बाल जगत
श्रम के चाबुक से सहमता बचपन
आश्ले सेंग
विश्वभर में बालश्रम अपनी पूरी वीभत्सता के साथ मौजूद है । अब तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी घोषणा कर दी है कि सन् २०१६ तक घृणित बालश्रम के उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता । आवश्यकता इस बात की है कि इस नारकीय स्थिति से विश्वभर के बच्चें को बाहर निकाला जाए । सं.राष्ट्र श्रम संगठन की परिभाषा के अनुसार १६.८० करोड़ बच्च्े बाल श्रमिक हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि संख्या इससे कम से कम तीन गुना तक हो सकती है ।
श्रम के चाबुक से सहमता बचपन
आश्ले सेंग
विश्वभर में बालश्रम अपनी पूरी वीभत्सता के साथ मौजूद है । अब तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी घोषणा कर दी है कि सन् २०१६ तक घृणित बालश्रम के उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता । आवश्यकता इस बात की है कि इस नारकीय स्थिति से विश्वभर के बच्चें को बाहर निकाला जाए । सं.राष्ट्र श्रम संगठन की परिभाषा के अनुसार १६.८० करोड़ बच्च्े बाल श्रमिक हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि संख्या इससे कम से कम तीन गुना तक हो सकती है ।
इक्कसवीं सदी के दूसरे दशक में दरिद्रता की वजह से बच्चें का मजदूरी (साथ ही साथ गुलामी) में लगे रहना दहला देता है, लेकिन यह एक वैश्विक वास्तविकता है । अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की नवीनतम रिपोर्ट `बालश्रम के खिलाफ प्रगति: वैश्विक अनुमान एवं प्रवृत्तियों` में बताया गया है कि सन् २०१२ में कम से कम १६.८० करोड़ बच्च्े `अवांछित` या शोषणकारी बालश्रम की परिभाषा वाली स्थितियों में कार्य कर रहे थे । इसमें से करीब आधे बच्च्े अर्थात ७.३० करोड़ बच्च्े ५ से ११ वर्ष की उम्र के थे । अन्य ४.७४ करोड़ बच्च्े १२ से १४ वर्ष के थे । (आईएलओ की परिभाषा के अनुसार १२ से १४ वर्ष के केवल वह बच्च्े जो दिन में कम से कम १४ घंटे या जोखिम वाली स्थितियों में कार्य करते हैं, की ही गिनती बाल श्रमिकों में होती है ।) सन् २०१२ में १५ से १७ वर्ष तक बच्चें के ४.७५ करोड़ मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें कि ये बच्च्े प्रति सप्ताह ४३ घंटों से ज्यादा समय तक जोखिम भरी स्थितियों में बंधुआ मजदूरों या श्रम के किसी अन्य पीड़ा दायक प्रकार में कार्य कर रहे थे ।
आईएलओ की रिपोर्ट में बाल श्रम के मामलों में लंैगिक असंगति की ओर भी इशारा किया गया है । आईएलओ की परिभाषा के अंतर्गत अवांछित बाल श्रम की श्रेणी में कार्यरत लड़कों की संख्या ९.९० करोड़ व लड़कियों की ६.८ करोड़ थी । लेकिन संगठन ने चेताया है कि आंकड़ों में बाल श्रम का कम दिखाई देने वाला प्रकार घरेलू कामगार का है, जिसे सामान्यतया लड़कियां ही करती हैं। संगठन के अनुसार सन् २०१२ में सन् २००० की बनिस्बत बाल श्रमिकों की संख्या में ७.