गुरुवार, 10 जुलाई 2014

स्वास्थ्य
विद्यालय केंटीन, बीमारी का नया ठिकाना
अमिताभ पाण्डेय

    भारत  के विद्यालयों में स्थापित केंटीन बच्चें के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं । इसकी अनेक वजहें हैं । इस तरह की लापरवाही न केवल बच्चें को बीमार कर रही है, बल्कि वह उनके मानस पर जीवनभर स्वच्छता के प्रति अनाग्रह बना रही है । आवश्यकता इस बात की है कि विद्यालयों के केंटीन बच्चें के लिए आदर्श बने एवं वे जीवनभर स्वच्छ व पौष्टिक भोजन के प्रति जागरूक बने रह सकें ।
    अपने बच्चें की सेहत को लेकर चिंता करने वाले माता पिता यह जानकर हैरान हो सकते हैं कि विद्यालयों की कैंटीन भी बच्चें को बीमार कर सकती है । इसका कारण कैंटीन में साफ सफाई का पर्याप्त प्रबंध न होना और उसमें बिकने हानिकारक खाद्य पदार्थ हैं । कैंटीन में बच्चें को खाने पीने के लिए जो खाद्य-पेय पदार्थ उपलब्ध कराए जाते हैंउनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की कोई नियमित व्यवस्था नहीं है । इन पदार्थों को बनाने वाले स्वच्छता, शुद्धता संबंधी कितने नियमों का पालन करते हैं इसकी भी कोई गारंटी देने वाला नहीं हैं । कैंटीन के साफ सुथरे वातावरण की चिंता भी विद्यालय प्रबंधन से जुड़े लोग कम ही करते हैं । इससे जुड़े अधिकांश शीर्ष अधिकारियों ने कितनी बार कैंटीन का निरीक्षण किया इसका सीधा और स्पष्ट जवाब बहुत कम विद्यालयों से ही मिल सकेगा । इससे जाहिर होता है प्रबंधन कैंटीन की साफ-सफाई और वहां बिकने वाले खाद्य-पेय पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर गंभीर नहीं है ।  
     सरकार के जिन विभागों के  पास खाद्य-पेय पदार्थों की गुणवत्ता की जांच का जिम्मा है वे भी कैंटीन की आकस्मिक जांच नहीं करते हैं । निजी विद्यालयों से लेकर सरकारी विद्यालयों तक में कैंटीन का हाल खराब है । शायद यही कारण है कि मध्यान्ह भोजन को खाकर बच्चें के बीमार हो जाने की शिकायतें अक्सर मिलती रहने के बाद भी कैंटीन की साफ-सफाई और वहां बनने बिकने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का लेकर सरकारी स्तर पर नियमित प्रभावी कार्यवाही अब तक शुरू नहीं हो सकी है । यदि इस संबंध में नियम कानून बनाए भी गए हैंतो उनका क्रियान्वयन देखने को नहीं मिल रहा है ।
    हाल ही में दिल्ली के लगभग २५० सरकारी एवं निजी विद्यालयों की कैंटीन और वहां बिकने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थो को लेकर एक अध्ययन किया गया । दिल्ली विश्वविद्यालय के  खाद्य तकनीक विभाग द्वारा भास्कराचार्य महाविद्यालय के सहयोग से कराए गए इस अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट तैयार हुई वह कैंटीन की अव्यवस्था व गंदगी का खुलासा करती हैं ।  
    इस रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ कि कैंटीन में तैयार होने वाले खाने की गुणवत्ता  ठीक नहीं है । वहां का पानी भी अशुद्ध है व पीने योग्य नहीं है । अशुद्ध पानी के सेवन से बच्चें के पेट तक पहंुचने वाले हानिकारक जीवाणु बच्चें को उल्टी-दस्त सहित अन्य बीमारियांे का शिकार बना रहे  हैं। कैंटीन में तैयार होने वाला खाना जो लोग बनाते हैं उन्हें इस बात कि जानकारी नहीं है कि खाने की चीजों को स्वच्छ और गुणवत्ता के साथ कैसे तैयार किया जाए । सब्जियों को सही तरीके से धोना, जिस बर्तन में खाना तैयार किया जाना है उसको गंदगी मुक्त रखने का काम भी प्रतिदिन जल्दबाजी में ही किया जाता है ।
