सामयिक
जी.एम. जिन्न का बोतल से बाहर आना
कोलिन टोडहंटर
जी एम खाद्यान्न उद्योग दुनियाभर में ऐसे मामलों में उलझ रहा है जिसमें कि या तो अवैध रूप से खेतों में परीक्षण किया गया है या अवैध व्यावसायिक उत्पादन किया गया है । यह उद्योग नियमन के दायरे मेें आने को तैयार ही नहीं है । गौरतलब है जी एम जीन का संदूषण जिन्न यदि एक बार खुले में आ गया तो फिर वापस नही जा सकता ।
जीनवाच एवं ग्रीनपीस पिछले करीब १० वर्षो से जीनांतरित (जी एम) संदूषण (विकार) रजिस्टर में आंकडे एकत्रित कर रहे है और इसमें सन १९९७ से सन २०१३ के अंत तक के मामले दर्ज हैैं । इंटरनेशनल जर्नल आफ फूड कंटेमिनेशन में लेखक द्वारा प्रकाशित नए दस्तावेज में फसल एवं देशों में उपलब्ध आकड़ों या दर्ज ४०० मामलांे का विश्लेषण किया गया है । इस तथ्य के बावजूद कि दुनियाभर में कहीं भी आधिकारिक तौर पर जी एम चावल नहीं उगाया जाता है ।
संदूषण के एक तिहाई मामले जीएम चावल के ही हैैं । लेखकों का कहना है इतनी बड़ी संख्या मंे मामले सामने आने का संबंध राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आयात होकर आने वाले जी एम चावल के सामान्य परीक्षण से हो सकता है । सबसे ज्यादा संदूषित खाद्य पदार्थ जर्मनी में आयात किये जाते हैैं, इसी वजह से यहां बहुत अधिक परीक्षण भी किया जाता है । इन वैज्ञानिकोें ने अवैध जी एम फसलों से पैदा हुए संदूषण पर ज्यादा ध्यान दिया है । इसी के समानांतर विश्वभर में बिना किसी वैघता के हो रहे वाणिज्यिक उत्पादन पर भी ध्यान दिया गया है । इसके गैरआधिकारिक (अव्यावसायिक) जी एम संदूषण के नौ मामले सामने आए हैैं जिनका जी एम फसलों पर पर्यावरणीय या खाद्य सुरक्षा विश्लेषण नहीं किया गया हैैं । लेखकों का तर्क है कि यदि एक बार जीएम संदूषण हो गया तो इसे नियंत्रित कर पाना कठिन हो जाएगा ।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ जीनांतरित फसलांे के संदूषण (संकर परागण, मिलावट आदि) ने ही संख्या को बढ़ाने में योेगदान दिया है बल्कि इसके परीक्षण के तरीके (सामान्य एवं लक्षित देना) भी इसके लिए उत्तरदायी हैैं । दस्तावेज का निष्कर्ष हैैं कि सभी प्रायोगिक जीनांतरित फसलों के परीक्षण के लिए कोई तयशुदा मानक उपलब्ध नहीं है, जिसकी वजह से जी एम संदूषण का पता लगाना असंभव भले ही नहीं हो लेकिन अत्यन्त कठिन हो गया है । बायोटेक औद्योगिक सलाहकार एवं प्रोमर इंटरनेशनल के उपाध्यक्ष डॉन वेस्टकाल को १३ वर्ष पूर्व ९ जनवरी २००१ को उद्धत करते हुए टोरंटो स्टार ने लिखा था, जीएम उद्योग से बाजार ने जरूरत से ज्यादा ऐसी उम्मीदंे लगा ली है कि जी एम उत्पाद से बाजार पट जाएगा और हम और आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे । इसके बाद आपके सामने सिवाय आत्म-समर्पण के कोई और चारा नहीं है । यह महज अस्पष्ट उम्मीद भी नहीं है। यह उद्योग द्वारा थोपी गई अंतराष्ट्रीय आपराधिक रणनीति है ।
जीनांतरित गेहँू को व्याव-सायिक उपयोग हेतु उगाने की अनुमति अमेरिका या विश्वभर मंे कहीं भी नहीं दी गई है । इसके बावजूद अमेरिका के कृषि विभाग (यू एस डी ए ) ने पिछले वर्ष घोषणा की थी कि आरेगॉॅन के गेहँू के खेत में बिना अनुमति वाला जीनांतरित गेहँू उगाया हुआ पाया गया है । सन्१९९४ से मोन्सेंटो ने अमेरिका के १६ राज्यों की ४००० एकड़ से ज्यादा भूमि पर राउंडअप रेडी गेहँू के खेतांे में २७९ परीक्षण किए हैैं । अमेरिकी कृषि विभाग ने स्वीकार किया है कि सन् १९९८ से सन् २००५ के मध्य मोन्सेंटो द्वारा जीएम उत्पादों के परीक्षण खुले खेतों मे हुए हैैं ।