८ करोड़ की कमी आई है । संगठन और अन्य इस `प्रगति` को लेकर आत्मप्रशंसा के उफान से पटे हैं,लेकिन यह कमी संभवत: सन् २००८ के विश्व आर्थिक संकट का परिणाम हो सकती है। बजाए `अवांछित बालश्रम` को समाप्त करने हेतु कानूनों करो लागू करने के आईएलओ की रिपोर्ट में स्वयं स्वीकार किया गया है कि सन् २००८ के आर्थिक संकट के बाद बाल श्रमिकों के नियोक्ताआें ने खासकर नव किशोरों की संख्या में काफी कमी की ।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन जिन्हें बाल श्रमिक मानता है उसमें से ६.८ करोड़ कृषि क्षेत्र में ५.४ करोड़ सेवा क्षेत्र में (इसमें घरेलू कामगार शामिल हैं) व १.२ करोड़ निर्माण क्षेत्र मेंे कार्य करते हैं। सामने आई संख्या के तकरीबन आधे यानि ८.५ करोड़ बच्च्े खतरनाक श्रेणी के कार्यों में लगे हैं। जिनमें उनका सामना न केवल प्राणघातक चोटों और बीमारियों से होता है, बल्कि कई मामलों में उनकी मृत्यु तक हो जाती है । ये तो वे आंकड़े हैं जो कि संगठन ने उजागर किए हैं। परंतु अनेक अवैध गतिविधियों में संलिप्त बालश्रमिकों को उनके नियोक्ता छुपाकर रखते हैं। वैसे दुनियाभर में बाल श्रम कानूनों की अवहेलना हो रही है । अक्टूबर २०१३ में बाल श्रम पर हुए वैश्विक सम्मेलन में संगठन ने स्वीकार किया था । सन् २०१६ में सर्वाधिक निकृष्ट बाल श्रम को समाप्त करने के लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकती । ऐसा पहली बार हुआ है जबकि कोई सं.राष्ट्र एजेंसी अपने लक्ष्यों और सुनहरी भविष्यवाणी से पीछे हटी हो ।
अंतरराष्ट्रीय कानून बालश्रम के प्रयोग को निषेध करते हैंऔर १५५ देशों ने अब बच्चेंं द्वारा किए जाने वाले अधिकांश श्रम को प्रतिबंधित करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे हैं। इसके बावजूद वैश्विक उत्पीड़न जारी है । अभूतपूर्व संपदा और तकनीकी विकास के बावजूद नियोक्ता और सरकार इसे लाभप्रद मानते हैंऔर चूंकि पूंजीवाद कामगारों और किसानों को लगातार दरिद्रता में ढकेल रहा है ऐसे में ये लोग अपने बच्चें की मदद करने और उन्हें शिक्षित बनाने में असमर्थ रहते हैं।
केवल एक उदाहरण `सेव द चिल्ड्रन` का लेते हैं। उनके अनुसार भारत में ८ करोड़ बच्च्े काम करते हैं। हालांकि भारतीय कानून १४ वर्ष से कम के बच्चें को `खतरनाक` धंधों में कार्य की मनाही करते हैं। इसके बावजूद भारत का श्रम मंत्रालय स्वीकार करता है कि भारत मेंे करीब १.३ करोड़ बच्च्े प्रतिबंधित निर्माण कार्यों जैसे कांच निर्माण, घरेलू कार्य एवं कशीदाकारी का कार्य करते हैं। भारत सरकार की मंंशा बाल श्रम कानूनों के क्रियान्वयन की है ही नहीं और पुलिस भी अक्सर कारखाना मालिकों को पूर्व सूचना दे देती है अथवा छापों के दौरान रिश्वत ले लेती है । इतना ही नहीं व्यापारियों द्वारा कई कार्यकर्ताओं की हत्या भी कर दी गई है । यदि तुलनात्मक रूप से देखें तो बाल श्रम के सर्वाधिक मामले उप सहारा अफ्रीका में पाए जाते हैंयहां १७ वर्ष तक के पांच में से एक बच्च (२१ प्रतिशत) बाल श्रम में फंसा है । एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र और लेटिन अमेरिका एवं केरेबियन्स यह संख्या ९ प्रतिशत है वहीं मध्यपूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका में यह ८ प्रतिशत है ।
