ज्ञान विज्ञान
देश की पहली स्मार्ट सिटी दिल्ली में
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना की आधारशीला दिल्ली में रखी जाएगी। राजधानी दिल्ली में न सिर्फ देश की पहली स्मार्ट सिटी तैयार होगी बल्कि इसे ग्लोबल सिटी (वैश्विक शहर) की तर्ज पर विकसित कर सभी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी ।
दिल्ली वालों को यह खुशखबरी केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री वैकेया नायडू ने डीडीए के मुख्यालय पर हाउसिंग योजना - २०१४ के तहत आवंटन प्रक्रिया की औपचारिक शुरूआत करने के मौके पर दी । नायडू ने कहा, हम दिल्ली को वास्तव में एक वैश्विक शहर बनाना चाहते है, जहां लंदन और सैन फ्रांसिस्को जैसी आधुनिक और नवीनतम सुविधाएं हो । हम यहां पर डिज्नीलैंड और युनिवर्सल स्टुडियोज जैसे विश्व स्तर के मनोरंजन स्थल चाहते है ।
मोदी सरकार ने देश में १०० स्मार्ट शहर बसाने की योजना बनाई है । इसके तहत पहला शहर दिल्ली में तैयार होगा । नायडू ने कहा, दिल्ली देश का दिल है और पहली स्मार्ट सिटी यहीं बनेगी । इस दिशा में हमारे प्रयासों में मदद करने के लिए स्पेन के बार्सिलोना शहर ने तकनीकी सहयोग देने का वादा किया है । मैंने बार्सिलोना में देखा है कि वहां आधुनिक इमारतों के साथ ही कई ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजकर रखा गया है । स्मार्ट सिटी के बारे में बताते हुए उन्होनें कहा कि यहां वैश्विक स्तर के शैक्षणिक स्वास्थ्य संस्थान के साथ ही मनोरंजन सुविधाआें का निर्माण किया जाएगा ।
विलुिप्त् के कगार पर पर्यावरण मित्र गिद्ध
गिद्ध शिकारी पक्षियों के अन्तर्गत आने वाले मुर्दाखोर पक्षी है, जिन्हें गुद्ध कुल में एकत्र किया गया है । ये सब पक्षी दो भागों में बांटे जा सकते हैं । पहले भाग में अमरीका के कॉण्डर, किंग वल्वर, कैलिफोर्नियन वल्चर, टर्की बर्जर्ड और अमरीकी ब्लैक वल्चर होते हैं और दूसरे भाग में अफ्रीका और एशिया के राजगुद्ध, काला गिद्ध, चमर गिद्ध, बड़ा गिद्ध और गोबर गिद्ध मुख्य हैं । ये कत्थई और काले रंग के भारी कद के पक्षी हैं, जिनकी दृष्टि बहुत तेज होती है । शिकार पक्षियों की तरह इनकी चोंच भी टेढ़ी और मजबूत होती है, लेकिन इनके पंजे और नाखून उनके जैसे तेज और मजबूत नहीं होते । ये झूडों में रहने वाले मुर्दाखोर पक्षी है, जिनसे काई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से नहीं बचती । ये पक्षियों के सफाइकर्मी है, जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी नहीं फैलनेदेते ।
इन सभी तथ्यों के बावजूद आज जो बात जमीनी स्तर पर खड़ी है वह यह कि यह प्राकृतिक रूप से लाभकारी पक्षी अपनी विलुप्त्ता के कगार पर खड़ा है । दक्षिणी एशिया में गिद्ध की तीन प्रजातियां ९७ प्रतिशत तक विलुप्त् हो चुकी हैं, वहीं एक प्रजाति तो ९९.९ प्रतिशत तक विलुप्त् हो चुकी है । गिद्धों की विलुप्त्ता की प्रक्रिया डोडो समेत बहुत सी जंगली पक्षियों से ज्यादा तेजी से हुई है । भारत में इनको ९ प्रकार की प्रजातियां है । डेढ़ से दो दशक में गिद्धों की संख्या ९७ प्रतिशत नष्ट हो गयी है । २० वर्ष पहले तक भारत में गिद्धों की संख्या लगभग ९.५ लाख थी । अब उनकी संख्या मात्र ३-४ हजार ही शेष रह गई है । गिद्धोंं की तीन प्रजातियों (व्हाइट, बैक्ड, स्लेंडर बिल्ड, लॉग बिल्ड) तेजी से विलुप्त् होती जा रही है । यह पर्यावरण के परिस्थितिकीय चक्र के लिए अशुभ संकेत है ।
इंसानोंसे पहले की कलाकृति मिली
भूमध्य सागर के निकट जिब्राल्टर की एक गुफा में चट्टानों पर उकेरी गई कुछ रेखाआें को देखकर यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि यह आदिम कलाकृति का एक नमूना है जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि निएंडरथल्स ने बनाया है । निएंडरथल्स मानव सदृश जीव थे ।
