प्रदूषण
पर्यावरण का प्रदूषण कैसे दूर हो ?
डॉ. लक्ष्मीनारायण मित्तल
प्रकृति को विनाश से बचाने के लिए बड़े-बड़े दावे किये जाते है । स्वच्छता अभियान भी पूरे देश में जोर-शोर से चल रहा है । यह कितना बनवाटी है और कितना सच्च, यह किसी से छिपा नहीं है ।
कहते है विश्व के ८० प्रतिशत संसाधनों का उपयोग विश्व के २० प्रतिशत सम्पन्न लोग करते है और शेष २० प्रतिशत संसाधन विश्व के गरीब जनसंख्या के हिस्से आता है । चाहे ओजोन परत की बात हो या कोई और, सबसे ज्यादा नुकसान वे पहुंचा रहे है जो वातानुकूलित कमरों में पर्यावरण संरक्षण पर बड़ी-बड़ी बहसें करते हैं परन्तु ऐसी गोष्ठियों के बाद खाने-पीने की कागज की प्लेटें, फूल मालाएँ, कागज का कचरा और तामझाम में हुआ कूड़ा करकट पर्यावरण को दूषित ही करता है । यह तो भौतिक कचरा है, बौद्धिक कचरा भी कम नहीं होता, ध्वनि प्रदूषण ।
असल सवाल जीवन शैली का है । यदि हम लालच में भौतिक पदार्थो के उपयोग को बढ़ायेगे तो पर्यावरण प्रदूषण होगा ही । असल सवाल जीवन में प्रकृतिके साथ सह अस्तित्व का जीवन है, वह अंधविश्वास कहकर आज नकारा जा रहा है परन्तु प्रकृति के साथ-साथ जीवन का सूत्र था । इसाइयत में आदमी को सबसे बड़ा माना गया है और शेष प्रकृति उसके उपभोग के लिए है । पश्चिमीकरण और आधुनिकता ने हमारे पर्यावरण का दूषित किया है ।
दूसरों को उपदेश देने के स्थान पर यदि हम इस संरक्षण की सोच को जीवन में उतार लेंगे तो हम अपना कल्याण करने के साथ-साथ अपने आने वाली पीढ़ी के लिए भी एक सुरक्षित भविष्य छोड़कर जायेगें ।
प्रकृति के साथ संवाद को हम अंधविश्वास मानते हैं । परन्तु यही सच्ची कुंजी है । हम यदि अहं पालने वाले कौन होते है कि हम प्रकृति को बचायेंगे । प्रकृति को स्वयं सक्षम है अपनी रक्षा करने के परन्तु शर्त यह है कि हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न की हो । उत्तराचंल की त्रासदी, कश्मीर में तबाही या अन्यत्र आपदा मनुष्य कृत है । हम प्रकृति को निर्जीव मानकर उससे छेड़छाड़ करना छोड़ दे तो अपनी ऊर्जा और शक्ति का सही प्रयोग कर सकेगे ।
प्रकृति की न्याय व्यवस्था मनुष्यकृत नहीं है । वह सम्प्रदाय-सम्प्रदाय, जाति-जाति, धर्म-धर्म व जाति-जाति के भेद करना नहीं जानती । सूरज की रोशनी अमीर-गरीब को बराबर सुलभ है । यह दूसरी बात है कि अमीरों ने सूरज की रोशनी से अपना नाता तोड़ लिया है । सम्पूर्ण प्रकृति युगो-युगो से भेदभाव रहित निष्पक्ष व सटीक है ।
हम जहाँ है वही से शुरू कर सकते हैं । शर्त है कि अपने अहं को दूर रखे, प्रकृतिसंरक्षण को भाषणबाजी या चोचलेपन से बचायें ।
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