वाहनों की अधिकतम गति का सवाल
पिछले कुछ वर्षो में वाहनों की अधिकतम गति बढ़ती ही गई है । आजकल की कारें आसानी से १५० कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार पर भाग सकती है ं । रफ्तार के साथ-साथ कारों की डिजाइन में अन्य परिवर्तन भी किए जाते हैं ताकि वे अपनी अधिकतम गति पर भी सुरक्षित रहें । मगर उनमें सवारी करने वाली इन्सानों की डिजाइन तो वही की हैं । उदाहरण के लिए कारों में विकास के साथ हमारा प्रतिक्रिया समय नहीं बदला है । तो अधिकतम गति का निर्धारण कार की डिजाइन से हो या इन्सान की डिजाइन से ?
यह सवाल काफी पेचीदा है । आम तौर पर जब हम पैदल भागते हैं तो गति का एहसास कई तरह से होता है - पैरों में थकान, हृदय गति बढ़ना, हवा के झोके वगैरह । मगर कार चलाते समय गति का एहसास बिलकुल भी नहीं होता । बस एक स्पीडोमीटर देखकर ही बताया जा सकता है कि हम कितनी गति पर चल रहे हैं । ऐसी स्थिति में दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है ।
इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि बढ़ती रफ्तार के साथ दुर्घटना के परिणाम भी बदल जाते हैं । अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक यू.एस.ए. में अधिकतम गति सीमा को ९० कि.मी. घंटा से बढ़ाकर १०५ कि.मी. प्रति घंटा करने पर कार दुर्घटनाआें में मौतों की संख्या में१५ प्रतिशत की वृद्धि हुई थी । दरअसल दुर्घटना में मृत्यु की आशंका गति में वृद्धि के वर्ग के अनुपात मेंबढ़ती है ।
दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका इस बात से भी निर्धारित होती है कि दुर्घटना कहां होती है और किनके बीच होती है । जैसे अंदरूनी स़़डकों पर प्राय: वाहन और पैदल व्यक्ति की टक्कर होने की संभावना ज्यादा होती है । दूसरी ओर, कई सड़कों पर छोटी-छोटी साइड गलियों से वाहन मुख्य सड़क पर प्रवेश करते हैं । यहां साइड से टक्कर की आशंका ज्यादा होती है । और हाइवे पर एकदम अलग ढंग की दुर्घटनाएं होती हैं । यहां वाहनों के आपस में टकराने की आशंका बहुत कम होती है । इन सब परिस्थितियों में अलग-अलग गति सीमा आवश्यक होेती है ।
अध्ययनों से पता चलता है कि जहां सर्विस मार्गो पर २० किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक गति घातक हो सकती है वही हाईवे पर ११०-१२० की रफ्तार चल जाएगी । शहर की बड़ी सड़कों पर शायद ५०-६० की गति ठीक रहेगी ।
अगर सवाल इन सीमाआें को लागू करवाने का है, जो और भी पेचीदा है । इसे टेक्नॉलॉजी की मदद से सुलझाया जा सकता है । मगर साथ में कई अन्य व्यवस्थाआें की जरूरत होगी ।
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