जैव विविधता के लिए बचाने होंगे वन
के.जयलक्ष्मी
महात्मा गांधी ने कहा था कि हम दुनिया के वनों के साथ जो कुछ कर रहे हैं, वह इस बात का प्रतिबिंब है कि हम स्वयं और दूसरे इंसानों केक साथ क्या कर रहे हैं ।
संयुक्त राष्ट्र नं २०११ को अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष घोषित किया है । इसका मकसद कार्बन को अपने में समाहित करने वाले अद्भुत जंगलों के संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना है । लेकिन हमारे जंगलों की आज जो दशा है, वह क्या किसी से छिपी है ?
करीब ४० देशों में काम करने वाली संस्था कंजर्वेशन इंटरनेंशनल ने १० ऐसे वनों की सूची जारी की है जिन पर सर्वाधिक खतरा मंडरा रहा है । इन जंगलों में ९० फीसदी या उससे भी ज्यादा प्राकृत वास खत्म हो चुके है । यदि ये वन पूरी तरह खत्म हो जाते हैं तो वहां पाई जाने वाली वनस्पतियों की करबी १५०० दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त् हो जाएंगी । ये वन भारत से लेकर वियतनाम और न्यूजीलैंड, भारत-मलेशिया द्वीप समूह, फिलीपींस, दक्षिण-पश्चिम चीन, पूर्वी ब्राजील, उरूग्वे, कैलिफोर्निया, तटीय पूर्वी अफ्रीका, मेडागास्कर और हिंद महासागर के अन्य द्वीपों, इथियोपिया, तंजनिया तथा मालवी के क्षेत्रोंमें फैले हुए हैं । इनमें अधिकांश वन अर्धकटिबंधीय या कटिबंधीय नम वन हैं । ये मानव विकास के कारण अत्यन्त दबाव में है ।
वन तेजी से फैलतेशहरों, चारागाहों, कृषि और खदानों की भेंट चढ़ते जा रहे हैं । और ऐसा करके हम स्वयं अपने जीवन को ही खतरे में डाल रहे हैं । इस चिंता को हम हाशिए पर डाले हुए है, लेकिन सच कहें तो यह खतरनाक हो सकता है ।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २००० से २०१० के बीच हर साल जंगलों के क्षेत्रफल में ५२ हजार वर्ग किलोमीटर की कमी हुई है । हालांकि इसके पहले के दशक से तुलना करें तो स्थिति में आंशिक सुधार नजर आता है । इस दशक के दौरन वनों के नष्ट होने की गति ८३ हजार वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष रही थी । हालांकि इस रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं है कि नष्ट होने वाले जंगलों में कितने पुराने थे और कितने नए ।
वन वृक्षों का समूह-भर नहीं होता । ये जैव विविधता से सम्पन्न ऐसे क्षेत्र होते हैं जो जीवन की विविधता को बनाए रखते हैं । यही वजह है कि अनेक लोग जंगल विनाश व बरबादी जनित उत्सर्जन में कमी (आर.ई.डी.डी.) जैसी योजनाआें के प्रति आशंकित है । यह वन की अवैज्ञानिक परिभाषा पर आधारित है जिसमें एक ही प्रजाति के पौधों और यहां तक कि जेनेटिक इंजीनियरिंग वाले पौधे रोपे जाते हैं । इससे भी बढ़कर, आरईडीडी जंगलों के विनाश के अंदरूनी कारकों का समाधान नहीं करती । यही वजह है कि संरक्षित क्षेत्रों में तो वनों की कटाई कम हो सकती है, लेकिन गैर संरक्षित क्षेत्रों में नहीं ।
इससे भी बदतर बात यह भी है कि आरईडीडी उत्तरी देशों में औघोगिक इकाइयों की अनुमति देती है जो प्रदूषण फैलाती हैं और इस तरह वातावरण लगातार खराब होता जा रहा है ।
ब्रिटिश सरकार अपने १५ वन क्षेत्रों को बेचने का वादा कर चुकी है । यह कुल मिलाकर ४० हजार हेक्टर के बराबर क्षेत्रफल होगा । यह इस उम्मीद में किया जा रहा है कि इससे उसके खजाने में १० करोड़ पाउंड की बढ़ोत्तरी हो सकेगी ।
