पर्यावरण परिक्रमा
बन्दर ने अपने साथी को मौत के मुंह से निकाला
पिछले दिनोंउत्तर प्रदेश की औघोगिक राजधानी कानपुर रेलवे स्टेशन पर एक दिलचस्प और सीख लेने वाला नजारा उस समय दिखा जब ११ हजार वोल्ट की हाइटेंशन लाइन से टकराऐ अपने साथी को एक बन्दर मौत के मंुह से खींच लाया ।
एक बन्दर हाइटेंशन तार से टकराकर ट्रेन से नीचे रेल की पटरी के पास में गिर गया । प्लेटफार्म पर सैकड़ों यात्रियों की भीड़ जमा हो गई । इसी बीच वहां दो बंदर आ गए । इसमें एक बन्दर ने साथी वानर को काफी हिलाया-डुलाया लेकिन उसमें कोई हरकत नहीं हुई और वह मरणासन्न पड़ रहा । साथी बन्दर ने हार नहीं मानी और उसे बचाने के लिए अच्छे डॉक्टर की तरह पूरे मनोयोग से जुट गया । कभी उसे पलटता तो कभी बगल बह रही नाली के पानी में डुबोता फिर भी बन्दर में कोई हरकत नहीं आई फिर भी वह लगा रहा और अंतत: वह साथी बन्दर की जान बचाने में सफल हो गया ।
प्लेटफार्म पर खड़े एक यात्री राजकुमार ने बताया कि एक ट्रेन के रूकने के बाद यह बंदर उसकी छत पर चढ़ गया लेकिन अचानक वह हाइटेंशन तार की चपेट में आ गया । इसके बाद वह वह ट्रेन की छत से सीधा रेल की पटरी के बगल में गिर पड़ा । उसे देखकर यही लग रहा था कि वह मर चुका है क्योंकि वह एकदम शिथिल पड़ चुका था । उसकी आंखें बंद हो गई थी । ट्रेन के गुजरने के बाद अचानक वहां दो बन्दर आ गए । उनमें से एक ने मरणासन्न बंदर को हिलाया-डुलाया लेकिन उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई । इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी और शिथिल पड़ बंदर को उठाकर पानी में डाल दिया । फिर उसे जोर-जोर से हिलाने लगा । इस दौरान उसने उसकी पीठ को दांतों से पकड़कर खूब झकझोरा, लेकिन उसके अंदर किसी प्रकार की हरकत नहीं हुई ।
साथी बन्दर के सीने को भी वह रगड़ता रहा । थोड़ी से हलचल होने पर उसे फिर पानी में डुबोया । उस बंदर ने एक बार फिर उसे पानी से निकाला । उसे उलट-पलट कर देखा । फिर उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई । इसके बाद उस बन्दर ने उसके पीठ, गर्दन और आंखों के ऊपर रगड़ना शुरू किया । इससे शिथिल पड़े बंदर के शरीर में अचानक से हलचल हुई । इसके बाद बन्दर ने अपने साथी को पानी से बाहर निकाला । फिर उसे उलट-पलट कर देखा और सीधा उसे बड़े नाले में डाल दिया । इस बार उसका नुस्खा काम कर गया और मरणासन्न बन्दर उठकर बैठ गया ।
वायु प्रदूषण से देश में खाद्यान्न उपज आधी
वायु प्रदूषण से सीधे तौर पर भारत के खाघान्न उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है । देश में बढ़ते प्रदूषित कोहरे के कारण फसलों की संभावित उपज आधी रह गई है । सन् २०१० में जितनी फसल संभावित थी, वायु प्रदूषण के चलते पैदावार उसकी ५० फीसद ही हुई ।
पिछले तीस साल के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने भारत का एक सांख्यिकीय मॉडल तैयार किया है । इस मॉडल के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण सघन बसे राज्यों में गेहूं की उपज ५० फीसद तक कम हो गई है । आवश्यक खाद्य सामग्री के उत्पादन में स्मॉग के कारण ९० फीसद तक की कमी आई है । काले कार्बन और अन्य प्रदूषक तत्वों से बना स्मॉग तेजी से देश की मिट्टी के उपजाऊपन को निगलता जा रहा है । सिर्फ प्रदूषित वायु और काला कोहरा ही नहीं वैश्विक तापमान बढ़ने से मौसम में होने वाले बदलावों के चलते भी खाघान्न की दस फीसद उपज कम हो गई । कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी के शोधकर्ताआेंऔर प्रमुख शोधकर्ता जेनिफर बर्नी ने कहा कि सरकारें जब वायु प्रदूषण को दूर करने के उपायों के खर्च और नए कानूनों को बनाने पर चर्चा करती हैं तो वह उस समय कृषि को अपने ध्यान में नहीं रखती । लेकिन अब वह उम्मीद करती हैं कि उनके इस शोध से वायु प्रदूषण को कम करने के उपायों को बल मिलेगा । ये शोधपत्र मौजूदा पर्यावरण और वायु प्रदूषण का भारतीय कृषि पर प्रभाव शीर्षक से नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित किया गया है ।
इसमें सरकार को सुझाव दिये है :-
* वायु प्रदूषण कम करने के लिए बड़ी तकनीकों के बजाय कुछ साधारण उपायों की सलाह दी ।
* ट्रकों में डीजल के लिए बेहतर किस्म के फिल्टरों का उपयोग करने की आवश्यकता ।
* भारत सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने वाले स्टोव में अधिक शुद्ध ईधन मुहैया कराना चाहिए ।
* ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने के लिए बायोगैस बेहतर विकल्प ।
* भारत सरकार को वायु प्रदूषण कम करने को लोगों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रेरित करना होगा ।
* बेहतर जन नीतियों से वायु शुद्ध होगी और देश में भुखमरी भी कम होगी ।
खतरनाक है मोबाइल फोन का ज्यादा उपयोग
मोबाइल टावरों के रेडियेशन के मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने और कई गंभीर बीमारियां होने के बारे में अब तक चिकित्सा जगत किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सका है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल फोन का अधिक समय तक उपयोग मस्तिष्क सहित कई अंगों के लिए खतरनाक हो सकता है ।
मोबाइल टॉवर के रेडियेशन का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रति आगाह करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि इस संबंध में अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल हैं लेकिन मोबाइल फोन का अधिक समय तक एक कान से उपयोग करने से कई तरह की घातक बीमारिया हो रही है । भारतीय चिकित्सा शोध परिषद् के वरिष्ठ उप महानिदेशक आर.एस. शर्मा ने कहा कि मोबाइल टॉवर के रेडियेशन के प्रभाव के बारे में अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं और वैश्विक स्तर पर रेडियेशन के मानक तय किए गए है । लेकिन मोबाइल फोन का अधिक समय तक उपयोग नुकसानदेह है । इससे ब्रेन ट्यूमर सहित कई तरह की घातक बीमारियां होने की बात कही जा रही है ।
मोबाइल टॉवर के रेडियेशन से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की बात अब तक किसी अध्ययन में साबित नहीं हो सकी है । इस संबंध में अभी भी अध्ययन जारी है और वर्ष २०२० तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की उम्मीद है । मोबाइल फोन को कभी भी सीने के पास नहीं रखा जाना चाहिए । सोने के दौरान तकीये के नीचे भी नहीं रखना चाहिए और बिस्तर से कम से कम दो फुट की दूरी पर रखा जाना चाहिए ।
छोटे बच्चें पर मोबाइल फोन का गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है । इस संबंध में वैश्विक स्तर पर मोबी किड नाम से अध्ययन किया गया है जिसमें भारत के साथ यूरोपीय तथा कुछ दूसरे बड़े देश भी शामिल हैं । यह रिपोर्ट इस वर्ष के अंत तक आ जाएगी । इसके बाद सही-सही पता चल सकेगा कि मोबाइल फोन के उपयोग का १० साल तक के बच्चें पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ।
केन्द्र सरकार ने घटाया स्वास्थ्य बजट
सरकार की कमाई घटने का असर सामाजिक योजनाआें पर दिखने लगा है । सरकार ने इस साल के स्वास्थ्य बजट में २० फीसदी कटौती कर दी है । स्वास्थ्य मंत्रालय के दो अधिकारियों ने बताया कि बजट में ६००० करोड़ से ज्यादा की कटौती की गई है । मंत्रालय ने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन वित्त मंत्रालय नहीं माना ।
सेहत पर खर्च करने के मामले में भारत दूसरे देशों से काफी पीछे है । बीते दो दशकों में आर्थिक विकास भले ही तेजी से हुआ हो, लेकिन इस दौरान तमाम सरकारों ने स्वास्थ्य बजट को बेहद कम रखा है।
बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ऐसा वादा नहीं किया था । कटौती की कोई वजह नहीं बताई है । लेकिन सरकार के सामने पैसे की समस्यता तो है ही । सरकार के सामने राजकोषीय घाटे को ४.१ फीसदी पर रखने की चुनौती है ।
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र १५ फीसदी सालाना की रफ्तार से बढ़ रहा है । लेकिन कुल खर्च में सरकार की हिस्सेदारी बहुत कम है । इसका नतीजा खस्ताहाल सरकारी अस्पतलों के रूप में देखा जा सकता है ।
सेहत पर खर्च (जीडीपी की तुलना में) भारत में - १ फीसदी, चीन में - ३ फीसदी और अमेरिका में ८.३ फीसदी है । भारत में हर साल बांग्लादेश से भी ज्यादा नवजात की मौत होती है । हर साल डायरिया से ही देश में हजारो छोटे बच्च्े जान गांव देते है । दुनिया के १.२ अरब गरीबों में से एक तिहाई भारत में रहते है ।
एचआईवी बजट भी घटा है, इसे ३० फीसदी घटा कर १३०० करोड़ कर दिया गया है । भारत २०१३ में एचआईवी पीड़ितों की संख्या के लिहाज से तीसरा सबसे बड़ा देश था । एशिया-प्रशांत में हर साल एड्स से संबंधित जितनी मौते होती है, उनमें आधे से ज्यादा भारत में होती है ।
मोदी सरकार इस साल से सभी नागरिकों को मुफ्त इलाज और स्वास्थ्य बीमा देने की योजना बना रही है ।
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