रविवार, 10 अगस्त 2014

विज्ञान-जगत
पहली लोकसभा के पहले वैज्ञानिक सदस्य
चक्रेश जैन
    बासठ वर्ष पहले यानी १९५१-५२ में लोकसभा के प्रथम चुनाव में वैज्ञानिक मेघनाद साहा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे । उन्होनें उत्तर-पश्चिम कलकत्ता (अब कोलकाता) से नामांकन पर्चा भरा । यह वही कलकत्ता है, जो उन दिनों कई वैज्ञानिकों की कर्मभूमि रहा है ।
    श्री साहा यहां से भारी मतों से विजयी हुए । उनके निर्वाचित होने पर वैज्ञानिकों सहित सभी को अत्यधिक आश्चर्य हुआ था । मेघनाथ साहा मूलत: वैज्ञानिक थे और उनकी राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में ख्याति भौतिकीविद के रूप में थी । उनकी जीत पर सबसे अधिक खुशी जिन वैज्ञानिकों ने जाहिर की, उनमें महान वैज्ञानिक एवं विज्ञान संप्रेषक जेबीएस हाल्डेन शामिल थे । 
     वैज्ञानिकों के लिए लोक सभा चुनाव जीतना तब भी एक चुनौती था, आज भी एक चुनौती है । पहली बात, वैज्ञानिक चुनाव में हिस्सा नहीं लेते । दूसरी, चुनाव जीतने के राजनीतिक गुर उन्हें मालूम नहीं होते । हमारे वैज्ञानिक प्राय: सामाजिक जीवन से अलग-थलग शोध की दुनिया में खोए रहते हैं । उनकी लोकप्रियता फिल्म, रंगमंच, खेल और पेशेवर राजनेताआें जैसी नहीं होती । एक बार और, वे जनसभाआें में धुआंधार भाषण देने और मतदाताआें को अपने पक्ष में करने की कला में भी पारंगत नहीं होते । लेकिन इस दृष्टि से मेघनाथ साहा अन्य वैज्ञानिकों से सर्वथा भिन्न थे । उन्हें मालूम था कि अपनी बातों को मनवाने का यथोचित और सशक्त मंच लोकसभा है । जब साहा पहली बार संसद भवन पहुंचे तो एक सांसद ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि वैज्ञानिकों को अपनी प्रयोगशाला में रहकर ही रिसर्च करनी चाहिए । इस पर उनका सहज उत्तर था - मैं संसद भवन को भी अपनी प्रयोगशाला मानता हॅूं । उनके इस उत्तर से कुछ सांसद भौंचक्के रह गए थे । मेघनाद साहा ने लोकसभा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ वैज्ञानिक मुद्दों को जोरदार ढंग से रख और अपनी अलग पहचान बनाई ।
    विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक गतिविधियों से उनका सरोकार रहा । आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय और जगदीशचन्द्र बसु जैसे अध्यापकों ने उनके विद्यार्थी जीवन को संवारकर नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया था । साहा ने युवास्था में ग्रामीण इलाकों में निकटता से गरीबी देखी, जिसका गहरा असर उनके मन पर पड़ा था । उनका मानना था कि सभी समस्याआें का एक प्रमुख कारण आर्थिक परेशानियां है, जिनका समाधान वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है ।
    मेघनाद साहा को योजना आयोग का सदस्य मनोनीत किया गया । उन दिनों वैज्ञानिकों के लिए यह बड़ा और दुर्लभ सम्मान था । उन्होनें योजना आयोग में देश की पंचवर्षीय योजनाआें में विज्ञान के समावेश पर विशेष जोर दिया । साहा ने विदेशों में विज्ञान के उपयोग में समाज में लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन देखा था । वे चाहते थे ऐसा परिवर्तन हमारे यहां भी दिखाई दे ।
    मेघनाद साहा बहुआयामी प्रतिभा के वैज्ञानिक थे । वे खगोल भौतिकी के विद्वान थे । उन्होनेंऊष्मीय आयनन की मौलिक व्याख्या की थी । १९५२ में वैज्ञानिक एवं औघोगिक अनुसंधान परिषद ने भारतीय कैलेण्डर समिति गठित की, जिसका अध्यक्ष मेघनाद साहा को बनाया गया । उन्होनें शक संवत कैलेण्डर के निर्माण मेंअहम योगदान किया । साहा ने देश में परमाणु भौतिकी को बढ़ावा देने के लिए १९४८ में कोलकाता में नाभिकीय भौतिकी संस्थान की स्थापना की ।
    उनकी विज्ञान समाचारों में विशेष रूचि थी । कोलकाता में १९३४ में इंडियन साइंस न्यूज एसोसिएशन की स्थापना की गई, जिसके प्रथम सचिव मेघनाद साहा थे । वे इसी वर्ष विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के जनरल प्रेसीडेंट चुने गए । उन्होनें इस मंच से नदियों में बाढ़ और अखिल भारतीय विज्ञान अकादमी के गठन पर विशेष जोर दिया ।
    आरंभिक वर्षो में साहा और सत्येन्द्रनाथ बोस ने मिलकर अनुसंधान किया, लेकिन आगे चलकर साहा लोकसभा और बोस राज्यसभा में पहुंच गए । राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में विज्ञान, कला, खेल, साहित्य आदि क्षेत्रों की बारह प्रतिभाआें को नामजद किया जाता है । बोस को १९५२ में राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया था ।
    १९५१ से आज तक लोकसभा चुनाव के इतिहास से स्पष्ट हो रहा है कि मघनाद साहा ने एक नया इतिहास रचा और एक विख्यात वैज्ञानिक और लोकप्रिय सांसद दोनों रूपों में अपनी पहचान बनाई । उन्होनें लोकसभा के विभिन्न सत्रों और अधिवेशनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया । उन्होनें सदन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा था कि वैज्ञानिकों को आमजन की अपेक्षाआें को पूरा करने के लिए सार्वजनिक जीवन से जुड़ना चाहिए ।
    वास्तव में मेघनाद साहा अकेलेवैज्ञानिक थे जिन्होनें लोकसभा में पहुंच कर वैज्ञानिकांे की अलग-थलग रहने वाली छवि को खण्डित किया । उन्होनें वैज्ञानिक बिरादरी को एक संदेश यह दिया कि अच्छे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के लिए लोकसभा चुनाव चुनौती नहीं है । दूसरा यह कि हमारे वैज्ञानिकों को सामाजिक उत्तरदायित्वों से जुड़ना चाहिए । तीसरा, संसद में जनसामान्य से जुड़े वैज्ञानिक मुद्दों को उठाने के लिए वैज्ञानिक नेतृत्व को प्रोत्साहन मिलना चाहिए ।

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