उपग्रहों से प्राप्त् आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि एशिया में जितने जंगल कट रहे हैं, मलेशिया में उससे तिगुनी रफ्तार से वन खत्म हो रहे हैं । इनमें से अधिकांश जंगल जैव विविधता की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न बोर्निया द्वीप में समाप्त् हो रहे हैं । नीदरलैड्स स्थित पर्यावरण समूह वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा किए गए इस विश्लेषण के अनुसार बोर्नियो में स्थित मलेशियाई प्रांत सारावाक में पिछले पांच साल के दौरान ही १० फीसदी जंगल समाप्त् हो गए, जबकि बाकी एशिया में इस अवधि में वनों के कटाई की दर ३.५ फीसदी रही । सारावाक के पीटलैंड में कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जो खतरे में हैं । इनमें सुमात्रा का गैंडा, बोर्निया का तेदुआ और पिग्मी हाथी शामिल है ।
वन कितने कीमती हैं, इसके सही मूल्यांकन का सख्त अभाव यहां साफ नजर आता है । अगर हम सही मूल्यांकन करें तो पाते है कि इससे न केवल जंगल में रहने वाले गरीबों को सीधा लाभ मिलेगा, बल्कि नया बाजार भी खुलेगा और वैश्विक आर्थिक विकास भी होगा । इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की एक रिपोर्ट पर विश्वास करें तो सरकारों और दानदाता एजेंसियों ने वनों के आर्थिक लाभों को कम करके आंका है।
वनों को पारंपरिक रूप से उनके मुख्य वाणिज्यिक स्त्रोत इमारती लकड़ी के लिए महत्व दिया जाता है । लेकिन धरती पर पाई जाने वाली जैव विविधता का ८० फीसदी हिस्सा वनोंकी देन है । साथ ही ये कई तरह की इकोसिस्टम सेवाएं भी प्रदान करते हैं, जैसे स्वच्छ पानी ये देते हैं, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाआें को नियंत्रित करने में भूमिका निभाते हैं । धन के रूप में इसका आकलन करें तो यह योगदान ७२० अरब डॉलर सालाना के बराबर है । रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के गरीब लोगों को उनकी प्रत्यक्ष आजीविका जैसे भोज्य पदार्थो, औषधियों, ईधन, ऊर्जा, रोजगार इत्यादि उपलब्ध कराने में भी वनों का अहम योगदान है । यह १३० अरब डॉलर सालाना के तुल्य बैठता है ।
आईयूसीएन की रिपोर्ट के लेखकों में से एक ल्यूसी एमर्टन कहती है, सरकारेें बजट तय करते समय आम तौर पर स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वनों में निवेश के आर्थिक रिटर्न की गणना नहीं करती हैं । इस तरह से वे गरीबी को कम करने, आर्थिक विकास दर को बढ़ाने और टिकाऊ विकास का महत्वपूर्ण अवसर खो देती है ।
दुनिया में ४० करोड़ हेक्टर जंगल यानी यूरोपीय संघ के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्र और करीब डेढ़ अरब लोग यानी चीन की आबादी से ज्यादा लोग स्थानीय नियंत्रित वानिकी में संलग्न है। हालांकि जंगलों पर उन्हें केवल ४७ फीसदी वैधानिक अधिकार ही दिए गए है ।
आईयूसीएन की स्थानीय नियंत्रित वानिकी में निवेश का मूल्य शीर्षक से जारी हुई इस रिपोर्ट का मकसद यह दिखाना है कि अगर वनों का प्रबंधन उनमें या उनके आसपास रहने वाले लोगों द्वारा किया जाए तो उसका अर्थ व्यवस्था पर कितना गहरा असर पड़ेगा । यह व्यवस्था जंगलों के निजीकरण करने के ब्रिटिश प्रयासों के बिलकुल विपरीत है ।
आईयूसीएन के पर्यावरण एवं विकास निदेशक स्टीवर्ट मैगिनिस कहते है - स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वन प्रबंधन लाभदायक सार्वजनिक निवेश है और विकास में सहायक है । हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव के संपूर्ण क्रांतिकारी तरीके और बेहतरी के लिए परिवर्तन की बात कर रहे हैं ।
वन इमारती लकड़ी, भोजन, आसरा और मनोंरजन के स्त्रोत के रूप में अनेक देशों के विकास में बड़ी भूमिका निभाते है । पानी मुहैया करवाने, मिट्टी के कटाव को रोकने और कार्बन को सोखने के स्त्रोत के रूप में वनों की जो क्षमता है, उसका भी पूरी तरह से दोहन करने की जरूरत है ।
वनों के कुछ लाभ इस तरह है:-
