बुधवार, 14 जनवरी 2015

जीवजगत
सुन्दरता के लिए कुरबान नहींहोंगे जीव
संध्या रायचौधरी
किसी के जीवन की कीमत पर इंसानी देह की सुन्दरता बढ़ाने में भारत ने तौबा कर ली है । जन्तुआें पर क्रूर प्रयोग कर सौंदर्य प्रसाधन बनाने और ऐसे उत्पादों का आयात करने पर प्रतिबंध लगाकर भारत ने अमेरिका और चीन जैसे अग्रणी देशों के लिए नजीर पेश की है । 
इसी के साथ भारत दक्षिण एशिया मेंसौंदर्य प्रसाधनों  के मामले में क्रूरता मुक्त देश बन गया है । ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल नामक गैर सरकारी संगठन आयात पर रोक लगाने के लिए कई दिनों से अभियान चला रहा था । उन्होनें बताया कि सरकार ने ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक्स कानून में एक नई धारा जोड़ी है । इसके बाद ऐसे किसी भी सौंदर्य उत्पाद का देश में आयात नहीं किया जा सकता है जिसे बनाने के लिए जन्तुआें पर प्रयोग किए गए हो । 
इससे पहले २३ मई को देश में सौंदर्य उत्पाद बनाने के लिए जन्तु परीक्षण पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था । ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल ने इस खबर के बाद टिप्पणी में कहा यह एक बड़ी उपलब्धि है जो सरकार उपभोक्ताआें और उद्योग के सहयोग के बगैर संभव नहीं हो सकती थी । हमें पूरा विश्वास है कि अगर दूसरे मामलों में भी जन्तु प्रयोग रोके जा सके तो भारतीय विज्ञान का आधुनिकीकरण होगा और कई जानवर पीड़ा से बच जाएंगे । 
भारत से पहले युरोपीय संघ ने भी ऐसा ही प्रतिबंध अपने सदस्य देशों के लिए लागू किया था । जन्तु अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह पेटा ने भी इस फैसले का स्वागत किया है । 
पेटा मेंविज्ञान नीति सलाहकार डॉ. चैतन्य कोदुरी के अनुसार यह पूरी दुनिया को एक संदेश है कि भारत अब शैंपू, या अन्य सौंदर्य उत्पादों के लिए किसी खरगोश को अंधा करना सहन नहीं करेगा । इस फैसलेसे उस उद्योग को बढ़ावा मिलेगा जो जन्तुआें पर प्रयोग नहीं करता । भारत के विपरीत चीन और जापान में सौंदर्य उत्पादों के लिए जन्तुआें पर परीक्षण करना अनिवार्यहै। 
ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशल इंडिया के बी क्रुएल्टी (क्रूरता मुक्ति) अभियान की मैनेजर आलोकपर्णा सेनगुप्त ने कहा, इस ऐतिहासिक प्रतिबंध, जिसमें जन्तुआें पर प्रयोग के बाद बनाए गए सौंदर्य उत्पादों का आयात नहीं किया जाएगा, को लागू कर भारत ने दक्षिण एशिया में इतिहास बना दिया है । 
भारत ने कॉस्मेटिक उत्पादों के लिए जन्तु परीक्षणों पर रोक लगा दी है । इस प्रतिबंध के कुछ महीने बाद ही भारत ने ऐसे परीक्षण से गुजरने वाले उत्पादों के आयात पर भी रोक लगा कर कारोबारी हितों की बजाए जीव मात्र के जीवन को अहमियत देने का संदेश दुनिया को देने की कोशिश की है । भारत का यह फैसला न सिर्फ जीव हिंसा को रोकने के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि आर्थिक कूटनीति के नजरिए से भी अहम है । 
इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए भारत सरकार ने ड्रग एण्ड कॉस्मेटिक कानून में बदलाव किया है । ये नियम स्वास्थ्य मंत्रालय के क्षेत्राधिकार में आते हैं । इसलिए अब  जन्तुआें पर परीक्षण से बने सौंदर्य प्रसाधनों का आयात भी प्रतिबंधित हो गया है । इस नियम में बदलाव का सीधा असर चीन, जापान और अमेरिका से होने वाले आयात पर पड़ेगा । कानून के जानकारों का मानना है कि भारत को इस तरह का प्रतिबंध नहीं लगाने वाले देशों के साथ आयात-निर्यात संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध तोड़ने पड़ सकते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय कानून के जानकार प्रोफेसर अविनाश हजेला का मानना है कि भारत सौंदर्य  प्रसाधनों के लिए दुनिया का एक बड़ा बाजार है । इस क्षेत्र में चीन, जापान और खासकर अमेरिका की तमाम कंपनियों ने द्विपक्षीय समझौतों के तहत भारत में भारी निवेश किया है । ऐसे में ये कंपनियां भारत में पुराने नियमों की बाध्यता का हवाला देकर हर्जाने का दावा कर सकती है । 
वास्तव में चिंता इस बात की, की जानी चाहिए कि प्रतिबंध प्रभावी तोर पर कितना लागू हो पाएगा । बीते छह दशकों का इतिहास बताता है कि कानूनों की बहुलता के बावजूद भारत इन्हें लागू करने में नितांत अक्षम साबित हुआ है । सौंदर्य प्रसाधनों के जन्तुआें पर परीक्षण को प्रतिबंधित करने के बाद अब तक सरकार ठोस प्रमाण नहीं दे पाई है कि उक्त बदलाव के फलस्वरूप कितने जानवरों को जीवनदान मिला है । समय ही बताएगा कि जन्तुआें पर प्रयोग करके तैयार होने वाले सौंदर्य  प्रसाधनों का आयात तस्करी के माध्यम से भारत की सीमा में किस हद तक रूक पाता है । 
युरोप में अब ऐसा कोई भी सौंदर्य उत्पाद नहीं बेचा जा सकेगा जिसका परीक्षण जन्तुआें पर किया गया हो । युरोपीय संघ में बने सौंदर्य उत्पादों का जन्तुआें पर परीक्षण २००४ में ही रोक दिया गया था । चार साल ऐसे उत्पादों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया जिनमें इस्तेमाल होने वाले किसी पदार्थ का परीक्षण जन्तुआें पर किया गया हो । कंपनियों ने इसका काफी विरोध किया । 
जानवरों की रक्षा के लिए काम करने वाले ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल संगठन सहित कई संगठनों ने युरोपीय संघ के इस कानून का स्वागत किया है और जानवरों पर परीक्षण को पूरी तरह रोकने का कदम अहम बताया है । उनके मुताबिक इस फैसले के बाद यह दुनिया की इकलौती कॉस्मेटिक इंडस्ट्री होगी जहां जन्तुआें को पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा । संगठन ने उम्मीद जताई है कि दुनिया की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाआें वाले युरोपीय संघ का यह कदम धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर असर करेगा । दूसरी ओर युरोपीय व्यापार संगठन का कहना है कि इस प्रतिबंध के कारण उद्योग की प्रतियोगी क्षमता पर असर पड़ेगा और यह रोक लगाने में बहुत जल्दबाजी की गई है क्योंकि कई मामलों में जन्तु परीक्षण का कोई विकल्प नहीं है । 
कॉस्मेटिक्स युरोप के प्रमुख बेटी हीरिंक ने कहा है कि इस समय प्रतिबंध लगाकर युरोपीय संघ उद्योग की रचनात्मक क्षमता में अडंगा डाल रहा है । युरोपीय आयोग के मुताबिक २०१० में युरोप की कॉस्मेटिक कंपनियों ने ७१ अरब यूरो कमाए थे और इस उद्योग में करीब एक लाख अस्सी हजार लोग काम करते हैं । आयोग ने कहा है कि वह अपने व्यापार साझेदार अमेरिका और चीन से इस बारे में बात करके युरोपीय मॉडल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन दिलवाने की कोशिश   करेगा । आयोग इसे युरोपीय संघ के व्यापार एजेंडा और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का अहम हिस्सा बनाएगा । 
फिलहाल युरोपीय संघ के बाहर बने नए कॉस्मेटिक उत्पाद, जिनका जन्तुआें का परीक्षण किया गया हो, युरोप में बिक सकते हैं । लेकिन शर्त यह है कि सिर्फ जन्तु परीक्षण के आधार पर उत्पाद की सुरक्षा साबित नहीं कर सकते, इसके लिए अतिरिक्त परीक्षणों के नतीजें दिखाने होंगे । कुछ सौंदर्य प्रसाधन ऐसे होते हैं जिनमें दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है और इन दवाइयों का परीक्षण जन्तुआें पर किया जाता है । युरोपीय नियमों के मुताबिक ऐसे दवायुक्त उत्पाद युरोप में बेचे जा सकते हैं । 
सुन्दरता निखारने वाली क्रीम, पावडर और लिपस्टिक जैसी कई चीजों को हम तक पहुंचने से पहले जन्तुआें पर जांचा जाता है । परीक्षण के दौरान नुकसानदायक प्रतिक्रियाएं भी हो जाती हैं, जिससे कई बेजुबान जीव अपनी जान गंवा देते हैं । 
जानवरों के हित में काम करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय संगठन पेटा के मुताबिक हर साल केवल अमेरिका में ही करीब १० करोड़ जानवर कई प्रयोगों में दवाआें और कॉस्मेटिक उत्पादों के परीक्षण के कारण मारे जाते हैं । इनमें खरगोश, बिल्ली, चूहे, चिड़िया, वगैरह शामिल हैं । कई सौंदर्य उत्पादों के परीक्षण चूहों पर होते है । बिल्ली पर ज्यादातर तत्रिका संबंधी परीक्षण होते हैं । इनमें तनाव संबंधी दवाआें का परीक्षण शामिल है । टूथपेस्ट जैसे कई उत्पादों का परीक्षण हेम्सटर, खरगोश, चूहों जैसे जन्तुआें पर होता है । लिपस्टिक के परीक्षण के लिए चूहों के मसूड़ों पर इसे मलकर देखा जाता है तो शैम्पू के परीक्षण के लिए खरगोश का उपयोग होता है । 

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