बुधवार, 14 जनवरी 2015

प्रसंगवश
डेढ़ दशक में बदल गई जिंदगी 
ईक्कीसवीं सदी के इन पहले १५ बरसों में कई बदलाव आए हैं । जो चीजें कभी जिंंदगी का अहम हिस्सा थीं, वो एक-एक करके हाशिए पर जाती रहीं और नई चीजों ने उनकी जगह ले ली । पिछले १५ साल में ऐसे कई बदलाव आए हैं, जिनको हम रोज ही महसूस करते हैं । आइए, याद करते हैं उन सहूलियतों को, जिन्होंने सदी के शुरूआती १५ सालों में हमारी जिंदगी बदल दी और जिनको हमने भुला दिया । 
२१वीं सदी की शुरूआत तक हर गली-मोहल्ले में एसटीडी-पीसीओ बूथ की भरमार थी । हाथों में जब से मोबाइल फोन फोन आया, पीसीओ बूथ छोड़िए, टेलीफोन की घंटी बजना भी कम हो गई । इंटरनेट के आने से फैक्स का जमाना भी जाता रहा । अब बस ये सरकारी दफ्तरोंमें अफसरों की टेबल पर रखे मिलते है । फ्लॉपी और पेजर भी गुजरे जमाने की बात हो गयी है । 
मोबाइल फोन के कारण अब हर हाथ में कैमरे हैं । चंद साल पहले के दिन याद कीजिए । जब कहींबाहर जना होता था तो कैमरे और उसके रोल लेकर जाते थे । अब डिजिटल कैमरे चलन में है, जिसमें रोल की जरूरत  नहीं ।स्मार्ट फोन से दुनिया अब आपकी जेब में है । नेट यूजर्स को कैफे की जरूरत नहींहोती । बिजनेस, स्टडी या इंटरटेनमेंट, हर काम आसान । खर्चा भी पहले से कम । याद होगा कम्प्यूटर लैब में जाने से पहले जूते-चप्पल बाहर निकालते थे । अब ऐसा नहीं । लगता है लैपटॉप को देखकर कम्प्यूटर भी मेन फ्रैंडली हो गया । एक और खास सुविधा मिली । वह ऑटोमेटिक ट्रेलर मशीन  (एटीएम) । पहल चंद रूपये निकलवाने के लिए बैंकों की लाइन में खड़े रहना पड़ता था । 
अब शादियां बैक्वेंट हॉल, कम्युनिटी और होटल सेंटर में होती है । वेडिंग प्लानर आपकी ड्रेस, मंडप, टेंट, मीनू तक पहले ही बता दते हैं, आपकी जेब के हिसाब से । सुपर बाजर ने जीवनशैली को बदला है । शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मल्टीप्लेक्स में एक छत के नीचे शॉपिंग सुलभ हुई है । टिक्की और समोसे की पार्टियों से अब दोस्त खुश नहीं होते । पिज्जा, डोसा, चाऊमीन, हॉटडॉग जैसे कितने ही व्यंजन है, जो पार्टियों में स्टेटस सिंबल है । इनका क्रेज इस कदर बढ़ा कि विदेशी कंपनियों ने छोटे शहरों में अपने प्रतिष्ठान खोल दिए । 

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