वे हर तरह से जीवन के लिए जरूरी है : जो संास हम लेते है, वह वनों से मिलती है, भोजन और पानी हमें वनों से मिलता है, जीवन बचाने वाली औषधियां हमें वनों से मिलती है, जीवन की विविधता हमें वन प्रदान करते है, हमारे वर्तमान व भविष्य को आकार प्रदान करने वाले वातावरण का निर्माण वन करते है । हमारी हर चीज तो वनों पर निर्भर है ।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के हमारे प्रयासों में वन महत्वपूर्ण सहयोगी है : वैश्विक प्रदूषण को कम करने का वनों से प्रभावी, सस्ता और तेज अन्य कोई साधन नहीं हो सकता । इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कितना दूरगामी असर पड़ सकता है, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अगर २०१० से २०१२ के बीच इस प्रदूषण को आधा कर दिया जाए तो ३७ ट्रिलियन डॉलर की बचत होगी ।
आर्थिक विकास में वन अतुलनीय योगदान देते है : वनों पर निर्भर समुदायों की एक चौथाई आय जंगलों द्वारा उपलब्ध करवाए जाने वाले पदार्थो और सेवाआें से मिलती है । आईयूसीएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वन गरीबों को हर साल १३० अरब डॉलर के बराबर लाभ पहुंचाते है ।
उजड़े जंगलों को बसाना : उजड़े और नष्ट हो चुके जंगलों को फिर से बसाने में भी बहुत सारे अवसर समाने आ सकते हैं । इससे अनेक लोगों को आजीविका मिल सकती है ।
२०१० को हमने अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाया था। इस दौरान ९० देशों के १५०० सरकारी संगठनों, ३८८ गैर सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र की २१ एजेंसियों ने जैव विविधता के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने में योगदान दिया । संयुक्त राष्ट्र ने २०११-२०२० को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दशक घोषित किया है । जैव विविधता के संबंध में अक्टूबर में नागोय में संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक की सबसे बड़ी उपलब्धि वह संधि थी, जिसमें दुनिया के १९१ देशों ने तय किया था कि वे धरती की १७ फीसदी जमीन और महासागरों के १० फीसदी जमीन और महासागरों के १० फीसदी हिस्से को जैव विविधता के सरंक्षण के लिए अलग रखेंगे । इससे भी महत्वपूर्ण बात यह स्वीकारोक्ति थी कि जैव विविधता के नष्ट होने की भारी कीमत मानवता को आर्थिक एवं स्वास्थ्य के मोर्चे पर चुकानी होगी । यह नुकसान ३ से ४ अरब डॉलर सालाना से कम नहीं होगा । इस भारी नुकसान के कारण विश्व बैंक और विभिन्न देशों के वित्त मंत्रियों के कानखड़े हुए हैं । यह वह नुकसान है, जिसे कोई भी सरकार वहन नहीं कर सकती ।
इस बीच, एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि अमेजन के जंगलों में आए एक भयंकर सूखे के कारण अनगिनत पेड़ नष्ट हो गए । इससे वर्षावनों का यह विशाल वन क्षेत्र कार्बन सोखने की बजाय कार्बन उत्सर्जन करने वाले इलाके में तब्दील हो गया है । पत्रिका साइस की एक रिपोर्ट में लीड्स विश्वविघाय के वैज्ञानिक कहते हैं कि अमेजन के जंगलों में वृक्षों के खत्म होने की वजह से अकेले अमरीका में ही जीवाश्म ईधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साड के उत्सर्जन में पिछले साल ५.४ अरब टन की बढोतरी की आशंक है । अमेजन में २००५ के दौरान जो भयावह सूखा पड़ा था, उसकी वजह से १८,००,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बारिश में कमी हो गई थी । इसके वातावरण में ५ अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड पहुंची थी ।
संयुक्त राष्ट्र नं २०११ को अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष घोषित किया है । इसका मकसद कार्बन को अपने में समाहित करने वाले अद्भुत जंगलों के संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना है । लेकिन हमारे जंगलों की आज जो दशा है, वह क्या किसी से छिपी है ?
