सम्पादकीय
वैज्ञानिक शोध में खुलेपन की घोषणा
चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान प्रतिष्ठान और चीनी विज्ञान अकादमी ने पिछले दिनों घोषणा की कि जो शोधकर्ता उनके वित्तीय सहयोग से शोध कार्य करते हैं, उन्हें अपने शोध पत्र को प्रकाशन के एकसाल के अंदर सार्वजनिक दायरे में लाना होगा । गौरतलब है कि उक्त दो संस्थाएं चीन में अधिकांश वैज्ञानिक शोध को वित्तीय सहायता देती हैं ।
आजकल दुनिया भर में वैज्ञानिक शोध संबंधी प्रकाशनों को सार्वजनिक दायरे में रखे जाने की मुहिम चल रही है । कई देश पहले ही इस आशय की घोषणाएं करके व्यवस्थाएं बना चुके हैं । अन्य देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं । मसलन यूएस के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने पहले ही यह नियम बना दिया है कि उसके पैसे से किए जाने वाले शोध से तैयार हुए शोध पत्रों को एक वर्ष के अंदर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध किसी ऑनलाइन शोध पत्रिका मेंप्रकाशित करना होगा । इसी प्रकार से ब्रिटेन में तो प्रकाशन के दिन से ही शोध पत्र को खुला रखना होगा ।
चीन द्वारा लिए गए निर्णय के महत्व को इस परिप्रेक्ष्य मेंदेखा जाना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षोमें वैज्ञानिक शोध पत्रों में उसका योगदान तेजी से बढ़ा है । मसलन, साइन्स साइटेशन इंडेक्स के डैटाबेस से पता चलता है कि चीन में २००३ में कुल ४८००० शोध पत्र प्रकाशित हुए थे जो दुनिया भर में प्रकाशित कुल शोध पत्रों में से ५.६ प्रतिशत थे । तुलना के लिए देखें कि वर्ष २०१२ में चीन से १,८६,००० शोध पत्र प्रकाशित हुए जो कि विश्व के कुल शोध पत्रों में से १३.९ प्रतिशत थे ।
चीनी वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित उपरोक्त शोध पत्रों में से ५५.२ प्रतिशत के लिए वित्तीय समर्थन राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान प्रतिष्ठान से मिला था । इसके अलावा चीनी विज्ञान अकादमी से जुड़े वैज्ञानिकों ने १८,००० शोध पत्र प्रकाशित किए थे और ये शोध पत्र सिर्फ वे हैं जो साइंस साइटेशन इंडेक्स में शामिल हुए हैं । इनके अलावा बड़ी संख्या में शोध पत्र अन्य स्थानीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं । तो चीन की उक्त दो अग्रणी विज्ञान संस्थाआें द्वारा किए गए खुलेपन के निर्णय का व्यापक असर होगा । भारत में भी कृषि अनुसंधान परिषद समेत कई संस्थाआें ने खुलेपन की नीति को अपना लिया है ।
चीन के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान प्रतिष्ठान और चीनी विज्ञान अकादमी ने पिछले दिनों घोषणा की कि जो शोधकर्ता उनके वित्तीय सहयोग से शोध कार्य करते हैं, उन्हें अपने शोध पत्र को प्रकाशन के एकसाल के अंदर सार्वजनिक दायरे में लाना होगा । गौरतलब है कि उक्त दो संस्थाएं चीन में अधिकांश वैज्ञानिक शोध को वित्तीय सहायता देती हैं ।
आजकल दुनिया भर में वैज्ञानिक शोध संबंधी प्रकाशनों को सार्वजनिक दायरे में रखे जाने की मुहिम चल रही है । कई देश पहले ही इस आशय की घोषणाएं करके व्यवस्थाएं बना चुके हैं । अन्य देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं । मसलन यूएस के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने पहले ही यह नियम बना दिया है कि उसके पैसे से किए जाने वाले शोध से तैयार हुए शोध पत्रों को एक वर्ष के अंदर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध किसी ऑनलाइन शोध पत्रिका मेंप्रकाशित करना होगा । इसी प्रकार से ब्रिटेन में तो प्रकाशन के दिन से ही शोध पत्र को खुला रखना होगा ।
चीन द्वारा लिए गए निर्णय के महत्व को इस परिप्रेक्ष्य मेंदेखा जाना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षोमें वैज्ञानिक शोध पत्रों में उसका योगदान तेजी से बढ़ा है । मसलन, साइन्स साइटेशन इंडेक्स के डैटाबेस से पता चलता है कि चीन में २००३ में कुल ४८००० शोध पत्र प्रकाशित हुए थे जो दुनिया भर में प्रकाशित कुल शोध पत्रों में से ५.६ प्रतिशत थे । तुलना के लिए देखें कि वर्ष २०१२ में चीन से १,८६,००० शोध पत्र प्रकाशित हुए जो कि विश्व के कुल शोध पत्रों में से १३.९ प्रतिशत थे ।
चीनी वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित उपरोक्त शोध पत्रों में से ५५.२ प्रतिशत के लिए वित्तीय समर्थन राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान प्रतिष्ठान से मिला था । इसके अलावा चीनी विज्ञान अकादमी से जुड़े वैज्ञानिकों ने १८,००० शोध पत्र प्रकाशित किए थे और ये शोध पत्र सिर्फ वे हैं जो साइंस साइटेशन इंडेक्स में शामिल हुए हैं । इनके अलावा बड़ी संख्या में शोध पत्र अन्य स्थानीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं । तो चीन की उक्त दो अग्रणी विज्ञान संस्थाआें द्वारा किए गए खुलेपन के निर्णय का व्यापक असर होगा । भारत में भी कृषि अनुसंधान परिषद समेत कई संस्थाआें ने खुलेपन की नीति को अपना लिया है ।
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