गौरतलब है अप्रैल २०१३ में बांग्लादेश के ढाका में स्थित राना प्लाजा गारमेंट फेक्ट्री विध्वंस में मरने वाले श्रमिकों में से एक हजार से ज्यादा बच्च्े थे । दुर्घटना के पश्चात पश्चिमी विक्रेताओं और उत्पादकों ने अनेक प्रकार की सहायता व सुधारों की बात कही थी लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ । बांग्लादेश का वस्त्र उद्योग २२ खरब डॉलर को पार कर गया है और यहां पर छोटी लड़कियां ११ घंटे कार्य करती हैंऔर शारीरिक व मौखिक अत्याचार का शिकार होती है ।
वहीं पेरु में प्रति वर्ष ३ अरब डॉलर का सोना निर्मित होता है । वहां पर बच्च्े खदानों में कार्य करते हैं। इन्हें जरा सी मजदूरी के लिए न केवल लंबा इंतजार करना पड़ता है, बल्कि ये जहरीले पारे के संपर्क में आते हैं और मलेरिया जैसी प्राणघातक बीमारियों एवं औद्योगिक दुर्घटनाओं को भी झेलते हैं । अमेरिका जैसे विकसित देश में भी बाल श्रम पाया जाता है । केलिफोर्निया में बच्च्े फल एवं सब्जियां उगाते हैं एवं उत्तरी केरोलिना में वे तंबाखू के खेतों में कार्य करते हैं। इसमें से कुछ पलायन करके आए बच्च्े होते हैं, लेकिन अन्य बच्च्े अमेरिकी ही हैं। लेकिन वहां इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है । अमेरिका के फेयर लेबर स्टेंडर्ड एक्ट (न्यायसंगत श्रम मानक अधिनियम) के अंतर्गत बच्च्े पालकों की सहमति से कृषि क्षेत्र में कार्य कर सकते हैं।
बहुराष्ट्रीय निगम जो कि मध्य आय वर्ग के बीच अपने उत्पाद बेचने को लालायित रहते हैं वे भी `निगम सामाजिक दायित्व` के तहत बाल अधिकारों पर घड़ियाली आंसू बहाते रहते हैं। कोको फार्म्स में बाल श्रम को समाप्त करने के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाली विश्व की सबसे बड़ी खाद्य श्रृंखलानेस्ले ने अभी भी पश्चिमी अफ्रीकी से कोका आपूर्ति की अपनी श्रृंखला में बच्चें को भर्ती कर रखा है । कोको भी खेती कठिन एवं खतरनाक कार्य है । अक्सर ऐसे मामले आते हैं जिसमें बच्च्े छुरी से कोका काटने पर अक्सर अपने पैर घायल कर लेते हैं।
बाल श्रम की निरंतर मौजूदगी सुधार के सभी प्रयासों एवं पूंजीपतियों के शोषण के `मानवतावादी` स्वरूप की कलई खोलती है । यह उत्पीड़न केवल सरकारों और कारपोरेशन (निगमों) के खिलाफ संघर्ष अभियानों से समाप्त नहीं होगा । बल्कि यह इस लाभ कमाऊ व्यवस्था के खिलाफ कामगार वर्ग की स्वतंत्र राजनीतिक लामबंदी से समाप्त हो पाएगा ।