करीब ४० देशों में काम करने वाली संस्था कंजर्वेशन इंटरनेंशनल ने १० ऐसे वनों की सूची जारी की है जिन पर सर्वाधिक खतरा मंडरा रहा है । इन जंगलों में ९० फीसदी या उससे भी ज्यादा प्राकृत वास खत्म हो चुके है । यदि ये वन पूरी तरह खत्म हो जाते हैं तो वहां पाई जाने वाली वनस्पतियों की करबी १५०० दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त् हो जाएंगी । ये वन भारत से लेकर वियतनाम और न्यूजीलैंड, भारत-मलेशिया द्वीप समूह, फिलीपींस, दक्षिण-पश्चिम चीन, पूर्वी ब्राजील, उरूग्वे, कैलिफोर्निया, तटीय पूर्वी अफ्रीका, मेडागास्कर और हिंद महासागर के अन्य द्वीपों, इथियोपिया, तंजनिया तथा मालवी के क्षेत्रोंमें फैले हुए हैं । इनमें अधिकांश वन अर्धकटिबंधीय या कटिबंधीय नम वन हैं । ये मानव विकास के कारण अत्यन्त दबाव में है ।
वन तेजी से फैलतेशहरों, चारागाहों, कृषि और खदानों की भेंट चढ़ते जा रहे हैं । और ऐसा करके हम स्वयं अपने जीवन को ही खतरे में डाल रहे हैं । इस चिंता को हम हाशिए पर डाले हुए है, लेकिन सच कहें तो यह खतरनाक हो सकता है ।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २००० से २०१० के बीच हर साल जंगलों के क्षेत्रफल में ५२ हजार वर्ग किलोमीटर की कमी हुई है । हालांकि इसके पहले के दशक से तुलना करें तो स्थिति में आंशिक सुधार नजर आता है । इस दशक के दौरन वनों के नष्ट होने की गति ८३ हजार वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष रही थी । हालांकि इस रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं है कि नष्ट होने वाले जंगलों में कितने पुराने थे और कितने नए ।
वन वृक्षों का समूह-भर नहीं होता । ये जैव विविधता से सम्पन्न ऐसे क्षेत्र होते हैं जो जीवन की विविधता को बनाए रखते हैं । यही वजह है कि अनेक लोग जंगल विनाश व बरबादी जनित उत्सर्जन में कमी (आर.ई.डी.डी.) जैसी योजनाआें के प्रति आशंकित है । यह वन की अवैज्ञानिक परिभाषा पर आधारित है जिसमें एक ही प्रजाति के पौधों और यहां तक कि जेनेटिक इंजीनियरिंग वाले पौधे रोपे जाते हैं । इससे भी बढ़कर, आरईडीडी जंगलों के विनाश के अंदरूनी कारकों का समाधान नहीं करती । यही वजह है कि संरक्षित क्षेत्रों में तो वनों की कटाई कम हो सकती है, लेकिन गैर संरक्षित क्षेत्रों में नहीं ।
इससे भी बदतर बात यह भी है कि आरईडीडी उत्तरी देशों में औघोगिक इकाइयों की अनुमति देती है जो प्रदूषण फैलाती हैं और इस तरह वातावरण लगातार खराब होता जा रहा है ।
ब्रिटिश सरकार अपने १५ वन क्षेत्रों को बेचने का वादा कर चुकी है । यह कुल मिलाकर ४० हजार हेक्टर के बराबर क्षेत्रफल होगा । यह इस उम्मीद में किया जा रहा है कि इससे उसके खजाने में १० करोड़ पाउंड की बढ़ोत्तरी हो सकेगी ।
उपग्रहों से प्राप्त् आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि एशिया में जितने जंगल कट रहे हैं, मलेशिया में उससे तिगुनी रफ्तार से वन खत्म हो रहे हैं । इनमें से अधिकांश जंगल जैव विविधता की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न बोर्निया द्वीप में समाप्त् हो रहे हैं । नीदरलैड्स स्थित पर्यावरण समूह वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा किए गए इस विश्लेषण के अनुसार बोर्नियो में स्थित मलेशियाई प्रांत सारावाक में पिछले पांच साल के दौरान ही १० फीसदी जंगल समाप्त् हो गए, जबकि बाकी एशिया में इस अवधि में वनों के कटाई की दर ३.५ फीसदी रही । सारावाक के पीटलैंड में कई ऐसी प्रजातियां पाई जाती हैं जो खतरे में हैं । इनमें सुमात्रा का गैंडा, बोर्निया का तेदुआ और पिग्मी हाथी शामिल है ।
वन कितने कीमती हैं, इसके सही मूल्यांकन का सख्त अभाव यहां साफ नजर आता है । अगर हम सही मूल्यांकन करें तो पाते है कि इससे न केवल जंगल में रहने वाले गरीबों को सीधा लाभ मिलेगा, बल्कि नया बाजार भी खुलेगा और वैश्विक आर्थिक विकास भी होगा । इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की एक रिपोर्ट पर विश्वास करें तो सरकारों और दानदाता एजेंसियों ने वनों के आर्थिक लाभों को कम करके आंका है।
वनों को पारंपरिक रूप से उनके मुख्य वाणिज्यिक स्त्रोत इमारती लकड़ी के लिए महत्व दिया जाता है । लेकिन धरती पर पाई जाने वाली जैव विविधता का ८० फीसदी हिस्सा वनोंकी देन है । साथ ही ये कई तरह की इकोसिस्टम सेवाएं भी प्रदान करते हैं, जैसे स्वच्छ पानी ये देते हैं, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाआें को नियंत्रित करने में भूमिका निभाते हैं । धन के रूप में इसका आकलन करें तो यह योगदान ७२० अरब डॉलर सालाना के बराबर है । रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के गरीब लोगों को उनकी प्रत्यक्ष आजीविका जैसे भोज्य पदार्थो, औषधियों, ईधन, ऊर्जा, रोजगार इत्यादि उपलब्ध कराने में भी वनों का अहम योगदान है । यह १३० अरब डॉलर सालाना के तुल्य बैठता है ।
आईयूसीएन की रिपोर्ट के लेखकों में से एक ल्यूसी एमर्टन कहती है, सरकारेें बजट तय करते समय आम तौर पर स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वनों में निवेश के आर्थिक रिटर्न की गणना नहीं करती हैं । इस तरह से वे गरीबी को कम करने, आर्थिक विकास दर को बढ़ाने और टिकाऊ विकास का महत्वपूर्ण अवसर खो देती है ।
दुनिया में ४० करोड़ हेक्टर जंगल यानी यूरोपीय संघ के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्र और करीब डेढ़ अरब लोग यानी चीन की आबादी से ज्यादा लोग स्थानीय नियंत्रित वानिकी में संलग्न है। हालांकि जंगलों पर उन्हें केवल ४७ फीसदी वैधानिक अधिकार ही दिए गए है ।
आईयूसीएन की स्थानीय नियंत्रित वानिकी में निवेश का मूल्य शीर्षक से जारी हुई इस रिपोर्ट का मकसद यह दिखाना है कि अगर वनों का प्रबंधन उनमें या उनके आसपास रहने वाले लोगों द्वारा किया जाए तो उसका अर्थ व्यवस्था पर कितना गहरा असर पड़ेगा । यह व्यवस्था जंगलों के निजीकरण करने के ब्रिटिश प्रयासों के बिलकुल विपरीत है ।
आईयूसीएन के पर्यावरण एवं विकास निदेशक स्टीवर्ट मैगिनिस कहते है - स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वन प्रबंधन लाभदायक सार्वजनिक निवेश है और विकास में सहायक है । हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव के संपूर्ण क्रांतिकारी तरीके और बेहतरी के लिए परिवर्तन की बात कर रहे हैं ।
वन इमारती लकड़ी, भोजन, आसरा और मनोंरजन के स्त्रोत के रूप में अनेक देशों के विकास में बड़ी भूमिका निभाते है । पानी मुहैया करवाने, मिट्टी के कटाव को रोकने और कार्बन को सोखने के स्त्रोत के रूप में वनों की जो क्षमता है, उसका भी पूरी तरह से दोहन करने की जरूरत है ।
वनों के कुछ लाभ इस तरह है:-
