मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

कविता

सूर्य पृथ्वी का भाग
मुरलीधर कमलाकान्त चांदनीवाला

सूर्य
पृथ्वी का भाग्य है ।
पृथ्वी की आयु
सूर्य के महाप्राण में
वलय की भाँति
नित्य गतिशील,
अन्न की आकूति में
प्रवाहित सूर्य की स्फूर्ति के
मधुपर्क से
जीवन हरा है ।
पत्थरों के घर्षण में नहीं
ज्योतिर्लिगों के समन्वय की
सिद्धि में
सोम का अर्थ
घूमता है,
सोम की प्रार्थना में
घूम रही है पृथ्वी
सूर्य के चारों तरफ
सूर्य के पहियों पर
बदलता है
दिवस का इतिहास,
रात्रि के मौन पारायण में
फलश्रुति
उभरती है सूर्य होकर
एक ब्रहृानाद
गूँजता है निरन्तर
सूर्य के घूमने के साथ,
समुद्र को पी डाला
सूर्य ने आँखों से,
इसीलिए
सूर्य को
पृथ्वी की चिन्ता है ।

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