गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

स्वास्थ्य

खाद्य व औषधि उद्योग के संक्रामक हाथ
सुश्री विभा वार्ष्णेय

संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐतिहासिक पहल कर मधुमेह, हृदय रोग व कैंसर जैसी लंबी अवधि की बीमारियों पर सम्मेलन का आयोजन कर इससे निपटने की व्यूह रचना तैयार करना चाहता है । लेकिन दवाई एवं भोजन उद्योग इस पहल पर पानी डालना चाहते हैं । कुछ अमीर देश भी इस प्रयास में उनकी सहायता कर रहे हैं । देखना होगा कि इसमें किसकी जीत होगी ।
विश्व में मृत्यु के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी अंसक्रामक रोगों (एनसीडी) से निपटने के लिए विश्व के नेता १९ और २० सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में एकत्रित ह्ुए थे । इसी के समानांतर औषधि एवं खाद्य (भोजन) उद्योग एवं कुछ अमीर देश इस पहल को कमजोर करने मेंभी जुट गए हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के इतिहास में यह दूसरा मौका है जबकि वह स्वास्थ्य के एक मुद्दे, असंक्रामक रोगों पर जिसका महत्वपूर्ण सामाजिक - आर्थिक प्रभाव है, पर सभा का आयोजन कर रही है । इसके पहले वह एचआईवी/एड्स पर इस तरह का सम्मेलन आयोजित कर चुकी है । फोरम की रिपोर्ट का कहना है कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूसरा सबसे बड़ा खतरा है । भारत जैसे निम्न एवं मध्यम आय देश जो कि इन लंबी बीमारियों से निपट पाने में असमर्थ हैं, ने इस सम्मेलन से बहुत आस लगा रखी है । अगर ये बीमारियां वैश्विक प्राथमिकता बन जाती हैं, तो विश्व नेता इस संबंध में समन्वयकारी ढंग से निपटने में तदोपरांत प्रतिबद्धता दर्शाएंगे और वित्तीय सहायता भी प्रदान करेंगे ।
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हेतु सलाह मशविरा करते हुए इसकी स्वास्थ्य इकाई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) ने राष्ट्रों से इन बीमारियों की व्यापकता, राष्ट्रीय योजना और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से की जा रही उम्मीदों पर विचार विमर्श किया । इस संबंध में अप्रैल में मास्को में वैश्विक मंत्री स्तरीय बैठक आयोजित कर असंक्रामक रोगों से संबंधित जानकारियों को और पुख्ता किया गया । इस संबंध में नागरिक समूहों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और रोगी समूहों से भी विमर्श जारी है ।
हितों में टकराव - मास्को में हुई मंत्रीस्तरीय बैठक में निम्न और मध्य आय वर्ग देशों में इन बीमारियों से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कोष बनाने की इच्छा व्यक्त की । विश्वभर में असंक्रामक कोष बनाने की इच्छा व्यक्त की । विश्वभर में असंक्रामक रोगों से प्रतिवर्ष होने वाली ३.५ करोड़ मौत में से ८० प्रतिशत इन्हीं देशों में होती हैं । परन्तु सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सुनिश्चित नहीं हैं, कि औद्योगिक लॉबी के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ सम्मेलन में कोष स्थापना की मांग चर्चा में आ भी पाएगी या नहीं । मंंत्रियों की बैठक के पश्चात डॉक्टरों के समूहों, रोगी समूहों और औषधी उद्योग जैसे द लांसेट एनसीडी एक्शन गु्रप, और एनसीडी एलायंस ने एक सभा का आयोजन कर संयुक्त राष्ट्र संघ को एक ज्ञापन देकर वैश्विक कोष की आवश्यकता का विरोध किया । अपने ज्ञापन में उन्होनें कहा है कि आर्थिक समस्या का समाधान वर्तमान संसाधनों के प्रभावशाली उपयोग एवं नवाचार लिए हुई वित्तीय प्रणाली के माध्यम से हो सकता है । उनका मत है कि सं.रा. संघ बजाए उपचार के जागरूकता फैलाने एवं स्वास्थ्यकर जीवनशैली अपनाने की वकालत कर इन बीमारियों को रोकने पर स्वयं को केन्द्रित करे ।
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का मत :-
ख़मानसिक स्वास्थ्य, मिर्गी, मुंह की बीमारी और चोटों को भी इनमें शामिल करें ।
ख़ स्वास्थ्यकर भोजन पर सब्सिडी दी जाए ।
ख़ इस कार्यक्रम हेतु अल्कोहल, तम्बाखू एवं अस्वास्थ्यकर भोजन पदार्थो पर कर लगाकर धन उपलब्ध करवाया जाए ।
ख़ नियंत्रण की रणनीति बनाने हेतु अन्य मंत्रालयों को भी शामिल किया जाए ।
ख़ उपचार को आम आदमी की हद में लाया जाए ।
उनके (उद्योग) ज्ञापन से लगता है कि वे उद्योग के हित की रक्षा कर रहे है । यह बात इस तथ्य से भी उभरकर आती है कि इन समूहों के गठबंधन को औषधि उद्योग से धन प्राप्त् होता है । उदाहरण के लिए एनसीडी अलायंस में चार रोगी समूह है और सभी को औषधि कंपनियों से मदद मिलती है । इनमें एक समूह अंतर्राष्ट्रीय डायबिटिक फेडरशन लिली, नोवो नोर्डिक्स, सनोफी एवेंटिस, अब्बॉट डायबिटिक केयर, मॅर्क, एवं फाइजर जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साझेदार है ।
उद्योग की इस दबी-छुपी गतिविधि के पीछे के कारण को समझाते हुए थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क के के. गोपालकुमार कहते है औषधि उद्योग सम्मेलन को असंक्रामक रोगों के उपचार के बजाए उसकी रोकथाम पर इसलिए एकाग्र करना चाहता है जिससे कि वह औषधियों के मूल्यों में कमी एवं अनिवार्य लायसेंस से स्वयं की रक्षा कर सके । मंत्रियों की बैठक के दौरान भी उद्योग के दबाव को महसूस किया गया । पेप्सी को, कोका कोला, नेसले, दि वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ एडवरटाजर्स, और इंटरनेशनल फूड एण्ड बेवरीज (आईएफबीए) जैसे निगमों ने भी इस बैठक में भागीदारी की थी ।
खाद्य एवं पेय से संंबंधित कार्य समूह की अध्यक्षता कोका कोला के एक प्रतिनिधि ने की थी । आइएफईबी के प्रतिनिधि ने सुझाव दिया कि उद्योग भोजन को पुन: सूत्रबद्ध करने हेतु स्वैच्छिक स्वनियमन करे । उदाहरण के लिए इनमें नमक एवं चिकनाई जैस पदार्थो में कमी लाएं, जिम्मेदार विज्ञापनों में वृद्धि करें और बीमारी एवं स्वास्थ्यकर जीवनशैली के संबंध मेंजागरूकता कायम करने हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी एजेंसियों की मदद करने जैसे सुझाव दिये गए हैं । परन्तु तथ्य बताते है कि उद्योग का स्वनियमन काम नहीं आता । अतएव सरकारी नियंत्रण ही एकमात्र हल है ।
अलायंस अगेंस्ट कनफ्िलक्ट ऑफ इंटररेस्ट के संयोजक अरूण गुप्त का कहना है ऐसी कंपनियों जो कि स्वयं ही असंक्रामक रोग फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे कि नेसले, जो कि माँ के दूध के विकल्प के रूप में बच्चें के खाद्य (बेबी फूड) को प्रोत्साहित करती है, को इस तरह की सभाआें मेंे आमंत्रित ही नहीं किया जाना चाहिए । इस बात के भी प्रमाण हैं कि शिशुकाल में स्तनपान से इन बीमारियों से सुरक्षा प्राप्त् होती है क्योंकि इससे शरीर में नमक कम मात्रा में पहुंचता है । परन्तु विश्व स्वास्थ्य संगठन की उद्योग पर निर्भरता के प्रमाण डायरेक्टर जनरल मार्गरेट चान द्वारा सभा के अंत में की गई टिप्पणियों से साफ नजर आते हैं जिसमें उन्होनें बार-बार निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका और उनके माध्यम से धन प्रािप्त् पर जोर दिया । असंक्रामक रोगों को वैश्विक प्राथमिकता देने पर भी राष्ट्रों के बीच में मतभेद हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक हेतु मसौदा अब विभिन्न सरकारों द्वारा अपनी टिप्पणी देने के लिए जारी कर दिया गया है । अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन यूनियन द्वारा की गई टिप्पणियों के समय पूर्व लीक हो जाने से पता लगा है कि वे असंक्रामक रोगों के लिए महामारी शब्द के उपयोग से खुश नहीं है । वे इसे अत्यधिक वृद्धि या तेजी से बढ़ती से बदलना चाहते हैं । चिकित्सकों के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह यंग प्रोफेशनल क्रॉनिक डिसीज नेटवर्क के अरिया इल्याड अहमद का कहना है ऐसा शायद संसाधनोंको उपलब्ध करवाने संबंधी मसलों, ट्रिप्स के लचीलेपन का प्रयोग, समयबद्ध लक्ष्य प्रािप्त् में कमी और ठीक से देखभाल न हो पाने के कारण हो रहा है ।

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