चीन में जी.एम. खाद्यान्न फसलों पर रोक
ची योक लिंग
पिछले कुछ समय से भारत में जी.एम. खाद्यान्न को लेकर बीज कंपनियां वातावरण तैयार करने में जुटी हैं । इस बीच सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग जी.एम. सोयाबीन की मांग कर रहा है। उसका कहना है कि इससे उत्पादन में वृद्धि होगी । जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि जी.एम. फसलों से पैदावार नहीं बढ़ती । चीन द्वारा जी.एम. खाद्यान्नों के व्यावसायिकरण पर एक दशक के लिए रोक लगाने से हमारे कृषि वैज्ञानिकों एवं संबंद्ध अधिकारियों को सबक लेना चाहिए ।
कई वर्षो तक वैज्ञानिक एवं सार्वजनिक बहस के पश्चात यह बात सामने आई है कि चीन अगले ५ से १० वर्षो तक अपने मुख्य भोजन जैसे चावल एवं गेहूं में व्यावसायिक जैव संवर्धित (जी.एम.) फसलों को अनुमति नहीं देगा । एक लोकप्रिय आर्थिक साप्तहिक इकॉनोमिक ऑब्जर्वर ने चीन के कृषि विभाग के एक नजदीकी स्त्रोत के माध्यम से इस समाचार का प्रकाशन किया है । यह कमावेश उसी धारा की तार्किक परिणिति है जिसके अन्तर्गत चीन की सरकार में सर्वोच्च् स्तर पर जी.एम. फसलों को लेकर सावधानी बरतने की बात सामने आई थी । बीजिंग में अप्रैल २०११ में सम्पन्न चौथी अंतर्राष्ट्रीय जैव सुरक्षा कार्यशाला जिसे अनेक चीनी वैज्ञानिक संगठनों के सहयोग से आयोजित किया गया था, में चीन के पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपने उदघाटन भाषण में कहा था कि प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ ने जी.एम. उत्पादों को लेकर अधिक सावधानी बरतने को कहा है ।
जी.एम.तकनीक की व्यवहार्यता को लेकर वर्तमान में व्याप्त् अनिश्चितता ही इसके पीछे का मुख्य कारण है । इकॉनोमिक आब्जर्वर ने एक सार्वजनिक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि जी.एम. चावल की किस्म बी.टी. शान्यो - ६३ से पैदावार में ८ प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है । लेकिन सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में देशी विशेषज्ञों द्वारा तैयार जी.एम. बीजों में फसल बढ़ाने वाला जीन मौजूद ही नहीं है । क्योंकि जी.एम. फसलें कीटरोधी हैं अतएव बढ़ी हुई उपज वास्तव में कीटनाशक की लागत की बचत भर है जिसे अधिक पैदावार की तरह गिन लिया जाता है । गौरतलब है कि शान्यो - ६३ को सर्वप्रथम सन् १९८१ में फ्यूजिआन प्रांतीय कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकोंने विकसित किया था ।
जी.एम. चावल को व्यावसायिक रूप न देने संबंधी नीतिगत निर्णय आधुनिक कृषि फसल बीज उद्योग विकास योजना (२०११-२०१०) जो कि इस वर्ष के अंत में जारी की जाएगी, में सामने आ जाएगा । यह योजना राज्य परिषद् (चीन में केबिनेट के बराबर) की १८ अप्रैल की रिपोर्ट जिसका शीर्षक आधुनिक बीज उद्योग के विकास को गति देने संबंधी विचार पर आधारित है । मजेदार बात यह है कि इकॉनोमिक आब्जर्वर के लेख से प्रतीत होता है कि इस रिपार्ट में जी.एम. का जिक्र संक्षिप्त् रूप से सिर्फ दो बार आया है ।
चीन में अपवाद स्वरूप केवल जी.एम. मक्का के व्यावसायीकरण के बारे में विचार किया जा रहा है । इकानॉमिक आब्जर्वर के लेख के अनुसार मक्का का आयात तेजी से बढ़ रहा है और सबसे ज्यादा बोई जानी वाली किस्मों में से एक किस्म (जी.एम. नहीं) जिसे देश में ही विकसित किया गया है, द्वारा वर्षो तक अधिकतम उत्पादन देने के बाद उसे अब एक नए कीड़े का सामना करना पड़ रहा है । जी.एम.मक्का और सोयाबीन का वर्तमान में जानवरों के खाने और खाद्य प्रसंस्करण हेतु आयात किया जाता है और इसकी व्यावसायिक खेती की अनुमति नहीं है ।
