रविवार, 10 अगस्त 2014

पर्यावरण समाचार
    मध्यप्रदेश में बुरहानपुर जिले में हजारों पेड़-पौधों और सैकड़ों प्राणियों को अपने घर में जगह देकर दिनरात उनकी देखभाल में अपना समय बिताने वाले ४८ वर्षीय समाजसेवी शाहरूख एम. हवलदार अनोखे पर्यावरण मित्र हैं । उन्होनें हर उस सामग्री का उपयोग किया, जिन्हें लोग कचरा समझकर फेंक देते हैं ।
    श्री हवालदार ने पुराने जुते-चप्पल, बल्ब, ट्यूबलाइट्स फालतू इंजेक्शन, परखनलियां, टूथपेस्ट के खाली वैपर, सौंदर्य प्रसाधन के खाली डिब्बोंआदि में हजारों बोंसाई पेड़ व अन्य पौधे लगाकर अनोखी बगिया बना ली । करीब पौने तीन एकड़ में फैलीइस बगिया में देश-विदेश से लाए गए पक्षियों के साथ अपना एक अनोखा परिवार बसाया । बगिया के मध्य स्थित घर में अपने परिजनों के साथ इस अनोखी सुंदर पर्यावरणीय दुनिया में वे खुशमिजाज जीवन जी रहे हैं । सबसे अलग हटकर अनोखा काम कर मिसाल बने हवालदार को शासन-प्रशासन और कई संगठनों ने पुरस्कृत किया । घर में सजी सैकड़ों शील्ड व प्रमाण इस बात के सबूत हैं ।
    श्री हवालदार ने बताया गार्डनिंग का मुझ्े बचपन से ही शौक है । मेरे माता-पिता से इसकी प्रेरणा मिली । मेरी मां एमी हवालदार एवं डॉ. एम.आर. हवालदार को भी बागवानी का शौक था । मेरे माता-पिता द्वारा लगाए गए ५० से भी अधिक वर्ष पुराने पेड़-पौधों को भी मैंने सहेजकर रखा है । मेर द्वारा लगाए गए करीब २० हजार पौधे एवं बोंसाई पेड़ों के साथ      मैं उन पेड़-पौधों की भी देखरेख करता हॅू ।
ग्लोबल वार्मिग से बचा सकती है चींटी
    चींटी हमें ग्लोबल वार्मिग से बचा सकती है । शोधार्थियों के मुताबिक, चीटियों ने ६.५ करोड़ साल पहले अपनी उत्पत्ति के बाद से बड़ी मात्रा में हवा से कार्बन डाईऑक्साइड को सोखा है । एक चींटी का जीवन एक साल से अधिक का नहीं होता है । लेकिन जैसे-जैसे उसकी संख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे वह वातावरण को ठण्डा करने में मदद करती है ।
    टेंप शहर में स्थित अरिजोना स्टेट विश्वविघालय के एक भू-गर्भशास्त्री रोनाल्ड डॉर्न ने कहा, चींटियां पर्यावरण को बदल रही हैं । डॉर्न ने पाया की चीटिंया की कुछ प्रजाति खनिज में हवा को सोख कर कैल्शियम कार्बोनेट या लाइमस्टोन बनाने में मदद करती है । लाइमस्टोन बनाने की प्रक्रिया में चींटी हवा से कार्बन डाईऑक्साइड की कुछ मात्रा घटा देती है । अध्ययन दल ने यह भी पाया कि चीटियां बेसाल्ट पत्थर के टूटने मेंभी मदद करती है । उनके मुताबिक, बेसाल्ट पत्थर को यदि खुले में छोड़ दिया जाए तो जितने समय में यह टूट-फूट कर मिट्टी में मिल जाएगा, चींटियां यह काम ५० से ३०० गुणा अधिक तेजी से कर सकती हैं । डॉर्न ने कहा, चींटियां खनिज से कैल्शियम और मैग्निशियम निकाल सकती है और उसका उपयोग लाइमस्टोन बनाने में करती हैं । इस प्रक्रियामें वे कार्बन डाईऑक्साइड गैस की कुछ मात्रा पत्थरों में कैंद कर लेती हैं ।
बच्चें को पीटा तो जेल जाना पड़ेगा
    स्कूलोंऔर घरों में बच्चें को पीटने वाले शिक्षकों और अभिभावकों को अब मारपीट की आदत छोड़ना पड़ेगी । सरकार बच्चें के साथ होने वाले इस दुर्व्यवहार को रोकने के लिए सख्त कानून बना रही हैं । इसके तहत दोष सिद्ध होने पर अधिकतम पांच साल की सजा हो सकती है ।
    बाल न्याय कानून - २००० (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) के स्थान पर केन्द्र सरकार नया कानून बना रही है । इसे बाल न्याय (देखभाल और संरक्षण) विधेयक २०१४ नाम दिया गया है । विधेयक संसद के चालू सत्र में पेश किया जा सकता है । नए कानून को बच्चें के अधिकारों और इस संबंध में अन्य देशों में लागू कानूनों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है ।
    नए कानून के प्रावधानों के तहत शारीरिक दण्ड को अपराध माना गया है । मंत्रिमण्डल की मंजूरी के बाद विधेयक संसद में पेश किया जाएगा । कानून को हरी झण्डी मिली तो भारत उन ४० देशों में शामिल हो जाएगा, जहां बच्चें की पिटाई करना अपराध है । पहली बार दोषी होने पर अर्थदण्ड के साथ छह महीने का कारावास हो सकता है । लेकिन दूसरी बार अपराध पर तीन से अधिकतम पांच साल की सजा हो सकती है ।

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