आईएलओ की रिपोर्ट में बाल श्रम के मामलों में लंैगिक असंगति की ओर भी इशारा किया गया है । आईएलओ की परिभाषा के अंतर्गत अवांछित बाल श्रम की श्रेणी में कार्यरत लड़कों की संख्या ९.९० करोड़ व लड़कियों की ६.८ करोड़ थी । लेकिन संगठन ने चेताया है कि आंकड़ों में बाल श्रम का कम दिखाई देने वाला प्रकार घरेलू कामगार का है, जिसे सामान्यतया लड़कियां ही करती हैं। संगठन के अनुसार सन् २०१२ में सन् २००० की बनिस्बत बाल श्रमिकों की संख्या में ७.८ करोड़ की कमी आई है । संगठन और अन्य इस `प्रगति` को लेकर आत्मप्रशंसा के उफान से पटे हैं,लेकिन यह कमी संभवत: सन् २००८ के विश्व आर्थिक संकट का परिणाम हो सकती है। बजाए `अवांछित बालश्रम` को समाप्त करने हेतु कानूनों करो लागू करने के आईएलओ की रिपोर्ट में स्वयं स्वीकार किया गया है कि सन् २००८ के आर्थिक संकट के बाद बाल श्रमिकों के नियोक्ताआें ने खासकर नव किशोरों की संख्या में काफी कमी की ।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन जिन्हें बाल श्रमिक मानता है उसमें से ६.८ करोड़ कृषि क्षेत्र में ५.४ करोड़ सेवा क्षेत्र में (इसमें घरेलू कामगार शामिल हैं) व १.२ करोड़ निर्माण क्षेत्र मेंे कार्य करते हैं। सामने आई संख्या के तकरीबन आधे यानि ८.५ करोड़ बच्च्े खतरनाक श्रेणी के कार्यों में लगे हैं। जिनमें उनका सामना न केवल प्राणघातक चोटों और बीमारियों से होता है, बल्कि कई मामलों में उनकी मृत्यु तक हो जाती है । ये तो वे आंकड़े हैं जो कि संगठन ने उजागर किए हैं। परंतु अनेक अवैध गतिविधियों में संलिप्त बालश्रमिकों को उनके नियोक्ता छुपाकर रखते हैं। वैसे दुनियाभर में बाल श्रम कानूनों की अवहेलना हो रही है । अक्टूबर २०१३ में बाल श्रम पर हुए वैश्विक सम्मेलन में संगठन ने स्वीकार किया था । सन् २०१६ में सर्वाधिक निकृष्ट बाल श्रम को समाप्त करने के लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकती । ऐसा पहली बार हुआ है जबकि कोई सं.राष्ट्र एजेंसी अपने लक्ष्यों और सुनहरी भविष्यवाणी से पीछे हटी हो ।
अंतरराष्ट्रीय कानून बालश्रम के प्रयोग को निषेध करते हैंऔर १५५ देशों ने अब बच्चेंं द्वारा किए जाने वाले अधिकांश श्रम को प्रतिबंधित करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे हैं। इसके बावजूद वैश्विक उत्पीड़न जारी है । अभूतपूर्व संपदा और तकनीकी विकास के बावजूद नियोक्ता और सरकार इसे लाभप्रद मानते हैंऔर चूंकि पूंजीवाद कामगारों और किसानों को लगातार दरिद्रता में ढकेल रहा है ऐसे में ये लोग अपने बच्चें की मदद करने और उन्हें शिक्षित बनाने में असमर्थ रहते हैं।
केवल एक उदाहरण `सेव द चिल्ड्रन` का लेते हैं। उनके अनुसार भारत में ८ करोड़ बच्च्े काम करते हैं। हालांकि भारतीय कानून १४ वर्ष से कम के बच्चें को `खतरनाक` धंधों में कार्य की मनाही करते हैं। इसके बावजूद भारत का श्रम मंत्रालय स्वीकार करता है कि भारत मेंे करीब १.