नवम्बर २००९ में जब चावल की दो जी.एम. किस्मों और मक्का की एक किस्म को उत्पादन प्रमाणपत्र प्रदान किए गए तो वैज्ञानिक समुदाय एवं जनता के मध्य जी.एम. फसलों एवं उत्पादों से पर्यावरण एवं मानव की सुरक्षा को लेकर तीव्र विचार-विमर्श प्रारंभ हो गया । चूंकि चावल देश का मुख्य भोजन है अतएव इस सर्वाधिक संवेदनशील मामले पर जैव सुरक्षा आकलन हेतु ५ वर्ष से अधिक का समय लिया गया । प्रत्येक सुरक्षा प्रमाणपत्र सामान्यतया किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र (चीन में २८ प्रांत एवं स्वशासी क्षेत्र, ४ महानगरीय क्षेत्रों के साथ ही साथ २ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र हैं) तक के लिए सीमित है एवं यह पूरे देश के लिए नहीं है । उदाहरण के लिए जी.एम. चावल का प्रमाणपत्र केवल एक प्रांत के लिए ही है ।
हालांकि इस तरह के प्रमाणीकरण का अर्थ यह नहीं है कि इनकी व्यावसायिक खेती की अनुमति दे दी गई है । ग्लोबल टाइम्स के लेख में इस बात को दोहराते हुए लिखा है कृषि मंत्रालय के जी.एम. सुरक्षा उत्पाद विभाग के प्रवक्ता ने पीपुल्स डेली को बताया कि जी.एम. उत्पादों को महज सुरक्षा प्रमाण पत्र मिल जाने का यह अर्थ नहीं है कि इनका व्यावसायीकरण किया जा सकता है । जनता के बीच ले जाने से पहले उन्हें कठोर क्षेत्रीय और उत्पादन परीक्षणों से अनिवार्य रूप से गुजरना होगा । इस बीच कृषि मंत्रालय में एक उपमंत्री चेन झिआहुआ ने वैज्ञानिकों से कहा है कि वे जी.एम. फसलों से सुरक्षा सुनिश्चित करें और इन उत्पादों के व्यावसायीकरण के संबंध में सतर्कता बरतें ।
इसी रिपोर्ट में चीन के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक युआन लांगपिंग जिन्हें हाइब्रीड चावल का जनक कहा जाता है ने बार-बार सरकार से अपील की है कि जी.एम. फसलों के व्यावसायिक उत्पादन संबंधी कदम फूंक-फूंक कर ही उठाया जाना चाहिए । एक समाचार पत्र से चर्चा के दौरान उन्होनें कहा जी.एम. फसलों की एक मुख्य विशेषता उनका कीटरोधी होना है, लेकिन वैज्ञानिक भी नहीं जानते कि इन फसलों की इस क्षमता का मनुष्यों पर कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं । नानझिंग पर्यावरण विज्ञान शोध संस्थान के झु डेयुआन और पर्यावरण सुरक्षा मंत्रालय के मुख्य जैव सुरक्षा वैज्ञानिक ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि अधिकारियों को चाहिए कि वे जी.एम. उत्पादों के व्यावसायीकरण एवं कुछ जी.एम. तकनीक के निरीक्षण एवं प्रबंधन की दिशा में और अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है । मंत्री परिषद ने भी अप्रैल की अपनी रिपोर्ट में जी.एम. कृषि फसलों के सुरक्षा आकलन के और अधिक प्रमाणीकरण पर जोर दिया है ।
सरकार द्वारा मुख्य जी.एम. खाद्य फसलों के व्यावसायीकरण को स्थगित करने के निर्णय की चीन के विभिन्न समूहों ने प्रशंसा की है । ग्रीन पीस के खाद्य एवं कृषि कार्यकर्ता पान वेनजिंग का कहना है यह कदम चीन में सभी तरह के जी.एम. चावल के व्यावसायीकरण को समाप्त् करने की प्रक्रिया में मील का पत्थर है । वे आगे कहते है जैव संवर्धित फसलों के मनुष्यों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभाव अभी भी ज्ञात नहीं हैं । श्री पान का कहना है चीन में पाए गए अनेक जी.एम. चावल पर गैर चीनी पेटेंट की छाप लगी है । यदि इन्हें व्यावसायिक अनुमति दे दी गई तो ये चीन की खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकते है।
ग्रीन पीस ने अपनी प्रेस विज्ञिप्त् में सरकार से जी.एम. नीति एवं जी.एम. फसलों पर किए जा रहे विशाल निवेश पर पुन: आकलन करने की अपील करते हुए कहा है कि वह इसके बजाय आधुनिक पारिस्थितकी कृषि एवं अन्य सुस्थिर तकनीक पर अधिक निवेश करे । साथ ही यह होना चाहिए कि चीन की कृषि से पर्यावरण की सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं किसानों की आर्थिक स्थिति को सुरक्षित करने के लिए अधिक सुस्थिर बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके ।
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