    इस अध्ययन के अनुसार २५० विद्यालयों में से ४० प्रतिशत पाठशालाओं में खाना बनाने के बर्तन साफ नहीं मिले । १७ प्रतिशत विद्यालयों में कैंटीन के कर्मचारी अशिक्षित मिले । २९ प्रतिशत शालाओं में खाना बनाने में उपयोग किए जाने वाले चाकू सहित अन्य बर्तन पूरी तरह साफ नहीं मिले । ८० प्रतिशत विद्यालयों की कैंटीन के कर्मचारी बिना एप्रेन और दस्ताने पहने हुए काम करते मिले । ४५ प्रतिशत पाठशालाओं की कैंटीन  में तो वहां काम करने वाले कर्मचारी खुद ही खांसी, सर्दी, जुकाम सहित अन्य संक्रामक बीमारियों के शिकार पाए गए । १० प्रतिशत से अधिक विद्यालयों की कैंटीन में पेयजल स्त्रोत गंदगीयुक्त वातावरण में पाए गए जहां का पानी शुद्ध नहीं था ।
    इधर मध्यप्रदेश के विद्यालयांेें की कैंटीनोंका हाल भी ज्यादा अच्छा नहीं है । यदि यहां भी इसी प्रकार कोई अध्ययन किया जाए तो यह तथ्य सामने आएगा कि कैंटीन  की व्यवस्था ठीक नहीं है । इस मामले में निजी विद्यालयों का हाल भी सरकारी जैसा ही है। विद्यालयों की कैंटीन की चिंता विद्यालय प्रबंधन की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहती है इसी कारण बच्च्े बीमार होते रहते हैं ।
    आवश्यकता इस बात की है कि विद्यालयों में बनने बिकने वाली खाद्य सामग्री पेय पदार्थ गुणवत्तायुक्त हों, कैंटीन साफ सुथरी, वहां काम करने वाले कर्मचारी प्रशिक्षित हों इसकी जिम्मेदारी सरकार के स्तर पर तय की जाना चाहिए । कैंटीन का आकस्मिक निरीक्षण हो इसके लिए लगातार अभियान चलाया जाना चाहिए ।
    पाठशालाओं में बच्चें को पौष्टिक और गुणवत्तायुक्त खाद्य पेय पदार्थ उपलब्ध हों इसके लिए सख्त नियम कानून बनाए जाएंं । कैंटीन में बिकने वाले हानिकारक खाद्य पदार्थोें की बिक्री प्रतिबंधित की जाना      चाहिए । इस संबंध में जंक फूड का जिक्र करना भी जरूरी होगा । जंक फूड से आशय बर्गर, पिज्जा, पेस्ट्री, केके, सोडा, केंडी, जेम्स और अत्यधिक नमक व शक्कर वाले खाद्य पदार्थों से है जो बच्चें को स्वादिष्ट लगते हैं। स्वाद के चक्कर में बच्च्े अपने स्वास्थ्य का कितना नुकसान करते हैं इसका उन्हें पता नहीं होता । जंक फूड को चिकित्सकों द्वारा नुकसानदायक बताए जाने के बाद भी विद्यालयों में भी इसकी बिक्री खूब हो रही है । यह बच्चें को बीमार बना रहा है । अब समय आ गया है कि बच्चें को इससे होने वाले नुकसान के बारे में शालाओं में बताया जाए और इसे कैंटीन में मिलने बिकने पर रोक लगाई जाए ।
    यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जंक फूड को बच्चें के लिए नुकसानदेह बताया है । संगठन ने वर्ष २०११ में  एक अध्ययन रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए विद्यालयों में जंक फूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया । इस निर्देश पर भारत में अब तक अमल नहीं हो सका है, जबकि दुनिया अनेक देशों के विद्यालय जंक फूड को कैंटीन  से बाहर कर चुके हैं ।
    ब्रिटेन में तो वर्ष २००५ से ही पाठशालाओं में जंक फूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है । वर्ष २०१० में संयुक्त अरब अमीरात ने भी जंक फूड की बिक्री पर रोक लगा दी । इसके साथ ही कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, मेक्सिको, स्कॉटलैंड सहित अनेक देशों ने जंक फूड को विद्यालयों में बेचने पर प्रतिबंध लगा रखा है । अमेरिका मेंं भी विद्यालयों में जंक फूड को नहीं बेचा जा सकता है ।  भारत के विद्यालयों में भी जंक फूड की बिक्री बंद किए जाने पर अभी विचार हो रहा है । इसकी बिक्री तत्काल बंद किए जाने के आदेश क्यों नहीं किए जा रहे है ?
    क्या हमारे देश की सरकार को बच्चें के स्वास्थ्य की ज्यादा चिन्ता नहीं है ? देश को बीमार नहीं स्वस्थ बच्चें की जरूरत है क्योंकि स्वस्थ और शिक्षित बच्च्े ही देश का भविष्य हैं । इससे होने वाले नुकसान से बच्चें को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं समाज की भी है । हम अपने बच्चें को जंक फूड से होने वाले नुकसान बताएं तो उसका असर भी अवश्य ही देखने को मिलेगा । सरकार और समाज की ओर से इसके लिए नियमित जागरूकता अभियान चलाए जाने की भी जरूरत है ।

कोई टिप्पणी नहीं: