने वाले क्रमश १६ और ७ बिजली संयंत्र हैं । इसके अलावा कंपनी के सौर ऊर्जा चलित सात बिजली संयंत्र भी है तथा सात अन्य संयंत्र संयुक्त उपक्रम के रूप मेंकाम कर रहे हैं । एनटीपीसी के इन संयंत्रों की कुल बिजली उत्पादन क्षमता ४३०३९ मेगावाट है । देश में बिजली की कुलखपत का २८ प्रतिशत हिस्सा इन संयंत्रों से आता है ।
सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में दिल्ली, भोपाल और रायपुर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की ओर से कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है । एम्बिएंट एयर पाल्यूशन नामक इस रिपोर्ट के २०१४ के संस्करण में ९१ देशों में वायु प्रदूषण की स्थिति का ब्यौरा दिया गया है । राष्ट्रीय राजधानी वायु प्रदुषण का रूवरूप २.५ माइक्रेान्स से कम परएम २.५ सघनता के तहत आता है जो सबसे गंभीर माना जाता है । सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट की अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि डब्लयूएचओ का नया विवरण भारत में स्वास्थ्य संबंधी चिंताआें की पुष्टि करता है ।
सुश्री रायचौधरी ने कहा कि वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण है । ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति पहले के वर्षोंा के मुकाबले ज्यादा बिगड़ी है । कई ऐसे कारण है जो वायु प्रदूषण को बढ़ा रह हैं । इन कारणों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्र, निजी मोटर वाहनों पर निर्भरता और भवनों में ऊर्जा के बड़ी मात्रा में इस्तेमाल जैसी चीजें शामिल हैं ।
मध्यप्रदेश और उसके पड़ोसी छत्तीसगढ़ राज्य के दो बड़े शहर भोपाल एवं रायपुर अब दुनिया के नक्शे पर विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो गए हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) के ताजा आंकड़ों ने मध्य प्रदेश और उसके पड़ोसी छत्तीसगढ़ के लिए खतरे की घंटी बजा दी है ।
भोपाल जहां खतरे की ओर बढ़ रहा हैं, वहीं ग्वालियर शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली से अब ज्यादा दूर नहीं रहा है । गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सद्प्रयास के अब्दुर जब्बार ने डब्लयूएचओ के नए आंकड़ों को लेकर कहा कि मध्यप्रदेश के ग्वालियर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ने तो वायु प्रदूषण के मामले मेंदेश ही नहीं, दुनिया के तमाम औद्योगिक महानगरों को पीछे छोड़ दिया है, जो एक खतरे की घंटी है । डब्लयूएचओ द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों में दिल्ली को दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित शहर बताया गया है । आंकड़े बताते हैं कि ग्वालियर और रायपुर दोनों शहर वायु में मौजूद सूक्ष्म कणों (पीएम-१०) से होने वाले प्रदूषण के मामले में देश में सबसे आगे हैं । श्री जब्बार कहते हैं कि अति सूक्ष्म कणों (पीएम- २.५) से होने वाले प्रदूषण के मामले में डब्लयूएचओ की रिपोर्ट तो ग्वालियर और रायपुर शहर तो दिल्ली के आसपास खड़े हैं । भोपाल में पीएम - १० की मात्रा तय पैमाने से काफी ज्यादा है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक समझे जाने वाले पीएम-२.५ से हाने वाले प्रदूषण के मामले मेंभोपाल में स्थिति देश के अन्य शहरों की तुलना में बेहतर है । वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले एनजीओ शुरूआत के राजीव लोचन ने हवा में पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) के बारे में बताया कि यह हवा में ठोस अथवा तरल के रूप में मौजूद अति सूक्ष्म कण हैं । इनका व्यास २.