वे हर तरह से जीवन के लिए जरूरी है : जो संास हम लेते है, वह वनों से मिलती है, भोजन और पानी हमें वनों से मिलता है, जीवन बचाने वाली औषधियां हमें वनों से मिलती है, जीवन की विविधता हमें वन प्रदान करते है, हमारे वर्तमान व भविष्य को आकार प्रदान करने वाले वातावरण का निर्माण वन करते है । हमारी हर चीज तो वनों पर निर्भर है ।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के हमारे प्रयासों में वन महत्वपूर्ण सहयोगी है : वैश्विक प्रदूषण को कम करने का वनों से प्रभावी, सस्ता और तेज अन्य कोई साधन नहीं हो सकता । इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कितना दूरगामी असर पड़ सकता है, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अगर २०१० से २०१२ के बीच इस प्रदूषण को आधा कर दिया जाए तो ३७ ट्रिलियन डॉलर की बचत होगी ।
आर्थिक विकास में वन अतुलनीय योगदान देते है : वनों पर निर्भर समुदायों की एक चौथाई आय जंगलों द्वारा उपलब्ध करवाए जाने वाले पदार्थो और सेवाआें से मिलती है । आईयूसीएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों द्वारा नियंत्रित वन गरीबों को हर साल १३० अरब डॉलर के बराबर लाभ पहुंचाते है ।
उजड़े जंगलों को बसाना : उजड़े और नष्ट हो चुके जंगलों को फिर से बसाने में भी बहुत सारे अवसर समाने आ सकते हैं । इससे अनेक लोगों को आजीविका मिल सकती है ।
२०१० को हमने अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाया था। इस दौरान ९० देशों के १५०० सरकारी संगठनों, ३८८ गैर सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र की २१ एजेंसियों ने जैव विविधता के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने में योगदान दिया । संयुक्त राष्ट्र ने २०११-२०२० को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दशक घोषित किया है । जैव विविधता के संबंध में अक्टूबर में नागोय में संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक की सबसे बड़ी उपलब्धि वह संधि थी, जिसमें दुनिया के १९१ देशों ने तय किया था कि वे धरती की १७ फीसदी जमीन और महासागरों के १० फीसदी जमीन और महासागरों के १० फीसदी हिस्से को जैव विविधता के सरंक्षण के लिए अलग रखेंगे । इससे भी महत्वपूर्ण बात यह स्वीकारोक्ति थी कि जैव विविधता के नष्ट होने की भारी कीमत मानवता को आर्थिक एवं स्वास्थ्य के मोर्चे पर चुकानी होगी । यह नुकसान ३ से ४ अरब डॉलर सालाना से कम नहीं होगा । इस भारी नुकसान के कारण विश्व बैंक और विभिन्न देशों के वित्त मंत्रियों के कानखड़े हुए हैं । यह वह नुकसान है, जिसे कोई भी सरकार वहन नहीं कर सकती ।
इस बीच, एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि अमेजन के जंगलों में आए एक भयंकर सूखे के कारण अनगिनत पेड़ नष्ट हो गए । इससे वर्षावनों का यह विशाल वन क्षेत्र कार्बन सोखने की बजाय कार्बन उत्सर्जन करने वाले इलाके में तब्दील हो गया है । पत्रिका साइस की एक रिपोर्ट में लीड्स विश्वविघाय के वैज्ञानिक कहते हैं कि अमेजन के जंगलों में वृक्षों के खत्म होने की वजह से अकेले अमरीका में ही जीवाश्म ईधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साड के उत्सर्जन में पिछले साल ५.४ अरब टन की बढोतरी की आशंक है । अमेजन में २००५ के दौरान जो भयावह सूखा पड़ा था, उसकी वजह से १८,००,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बारिश में कमी हो गई थी । इसके वातावरण में ५ अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड पहुंची थी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें