कविता
बिन पानी सब सून
शिवेन्द्र शर्मा
सावधान ! ओ मनु पुत्र,
अनुशासन मत भंग करो !
मिले हैं जो उपहार तुम्हें,
उन्हें न यूँ बदरंग करो !
याद करो उस सृष्टा को,
जिसने सब कुछ तुम्हेंदिया ।
सर्व सुलभ है जलवायु
प्रकृति का सौन्दर्य दिया !
मानव जीवन पाकर तूने,
तनिक न इसका मान किया !
स्वार्थ परायण हो करके,
अपना सुख बरबाद किया !
धरती के ऊपर है पानी,
धरती के नीचे भी पानी !
तीजा है बारिश का पानी,
फिर भी रोते पानी, पानी !
जल की विपुल राशि को,
मानव तूने बरबाद किया !
संसाधन को कर-कर दोहन,
प्रकृति से खिलवाड़ किया !
जलता सूरज तपती धरती,
हाल बुरा है जीवन का !
इस पर भी है संकट भारी,
बूँद-बूँद जल पीन का !
पानी है अनमोल सभी को,
इसकी रक्षा करनी होगी !
गाँव-गाँव से शहरों तक,
अब अलख जगानी ही होगी !
बिन पानी सब सून
शिवेन्द्र शर्मा
सावधान ! ओ मनु पुत्र,
अनुशासन मत भंग करो !
मिले हैं जो उपहार तुम्हें,
उन्हें न यूँ बदरंग करो !
याद करो उस सृष्टा को,
जिसने सब कुछ तुम्हेंदिया ।
सर्व सुलभ है जलवायु
प्रकृति का सौन्दर्य दिया !
मानव जीवन पाकर तूने,
तनिक न इसका मान किया !
स्वार्थ परायण हो करके,
अपना सुख बरबाद किया !
धरती के ऊपर है पानी,
धरती के नीचे भी पानी !
तीजा है बारिश का पानी,
फिर भी रोते पानी, पानी !
जल की विपुल राशि को,
मानव तूने बरबाद किया !
संसाधन को कर-कर दोहन,
प्रकृति से खिलवाड़ किया !
जलता सूरज तपती धरती,
हाल बुरा है जीवन का !
इस पर भी है संकट भारी,
बूँद-बूँद जल पीन का !
पानी है अनमोल सभी को,
इसकी रक्षा करनी होगी !
गाँव-गाँव से शहरों तक,
अब अलख जगानी ही होगी !
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