दरअसल भूमध्य सागर के तट पर स्थित ग्रोहम गुफा में प्राणी वैज्ञानिक और जिब्राल्टर संग्रहालय के निदेशक क्लाइव फिनलेसन और उनके साथी उत्खनन कार्य कर रहे थे । उन्होनें पाया कि यहां रहने वाले निएंडरथल्स मछलियां, झींगे और पक्षियों का भक्षण करते थे । मगर फिर फिनलेसन और उनके साथी फ्रांसिस्को पैचेको उस गुफा में मौजूद एक संकरी-सी दरार के अंदर घुसकर एक और कोठरी में पहुंच गए ।
उस कोठरी में एक चट्टान पर करीब २० से.मी. लंबा-चौड़ा एक चपटा उभार था, किसी मेज के समान । इस मेजनुमा उभार पर कुछ रेखाएं उकेरी गई थी । टीम का मत है कि ये रेखाएं चट्टान पर बेतरतीबी से चोट करके नहीं बनी होगी । कई बार निएंडरथल अपने शिकार के टुकड़े करने के लिए उसे चट्टान पर रखकर पत्थर के औजारों से चोट करते थे । मगर शोधकर्ताआें ने एक अन्य चट्टान पर ऐसा करके देखा मगर उनका निष्कर्ष है कि ग्रोहम गुफा में पाई गई वे रेखाएं जान-बूझकर, उद्देश्यपूर्ण ढंग से ही उकेरी जा सकती हैं । इन रेखाआें को देखकर लगता है कि निएंडरथल काफी अमूूर्त सोच की क्षमता से लैस थे ।
अब सवाल आया कि यह कलाकृति कितनी पुरानी है । वैसे तो शैल कलाकृतियों की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल काम होता है मगर फिनलेसन को यकीन है कि ये कलाकृतियां कम से कम ३९,००० साल पुरानी हैं । इस निष्कर्ष का आधार यह है कि इस गुफा में जो तलछट मिली है उसमें पत्थर के कई औजार पाए गए हैं जिन्हें निएंडरथल ने ३०-३९ हजार साल पहले बनाया होगा । ये कलाकृतियां इस तलछट के भी नीचे है । इसका मतलब है कि ये ३९,००० साल से ज्यादा पहले बनाई गई होगी ।
फिनलेसन का मत है कि आधुनिक मानव (होमो) उस इलाके में इसके कम से कम १०,००० साल बाद पहुंच थे, जब निएंडरथल विलुप्त् हो चुके थे । इस हिसाब से देखे तो ये कलाकृतियां आधुनिक मानव ने नहीं बल्कि निएंडरथल्स ने बनाई हैं और इससे साबित होता है कि उनमें अमूर्त सोच की क्षमता थी । फिनलेसन के अनुसार ये अब तक युरोप की सबसे प्राचीन शैल कलाकृतियों के नमूने हैं । इस अध्ययन का विवरण प्रोसीडिग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज में प्रकाशित हुआ है ।
बहरहाल, कई अन्य पुरावेत्ताआें का मत है कि चंद रेखाआें के आधार पर ऐसे व्यापक निष्कर्ष निकालना थोड़ी ज्यादती है । जैसे मानव वैज्ञानिक हैरॉल्ड डिबल को इन रेखाआें और उनके रचयिताआें की पहचान, दोनों को लेकर शंका है । उनका कहना है कि तलछट जमा होने के बाद भी हिलती-डुलती और बहती है । हो सकता है कि उस गुफा में वह तलछट बाहर से आकर जमा हो गई हो ।
जी.एम. फसले, मोनार्क तितलियोंके लिए खतरा
अमेरिका में जीन परिवर्धित (जीएम) फसलों के इस्तेमाल से मोनार्क तितलियां, लुप्त् प्राय प्रजातियों में शामिल होने के कगार पर हैं । पहले इन्हें देश में कहीं भी आसानी से देखा जा सकता था । पिछले दो दशकों में मोनार्क तितली की संख्या में ९० फीसदी की गिरावट आई है ।
कुछ वैज्ञानिकों ने इस तितली को लुप्त्प्राय जीव में शामिल किए जाने को लेकर याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि कई फसलों में तृणनाशक मोनसैटो राउंडअप रहता है, जो मिल्कवीड को खत्म कर देता है । यह मोनार्क तितलियों के लिए भोजन का एकमात्र स्त्रोत है । तृणनाशक इतना प्रभावी है कि यह मध्य-पश्चिम में पाए जाने वाली फसल या सोयाबीन के खेत से मिल्कवीड के पौधे को पूरी तरह समाप्त् कर देता है । इससे मोनार्क तितलियां प्रभावित हो रही है ।
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