बुधवार, 14 जनवरी 2015

सम्पादकीय 
वैज्ञानिक शोध की समीक्षा व्यवस्था पर सवाल
ऐसा देखा गया है कि कई बार शोध पत्रिकाएं किसी शोध पत्र को नामंजूर कर देती हैं मगर आगे चलकर वही शोध पत्र अपने विषय में मील का पत्थर साबित होता है । आमतौर पर वैज्ञानिक शोध पत्रिकाआें में समकक्ष शोधकर्ताआें द्वारा समीक्षा की प्रक्रियाअपनाई जाती है जिसके अन्तर्गत कोई भी शोध पत्र प्रकाशन हेतु प्रस्तुत होने पर उसे संबंधित विषय के अन्य शोधकर्ताआेंके पास भेजकर उनकी राय मांगी जाती है । तो सवाल उठता है कि इसके बावजूद कैसे महत्वपूर्ण शोध पत्र खारिज हो जाते हैं।
कुछ शोधकर्ताआेंने इस सवाल की छानबीन करने का बीड़ा     उठाया । इस टीम का नेतृत्व किया टोरोंटो विश्वविघालय के समाज वैज्ञानिक काइल साइलर ने । टीम ने तीन शोध पत्रिकाआें - एनल्स ऑॅफ इंटरनल मेडिसिन, ब्रिटिश मेडिकल जनरल और दी लैंसेट - को दस वर्ष पूर्व भेजे गए १००० शोध पत्रों का अध्ययन किया । टीम ने यह भी विश्लेषण किया कि आगे चलकर जब इनमें से कोई शोध पत्र अंतत: प्रकाशित हो गया, तो उसकी गुणवत्ता कैसीथी । इन आंकड़ों के आधार पर टीम का पहला निष्कर्ष तो यह था कि उक्त शोध पत्रिकाआें में कचरे को छांटने और ठोस शोध को प्रकाशित करने की बढ़िया क्षमता है । मगर वे कई बार ऐसे शोध पत्रों को पहचानने में चूक हो जाती हैं जो आगे चलकर उस विषय में निहायत अहम साबित होते हैं । 
साइलर ने उनके दल ने इस अध्ययन में पाया कि उक्त तीन पत्रिकाआें में कुल १००८ शोध पत्र प्रस्तुत किए गए थे और उनमें से मात्र ६२ प्रकाशित हुए थे । इनके द्वारा अस्वीकृत ७५७ शोध पत्र अन्यत्र प्रकाशित हुए थे और शेष १८९ में या तो व्यापक बदलाव हुए थे या वे अप्रकाशित रह गए थे ।  इसमें  एक मत यह भी है कि समकक्ष वैज्ञानिकों द्वारा समीक्षा का तरीका खामियों से भरा है । साइलर की टीम के अध्ययन से लगता है कि यह तरीका काफी अच्छे परिणाम देता है और फिलहाल समीक्षा का यही सर्वोत्तम तरीका उपलब्ध है । 

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