रविवार, 10 अगस्त 2014

जनजीवन
चल बसा सरिस्का का कसाई
डॉ. महेश परिमल

    पिछले दिनों आयी एक खबर ने पर्यावरणविदों को राहत दी है । अब यदि यह कहा जाए कि संसारचंद चल बसा, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा । पर जो संसारचंद को जानते हैं, वे यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उससे बड़ा कसाई आज तक पैदा नहीं हुआ । वह तो सरिस्का का वीरप्पन  था ।
    संसारचंद पर ८५० बाघों की हत्या का आरोप था । उसने २००४ में राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य में बांघों की पूरी बस्ती का ही खात्मा कर दिया था । बाघों के अलावा उस पर  कुल ५ हजार जंगली जानवरों के शिकार का भी आरोप था । वह इनका शिकार करके उनक चमड़े और दांत का बड़ा व्यापारी था । उसने करीब ५० हजार भेड़ियों और सियारों का भी शिकार किया था । 
    ऐसा नराधम कैंसर से मर गया । लोगों का मानना है कि उसकी मौत इतनी आसानी से नहीं होनी थी । उसकी मौत इससे भी बदतर होनी थी । दिल्ली के सदर बाजार से अपनी जिंदगी शुरू करने वाले संसारचंद को इस हालत में लाने के लिए हमारे देश का भ्रष्ट तंत्र ही दोषी है । वन विभाग के रिश्वतखोर अधिकारियों के कारण ही वह इतना आगे बढ़ पाया । इतने जानवरों की हत्या के आरोपी इस व्यक्ति को सरकार ने केवल तीन साल की सजा दी थी । उसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर संसारचंद को छोड़ दिया गया, तो वह इंसानों की खाल भी बेच देगा ।
    १९७४ में संसारचंद जब पहली बार बाघ और चीते की ६८० खालों के साथ पकड़ा गया, तो लोगों की नजरों में पहली बार सामने आया । तब तक उस पर ५७ मामले चल रहे थे । उसके साथ उसकी पत्नी, पुत्र और भाई भी शामिल थे । इसके पहले वह केवल १६ वर्ष की आयु मेंपकड़ा गया था । उस समय उसे बहुत ही मामूली सजा हुई     थी । उम्र को देखते हुए हाईकोर्ट ने उसकी सज़ा कम कर दी थी ।
    सजा पूरी कर जब वह जेल से बाहर आया, तब उसने जो हरकतें की, उससे पर्यावरण प्रेमियों को लगा कि उसे और सजा मिलनी थी क्योंकि सजा पूरी करने के बाद वह वन्य प्राणियों के लिए काल बन गया । उस पर वन्य प्राणियों की हत्या का केस  चला । परन्तु वन विभाग के रिश्वतखोर अधिकारियों द्वारा साक्ष्य ठीक से न जुटाए जाने के कारण उसे वैसी सजा नहींहो पाई, जिसका वह वास्तविक रूप से हकदार था । हर बार वह कानून के जाल से  बाहर निकल जाता था इसलिए कुछ समय बाद ही वह बाघों के चमड़े का अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी बन गया । आश्चर्य यह है कि वह बिना किसी भय के सरिस्का मेंबाघ का शिकार करता  था । उसके लिए किसी भी प्रकार की रोकटोक नहीं थी ।  इससे समझा जा सकता है कि वन विभाग में उसकी कितनी पैठ थी ।
    राजस्थान पुलिस ने २००४ में जब संसारचंद के परिवार के पास से उसकी गोपनीय डायरी कब्जे में ली, तब पता चला कि उसने ४० बाघों और ४०० चीतों की चमड़ों के सौदे किए थे । ये सौदे अक्टूबर २००३ से सितम्बर २००४ के बीच यानी केवल ११ महीनों में ही हुए थे । इस बारे में जब संसारचंद से पूछताछ हुई, तब उसने कबूला कि उसने बाघ के ४७० और चीते के २१३० चमड़े नेपाल और तिब्बत के ग्राहकोंको बेचे हैं । सितम्बर २००४ में जब उसके पास से बाघ के ६० किलो जबड़े बरामद किए गए, तब सभी चौंक उठे थे ।
    सरिस्का में उसका इतना अधिक आंतक था कि उसने एक के बाद एक सैकड़ों बाघों को मार डाला, परन्तु प्रशासन पूरी तरह से अनजान ही बना रहा । वन विभाग भी चुपचाप केवलउसका तमाशा देखता रहा ।
    वन्य प्राणियों के चमड़े और जबड़ों की मांग हमारे देश की अपेक्षा चीन में अधिक होने के कारण संसारचंद ने तगड़ी कमाई की । चीन में बाघ के अंगों से कई चीजें बनाई जाती हैं । इससे उसकी कमाई और बढ़ने लगी । तब वह और अधिक बाघों का शिकार करने लगा । कुछ समय बाद तो वह इसका इतना अधिक आदी हो गया था कि जब तक वह बाघ का शिकार न कर ले, उसे चैन नहीं मिलता था । बाद में वह वन्य प्राणियों को जहर देकर मारने लगा ।
    वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के कार्यकर्ताआें ने जब यह बताया कि ल्हासा में बाघ और चीते के चमड़े खुले आम बिक रहे हैं, तब सरकारी तंत्र   जागा । लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी  थी । चीन के लोग बाघ और चीते के चमड़ों की मंुहमांगी कीमत देने को तैयार थे । इसलिए वह अधिक से अधिक बाघों को शिकार करके मांग के अनुसार पूर्ति करता था । संसारचंद के खिलाफ कार्यवाही के लिए चारोंतरफ से दबाव बढ़ने लगा, तब सीबीआई ने उसके खिलाफ २००५ में मकोका लगाया । उसकी पत्नी रानी, पुत्र अक्ष और भाई नारायणचंद के खिलाफ विभिन्न अदालतोंमें मामले लंबित हैं । २०१० में संसारचंद की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह पिछले ३० सालों से यह गैरकानूनी धंधा कर रहा है । अब वह इस धंधे का आदी हो चुका है । इसलिए अदालत नरम रवैया नहीं अपना   सकती । उत्तर प्रदेश और राजस्थान की अदालतों में भी उसके खिलाफ कई मामले लंबित हैं । पिछले १८ मार्च को वह कैंसर से ग्रस्त होकर इस दुनिया से चला गया, और लाखों मूक जानवरों और अनेक पर्यावरण प्रमियों के लिए एक राहत भरी खबर छोड़ गया ।
    ऐसा केवल हमारे ही देश मेंहो सकता है कि पर्यावरण के दुश्मन को मात्र कुछ वर्षोकी सजा हो । यदि देश में पर्यावरण के खिलाफ काम करने वाले या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर कड़ी सजा का प्रावधान हो, तो संसारचंद जैसे लोग पनप ही न  पाएं । दूसरी ओर, यदि कोई लगातार बाघों का शिकार कर रहा है, उनकी खालें बेच रहा है, तो कहीं न कहीं उसे वन विभाग की शह मिली होगी । संसारचंद ने वन विभाग के अधिकारियों को जमकर रिश्वत दी होगी, इसीलिए वह अपना व्यापार इस पैमाने पर बढ़ा   पाया । यदि रिश्वतखोर अधिकारियों पर शिकंजा कसा जाए, तो भविष्य में संसारचंद पैदा होने की संभावना को खत्म नहीं, कम अवश्य किया जा सकता है ।

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