५ माइक्रोमीटर से कम होता है, इसलिए उन्हें पीएम-२.५ कहा जाता है और जिनका व्यास १० माइक्रोमीटर से कम होता है, उन्हें पीएम-१० कहा जाता है । उन्होंने बताया कि इन कणों में हवा में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, लेड आदि घुले होते हैं और इससे यह जहरीला हो जाता है । पीएम-२.५ का स्तर ६० से अधिक होने पर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है ।
साढ़े चार लाख बच्च्े ई-कचरा ढो रहे है
देश के करीब साढ़े चार लाख बच्च्े कागज, कलम, पकड़ने की उम्र में बिना पर्याप्त् सुरक्षा के विभिन्न यार्ड और वर्क शॉप में इलेक्ट्रॉनिक ई-कचरा ढोने का काम कर रहे हैं । वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा उद्योग मेंदस से १४ वर्ष आयु वर्ग के बच्च्े काम कर रहे हैं । एसोचैम ने इस बाजार में बच्चें के प्रवेश को रोकने और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त् कानून बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के चार प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण के लिए इस्तेमाल होने वाले बुनियादी ढांचे की हालात बद्तर है । इसकी वजह से प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही पर्यावरण और इनमें काम करने वाले लागों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है । करीब ९५ प्रतिशत कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र और इस बाजार में रद्दी का कारोबार करने वाले डीलरों के द्वारा किया जाता है ।
एसोचैम ने कहा कि वर्ष २०१५ तक देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरा मौजूदा १२.५ लाख टन वार्षिक से २५ प्रतिशत की दर से बढ़कर १५ लाख टन पर पहुंच सकता है । देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पादन के मामले मेंमुबंई ९६००० टन के साथ सबसे ऊपर है । इसके बाद दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर ६७००० टन, बेंगलूर ५७ हजार टन, कोलकाता ३५०००, अहमदाबाद २६०००, हैदराबाद २५ हजार और पुणे १९००० टन के साथ शामिल है । रिपोर्ट के अनुसार देश इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पादन में कम्प्यूटर उपकरणों का योगदान सर्वाधिक ६८ प्रतिशत है । इसके बाद दूरसंचार उपकरणों का १२ प्रतिशत, इलेक्ट्रिकल उपकरणों का आठ प्रतिशत और चिकित्सा उपकरणों का सात प्रतिशत तथा अन्य उपकरणों का योगदान पांच प्रतिशत है ।
रिपोर्ट के अनुसार घरेलू स्तर पर कम्प्यूटर, टेलीविजन, मोबाइल और रेफ्रिजरेटर से निकलने वाले कचरे में १००० से अधिक जहरीले पदार्थ पाए जाते हैं जिससे जल एवं मृदा प्रदूषण बढ़ने के साथ लोगों में सिर दर्द चिड़चिड़ाहट, बैचेनी, उल्टी और आंखों में दर्द जैसी समस्या बढ़ जाती है । इन कारखानों में काम करने वाले लोगों को लीवर, किडनी, स्नायुतंत्र से जुड़ी बीमारियां हो जाती है । रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कारखानों में काम करने वाले अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग नहीं होते । इलेक्ट्रॉनिक कचरे में लीड, कैडमियम, मरकरी, हेकसावैलेंट, क्रोमियम, प्लास्टिक, बेरियम, बेरिलियम और कैंसर जनित पदार्थ भी पाए जाते है ।
इलेक्ट्रॉनिक कचरा में कम्प्यूटर मानीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रेट्यूब, प्रिटेंड सर्किट बोर्ड, मोबाइल फोन एवं चार्जर, काम्पैकट डिस्क, सीडी, हेडफोन, प्लाज्मा टेलीविजन और एयर कंडिशन (एसी) तथा इसके उपकरणों को शामिल किया जाता है । एसोचैम ने कहा कि अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक कचरा सरकारी, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्योगोंसे आते हैं जबकि घरों से निकलने वाले कचरे का योगदान १५ प्रतिशत है । इसके साथ ही इसमें टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन का सर्वाधिक योगदान है जबकि कम्प्यूटर का २० प्रतिशत और मोबाइल फोन का दो प्रतिशत है ।
शीतल पेय से बढ़े किडनी स्टोन के मामले
ठंडे पेय को पानी का विकल्प बना देने के कारण युवाआें में किडनी स्टोन के मामलों में खतरनाक बढ़त देखी जा रही है । कम पानी पीने के अलावा फैट और कारबोहाइड्रेट युक्त आहार प्रमुखता सेे लेने के कारण भी स्टोन की समस्या बढ़ी है । विशेषज्ञों के अनुसार किडनी स्टोन के ३० प्रतिशत मरीजों की आयु २५ से ३५ के बीच है । आजकल किशोरोंऔर युवाआें में खाने के साथ सॉफ्ट ड्रिंक लेने का चलन बढ़ा है । विशेषज्ञों के अनुसार यह चलन स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है । उनके अनुसार इस तरह की जीवनशैली के कारण लोगोंमें कम उम्र में ही किडनी स्टोन की समस्या बढ़ी है । स्त्रूखे मेवे, चॉकलेट और जंक फूड का उपयोग समस्या को गंभीर रूप दे रहा है । हांलाकि किडनी में स्टोन बनने का कोई स्थायी नुकसान नहीं होता है लेकिन कुछ वक्त के लिए कार्यक्षमता पर खासा असर पड़ता है खासतौर पर घर से दूर रहने वाले युवाआें पर । पर्याप्त् पानी पीना, हरी सब्जियां और दूध लेना व जंक फूड खाने से बचना इसकी रोकथाम के उपाय है ।
क्या है किडनी स्टोन ? यह किडनी के भीतर कैल्शियम ऑक्जलेट नामक पदार्थ का कड़ा जमाव है । इसके कारण पसली के नीचे व किनारे की ओर तेज दर्द होता है । दर्द रूक रूककर और घटता-बढ़ता रहता है । पेशाब करने में दर्द एवं उल्टियां या जी मिचलना जैसे लक्षण सामान्यत: दिखाई पड़ते हैं । वैसे तो खाने के बीच पानी भी कम से कम पीना चाहिए जबकि युवा शीतल पेय का अधिक उपयोग कर रहे हैं । वहीं वे दिनभर में आवश्यकता से भी कम पानी का सेवन कर रहे हैं । इस वजह से शरीर के भीतर ऑक्जलेट स्टोन बनने लगा है जो किडनी स्टोन का कारण है । इसके अलावा प्रोटीनयुक्त आहार अधिक मात्रा मेंलेने पर शरीर से यूरिक एसिड का स्त्राव अधिक होता है जो इसका कारण बनता है । कम पानी, ठंडा पेेय, अधिकाधिक प्रोटीनयुक्त आहार, जंक फूड, सोया सॉस जैसे खानपान को अपनाने के कारण २५ से ३५ वर्ष के बीच के मरीज ज्यादा आ रह हैं ।
दुनिया की शीर्ष दो हजार कंपनियोंमें एनटीपीसी
बिजली बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी फोबर्से की सूची में शामिल दुनिया की शीर्ष २००० कंपनियों में ४२४वें स्थान पर है । फोबर्स ग्लोबल सूची दुनिया की बड़ी और प्रभावशाली कंपनियों कंपनियों की वृहत सूची है । इसके साथ किसी कंपनी का नाम जुड़ना काफी महत्त्व का माना जाता है । एनटीपीसी के कोयला और गैस से चलने वाले क्रमश १६ और ७ बिजली संयंत्र हैं । इसके अलावा कंपनी के सौर ऊर्जा चलित सात बिजली संयंत्र भी है तथा सात अन्य संयंत्र संयुक्त उपक्रम के रूप मेंकाम कर रहे हैं । एनटीपीसी के इन संयंत्रों की कुल बिजली उत्पादन क्षमता ४३०३९ मेगावाट है । देश में बिजली की कुलखपत का २८ प्रतिशत हिस्सा इन संयंत्रों से आता है ।
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