३ करोड़ बच्च्े प्रतिबंधित निर्माण कार्यों जैसे कांच निर्माण, घरेलू कार्य एवं कशीदाकारी का कार्य करते हैं। भारत सरकार की मंंशा बाल श्रम कानूनों के क्रियान्वयन की है ही नहीं और पुलिस भी अक्सर कारखाना मालिकों को पूर्व सूचना दे देती है अथवा छापों के दौरान रिश्वत ले लेती है । इतना ही नहीं व्यापारियों द्वारा कई कार्यकर्ताओं की हत्या भी कर दी गई है । यदि तुलनात्मक रूप से देखें तो बाल श्रम के सर्वाधिक मामले उप सहारा अफ्रीका में पाए जाते हैंयहां १७ वर्ष तक के पांच में से एक बच्च (२१ प्रतिशत) बाल श्रम में फंसा है । एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र और लेटिन अमेरिका एवं केरेबियन्स यह संख्या ९ प्रतिशत है वहीं मध्यपूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका में यह ८ प्रतिशत है ।
गौरतलब है अप्रैल २०१३ में बांग्लादेश के ढाका में स्थित राना प्लाजा गारमेंट फेक्ट्री विध्वंस में मरने वाले श्रमिकों में से एक हजार से ज्यादा बच्च्े थे । दुर्घटना के पश्चात पश्चिमी विक्रेताओं और उत्पादकों ने अनेक प्रकार की सहायता व सुधारों की बात कही थी लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ । बांग्लादेश का वस्त्र उद्योग २२ खरब डॉलर को पार कर गया है और यहां पर छोटी लड़कियां ११ घंटे कार्य करती हैंऔर शारीरिक व मौखिक अत्याचार का शिकार होती है ।
वहीं पेरु में प्रति वर्ष ३ अरब डॉलर का सोना निर्मित होता है । वहां पर बच्च्े खदानों में कार्य करते हैं। इन्हें जरा सी मजदूरी के लिए न केवल लंबा इंतजार करना पड़ता है, बल्कि ये जहरीले पारे के संपर्क में आते हैं और मलेरिया जैसी प्राणघातक बीमारियों एवं औद्योगिक दुर्घटनाओं को भी झेलते हैं । अमेरिका जैसे विकसित देश में भी बाल श्रम पाया जाता है । केलिफोर्निया में बच्च्े फल एवं सब्जियां उगाते हैं एवं उत्तरी केरोलिना में वे तंबाखू के खेतों में कार्य करते हैं। इसमें से कुछ पलायन करके आए बच्च्े होते हैं, लेकिन अन्य बच्च्े अमेरिकी ही हैं। लेकिन वहां इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है । अमेरिका के फेयर लेबर स्टेंडर्ड एक्ट (न्यायसंगत श्रम मानक अधिनियम) के अंतर्गत बच्च्े पालकों की सहमति से कृषि क्षेत्र में कार्य कर सकते हैं।
बहुराष्ट्रीय निगम जो कि मध्य आय वर्ग के बीच अपने उत्पाद बेचने को लालायित रहते हैं वे भी `निगम सामाजिक दायित्व` के तहत बाल अधिकारों पर घड़ियाली आंसू बहाते रहते हैं। कोको फार्म्स में बाल श्रम को समाप्त करने के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने वाली विश्व की सबसे बड़ी खाद्य श्रृंखलानेस्ले ने अभी भी पश्चिमी अफ्रीकी से कोका आपूर्ति की अपनी श्रृंखला में बच्चें को भर्ती कर रखा है । कोको भी खेती कठिन एवं खतरनाक कार्य है । अक्सर ऐसे मामले आते हैं जिसमें बच्च्े छुरी से कोका काटने पर अक्सर अपने पैर घायल कर लेते हैं।
बाल श्रम की निरंतर मौजूदगी सुधार के सभी प्रयासों एवं पूंजीपतियों के शोषण के `मानवतावादी` स्वरूप की कलई खोलती है । यह उत्पीड़न केवल सरकारों और कारपोरेशन (निगमों) के खिलाफ संघर्ष अभियानों से समाप्त नहीं होगा । बल्कि यह इस लाभ कमाऊ व्यवस्था के खिलाफ कामगार वर्ग की स्वतंत्र राजनीतिक लामबंदी से समाप्त हो पाएगा ।
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