धरती बचाने के लिए ऐतिहासिक समझौता
डरबन में कई दिनों तक चर्चा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिसके तहत योरपीय संघ कानूनी रूप से बाध्यकारी क्योटो संधि के तहत अपना मौजूदा उत्सर्जन कटौती संबंधी वादा पेश करेगा और सभी प्रमुख उत्सर्जक देश ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ कदम उठाने के लिए बाध्य होगें ।
इस सम्मेलन में भारत और योरपीय संघ प्रस्तावित खाके पर आमने-सामने दिखे । इस महत्वपूर्ण बैठक में निर्धारित समय से करीब ३६ घंटे अधिक चर्चा हुई और कई प्रतिनिधियों ने मेजबान सरकार की रणनीति पर सवाल खड़े किए । इस सम्मेलन में १९४ देश शामिल हुए । लेकिन ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक) ने अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया और योरप समेत अन्य पश्चिमी देशों को क्योटो समझौते की तरह नए समझौते की
तरह नए समझौते के लिए राजी किया ।
भारत और योरपीय संघ के बीच नए समझौते के रोडमैप की शब्दावली को लेकर गतिरोध था जिस कारण समझौते में देरी हुई । समझौते के तहत सभी देश नए करार के लिए बातचीत करने पर सहमत हुए । नए करार के तहत सभी देश एक ही कानूनी व्यवस्था में आएँगे । नया करार २०२० में अस्तित्व में आएगा । सभी देशों द्वारा समझौते को संतुलित बताया जा रहा है ।
हमारी पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन के अंतिम समय मेंअख्तियार किए गए सख्त रूख के कारण समझौते में बदलाव किया गया । इससे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्य दायरे में लाने की विकसित देशों की कोशिश नाकाम हो गई ।
अपने ओजस्वी वक्तव्य में श्रीमती नटराजन ने कहा - भारत को किसी धमकी या दबाव से धमकाया नहीं जा सकता । जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए जिम्मेदारी उन देशों पर डालने की कोशिश की जा रही है जो दरअसल इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं । समस्या विकसित देशों ने पैदा की और अब उसे दूर करने की जिम्मेदारी विकासशील देशों पर डाली जा रही है । उन्होनें कहा कि हमें (विकासशील देशों) बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जा रही है, कृपया हमें बंधक न बनाएँ ।
डरबन में इस सम्मेलन के मुख्य कक्ष में दक्षिण अफ्रीका के अंतराष्ट्रीय संबंध मंत्री माइते एनकोना मसाबाने ने जब प्रस्ताव पेश किया, तो उनकी खूब वाहवाही हुई । नए कानूनी करार में सभी देश शामिल होगें और इसके लिए चर्चा अगले साल शुरू होगी और २०१५ तक चलेगी । यह २०२० में प्रभावी होगा ।
भारत की पर्यावरण मंत्री जंयती नटराजन ने कहा - हम अपनी बात पर कायम हैं । यह केवल भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की बात है । भारत उस व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है जहाँ केवल विकसित देशों को ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना है । श्रीमती नटराजन ने कहा - अपने वादों के अनुसार पश्चिमी देशों ने उत्सर्जन कम नहीं किया है, चीन भी ऐसा ही मानता है ।
योरपीय संघ कार्बन उत्सर्जन कटौती के अपने वादों को कानूनी रूप से बाध्य क्योटो संधि की परिधि में रखेगा । यह भारत समेत अन्य विकासशील देशों की मुख्य माँग थी । दरसअल, भारत नहीं चाहता था कि शब्दावली में यह लिखा जाए कि संधि कानूनी रूप से बाध्य होगी । अंतत: ये तय हुआ कि संधि की कानूनी शक्ति होनी चाहिए ।
योरपीय संघ के देश और कम विकसित देशों को चिंता थी कि सभी देशों पर लागू नई और कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि के बगैर वैश्विक औसत तापमान दो डिग्री सेल्सियस से बढ़ जाएगा जो अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य सीमा है ।
इस सम्मेलन में भारत और योरपीय संघ प्रस्तावित खाके पर आमने-सामने दिखे । इस महत्वपूर्ण बैठक में निर्धारित समय से करीब ३६ घंटे अधिक चर्चा हुई और कई प्रतिनिधियों ने मेजबान सरकार की रणनीति पर सवाल खड़े किए । इस सम्मेलन में १९४ देश शामिल हुए । लेकिन ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक) ने अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया और योरप समेत अन्य पश्चिमी देशों को क्योटो समझौते की तरह नए समझौते की
तरह नए समझौते के लिए राजी किया ।
भारत और योरपीय संघ के बीच नए समझौते के रोडमैप की शब्दावली को लेकर गतिरोध था जिस कारण समझौते में देरी हुई । समझौते के तहत सभी देश नए करार के लिए बातचीत करने पर सहमत हुए । नए करार के तहत सभी देश एक ही कानूनी व्यवस्था में आएँगे । नया करार २०२० में अस्तित्व में आएगा । सभी देशों द्वारा समझौते को संतुलित बताया जा रहा है ।
हमारी पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन के अंतिम समय मेंअख्तियार किए गए सख्त रूख के कारण समझौते में बदलाव किया गया । इससे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्य दायरे में लाने की विकसित देशों की कोशिश नाकाम हो गई ।
अपने ओजस्वी वक्तव्य में श्रीमती नटराजन ने कहा - भारत को किसी धमकी या दबाव से धमकाया नहीं जा सकता । जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए जिम्मेदारी उन देशों पर डालने की कोशिश की जा रही है जो दरअसल इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं । समस्या विकसित देशों ने पैदा की और अब उसे दूर करने की जिम्मेदारी विकासशील देशों पर डाली जा रही है । उन्होनें कहा कि हमें (विकासशील देशों) बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जा रही है, कृपया हमें बंधक न बनाएँ ।
डरबन में इस सम्मेलन के मुख्य कक्ष में दक्षिण अफ्रीका के अंतराष्ट्रीय संबंध मंत्री माइते एनकोना मसाबाने ने जब प्रस्ताव पेश किया, तो उनकी खूब वाहवाही हुई । नए कानूनी करार में सभी देश शामिल होगें और इसके लिए चर्चा अगले साल शुरू होगी और २०१५ तक चलेगी । यह २०२० में प्रभावी होगा ।
भारत की पर्यावरण मंत्री जंयती नटराजन ने कहा - हम अपनी बात पर कायम हैं । यह केवल भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की बात है । भारत उस व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है जहाँ केवल विकसित देशों को ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना है । श्रीमती नटराजन ने कहा - अपने वादों के अनुसार पश्चिमी देशों ने उत्सर्जन कम नहीं किया है, चीन भी ऐसा ही मानता है ।
योरपीय संघ कार्बन उत्सर्जन कटौती के अपने वादों को कानूनी रूप से बाध्य क्योटो संधि की परिधि में रखेगा । यह भारत समेत अन्य विकासशील देशों की मुख्य माँग थी । दरसअल, भारत नहीं चाहता था कि शब्दावली में यह लिखा जाए कि संधि कानूनी रूप से बाध्य होगी । अंतत: ये तय हुआ कि संधि की कानूनी शक्ति होनी चाहिए ।
योरपीय संघ के देश और कम विकसित देशों को चिंता थी कि सभी देशों पर लागू नई और कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि के बगैर वैश्विक औसत तापमान दो डिग्री सेल्सियस से बढ़ जाएगा जो अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य सीमा है ।
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