बुधवार, 14 जनवरी 2015

गणतंत्र दिवस पर विशेष 
पर्यावरण से प्रतिद्धंदिता 
डॉ. ओ.पी. जोशी 
भारत में पदभार ग्रहण कहने वाली एनडीए सरकार का रूख कमोबेेश पर्यावरण की अनदेखी करता नजर आ रहा है । पर्यावरणीय संवेदनशील इलाकों में जिस तेजी से निर्माण कार्य स्वीकृति दी जा रही है उससे लगता है कि भारत का वन एवं पर्यावरण मंत्राालय उद्योग मंत्रालय में परिवर्तित गया है और पर्यावरण को विकास को रास्ते का रोड़ा मान रहा है । 
केंद्र की नई सरकार में पर्यावरण की अनदेखी तो मंत्रिमंडल गठन से ही प्रारंभ हो गई थी जब कोई पूर्णकालीन पर्यावरण व वन मंत्री नहीं बनाया गया । प्रकाश जावड़ेकर को वन व पर्यावरण मंत्रालय के साथ सूचना व प्रसारण दिया गया था । इसके बाद निर्धारित समय में सर्वोच्च् न्यायालय में मंत्रालय ने उत्तराखंड की जलविद्युत परियोजनाआें से जैव विविधता पर  पड़ रहे प्रभाव की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की । यह रिपोर्ट १० अक्टूबर २०१४ को न्यायालय में प्रस्तुत की जानी  थी । इस लेटलतीफी से नाराज होकर न्यायालय ने सरकार से कहा कि वह कुम्भकर्ण जैसा व्यवहार कर रही    है । 
पिछली यूपीए सरकार में पर्यावरण संबंधित काफी कठोर नियम कानून बनाए थे, जिससे कई उद्योगपति एवं औद्योगिक घराने नाराज थे । यह दलील दी जा रही थी कि कठोर नियम कानून से देश में पूंजी निवेश एवं आर्थिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा । ऐसा लगता है कि एनडीए की सरकार उद्योगपतियों एवं उद्योग घरानों के दबाव में आ गई है एवं पर्यावरण सुरक्षा एवं सुपोषित विकास की बात छोड़कर नियम-कानून शिथिल या कमजोर करने का पुरजोर प्रयास कर रही है । वन व पर्यावरण मंत्रालय से परियोजना मंजूरी की समय सीमा १०५ दिनांे से घटाकर ६० दिन कर दी गई । किसी भी परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों के अध्ययन हेतु यह समय सीमा काफी कम है । वैसे भी हमारे देश में तीन प्रकार के मौसम होते हैं एवं यदि तीनो मौसम में अध्ययन किया जाए तो कम से कम ३०० दिन लगते हैं । मौसम के अनुसार तापमान, आर्द्रता, वायु गति  व दिशा आदि बहलते रहत हैं । अत: ६० दिनों में पूरा अध्ययन संभव नहीं है । 
परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन भी परियोजना के कर्ताधर्ता द्वारा स्वयं की पसंदीदा कंपनी या एजेंसी द्वारा करवाये जाने के प्रस्ताव पर भी विचार जारी है । इसका परिणाम यह होगा कि परियोजना प्रबंधक ऐसी एजेंसी या संस्था से अध्ययन करवायेंगे जिससे उनके अनुकूल रिपोर्ट दे दे । इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा एवं पर्यावरण का ज्यादा विनाश होगा । अभी तक मंत्रालय स्वयं अपने विषय विशेषज्ञों से अध्ययन करवाकर परियोजना की समीक्षा करता था । यह प्रस्ताव भी विचाराधीन है कि यदि किसी परियोजना की स्वीकृतिके बाद दो माह में कोई संगठन या व्यक्ति उसका विरोध नहीं करता है तो यह मान लिया जाएगा कि इससे पर्यावरण को कोई हानि नहीं है । 
किसी भी परियोजना का विरोध विस्तृत रिपोर्ट के अध्यय, संबंधित लोगों, कानूनविदों तथा वैज्ञानिकों की राय के बाद किया जाता है । इस पूरी प्रक्रिया में लम्बा समय लगता है अत: दो माह की अवधि काफी कम है । नर्मदा घाटी परियोजना जैसी विशाल परियोजना रिपोर्ट पढ़ने एवं समझने में ही लंबा समय लग सकता था । खनन, ताप विद्युत कारखानें, नदी घाटी एवं अधोसंरचना आदि से जुड़ी लगभग ३५० से अधिक विचाराधीन परियोजनाआें में से ज्यादातर को सरकार जल्द से जल्द स्वीकृति देने हेतु प्रयासरत है । 

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