जीनांतरित गेहँू ने खेतो की हद पार कर ली है और आरेगान (और संभवत १५अन्य राज्यों में भी) के व्यावसायिक गेहँू उत्पादन खेतोें में अपना रास्ता बना बना लिया । इसके माध्यम से फैले स्वदोहराव (या प्रतिकृति) जेेनेटिक संदूषण से अमेरिका का पूरा गेहँू उद्योग ही दागदार हो गया है । इसके पहले वर्ष २००६ में अमेरिका कृषि विभाग बायर क्राप साइंस के जीनांतरित लिबर्टीलिंग ६०१ चावल के विपणन की अनुमति दे चुका है। इस जीनांतरित चावल की किस्म ने खाद्य आपूर्ति एवं चावल के निर्यात में अवैध रूप से संदूषण को मूर्त रूप दिया है । अमेरिकी कृषि विभाग ने सफलतापूर्वक ''संदूषण के माध्यम से अनुमति नीति'' (अप्रूवल बाय कंटेमेनेशन) को अनुमति दे दी है ।
वर्ष २००५ में जीवविज्ञानी पुष्प भार्गव ने आरोप लगाया था कि ऐसी खबरें मिल रही हैं कि भारत में किसानांे को जीनांतरित फसलों की बिना अनुमति प्राप्त अनेक किस्मंे बेची जा रही हैैं । अरुण श्रीवास्तव ने वर्ष २००८ में लिखा था भारत में जीनांतरित भिंडी को अवैध रूप से बोया जा रहा है और गरीब किसानों को सभी तरह की सब्जियों के ''विशेष बीज'' बोने के लिए लालच दिया जा रहा है । उनका प्रश्न था कौन जानता है कि कितनी जगह अवैध रूप से जीनांतरित चावल बोया गया होगा ?
भारत में खुले खेतों मेें जी एम फसलों के परीक्षण भी कहानेी जैवसुरक्षा नियमों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन, जल्दबाजी में अनुमति, निगरानी क्षमताओं की कभी, संदूषण के खतरे को लेकर सामान्यतौर पर भेदभाव एवं सांस्थानिक पद्धतियांे की कमी की कहानी है । पूरे यूरोप में भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले बासमती चावल में संदूषण (विकार) को लेकर चिंताएं जाहिर की जा रही हैैं । पिछले दिनों पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा था कि उसे बांग्लादेश से व्यावसायिक जीएम बैंंगन बीजों के ''घुसपै ठ'' की जानकारी प्राप्त हुई है ।
बांगलादेश ने जीएम सब्जी-बीटी बैगन को व्यावसायिक रूप से जारी किया है जो कि मिट्टी में स्थित बेक्टीरीयम बेसिलस थुरुंजिंसिस से निकली जीन के प्रवेश से तैयार होता है । राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कृषि सलाहकार प्रदीप मजुमदार ने कहा है ''संभावना है कि व्यावसायिक बीजों ने घुसपै ठ की होे या उनकी तो तस्करी की गई हो । इससे पहले कि किसानों को नुकसान हो हमें बीटी बैंगन की स्थानीय देशज किस्मों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों का आकलन करना ही होगा ।''
जीएम वाच वेबसाइट के अनुसार, अगर ऐसा होता है, तो यह जीएम उद्योेेेेेग की सोची समझी और समय पर खरी उतरी रणनीति का हिस्सा होगी जिसके अनुसार ''पहले संदूषण फैला दो और बाद में नियमय संबंधी अनुमोदन के लिए दबाव डालो ।'' गौरतलब है अब तक कहीं भी बीटी बैंगन की सुरक्षा संबंधी स्वतंत्र जांच नहीं हुई है । जब कि उद्योग के स्वयं के परीक्षण बताते हैकि यह जहरीला है ।
पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री पुर्णेन्दु बोस का कहना है 'हमने सुना है कि बांग्लादेश से सटे बंगाल के जिलो में बीटी बैंगन के बीज पाए गए हैं । हम अभी जी एम बीज जारी नहीं होने देगें और बिना व्यवस्थित अध्ययन के तो निश्चित तौर पर नहीं ।''
भारत में पिछली सरकार ने जी एम फसलों के खेतोें में परीक्षण पर रोक लगा दी थी लेकिन वर्तमान सरकार ने हाल ही में जी एम बैंगन व सरसांे की दो किस्में की खेतों में परीक्षण की अनुमति दे दी है । पिछले ही साल वैज्ञाानिकों एवं गैरसरकारी संगठनों के सदस्यांे ने कोलकाता एवं अन्य स्थानांे पर बांग्लादेश जो कि इस सब्जी के उद्गम और किस्मों की विविधता का केन्द्र हैं मंे जीनांतरित बैंगन को लगाए जाने यह कहते हुए विरोध किया था कि इसमें भारत की फसलों में संदूषण में वृध्दि होगी । अब यह चिंता मूर्तरूप लेती जा रही है ।
अन्य जगहों के अनुभव बताते है कि जी एम जीन का जिन्न यदि एक बार बोतल से बाहर आ जाता है तो फिर वापस नहीं जाता ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें