स्वास्थ्य
छत्तीसगढ़ की त्रासदी के सबक
भारत डोगरा
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में नसंबदी से होने वाली मौतों की त्रासदी दिल दहलाने वाली है । इन मौतों के कारणों की सही व विस्तृत जानकारी के लिए अभी तक कई स्तरों पर जांच का इंतजार है । फिर भी इस त्रासदी के कुछ महत्वपूर्ण पक्ष स्पष्ट हो चुके हैं, जिनसे भविष्य के लिए सबक लिए जा सकते हैं ।
परिवार नियोजन कार्यक्रम महत्वपूर्ण भी है और सार्थक भी लेकिन जिस तरह से इसे चलाया जा रहा है, उसमेंकई विसंगतियां हैं । केवलछत्तीसगढ़ में ही नहीं देश के अन्य भागों में भी जब नसंबदी शिविर लगते हैं तो स्वास्थ्यकर्मियों पर नसंबदी के लक्ष्य प्राप्त् करने के लिए जोर लगाया जाता है । उन पर दबाव होता है कि इतनी संख्या में केस लाना है । पैसे व पुरस्कार का प्रलोभन भी दिया जाता है ।
इस कारण ऐसा माहौल बनता है कि कैसे भी अधिक से अधिक महिलाआें को एकत्र कर आनन-फानन नसबंदी कर दी जाती है । इन शिविरों में अधिकतर निर्धन परिवारों की महिलाएं होती है जिनके स्वास्थ्य की अधिक परवाह न करते हुए कैंपो में किसी तरह अधिक से अधिक नसंबदियां करने पर ही जोर दिया जाता है ।
इन शिविरों पर अधिक निर्भरता इस कारण होती है क्योंकि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं बुरी हालत में हैं । यदि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के स्तर पर उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों, तो स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान दते हुए परिवार नियोजन के विविध तरीके उपलब्ध करवाए जा सकते हैं । ऐसा न हो पाने के कारण ही नसंबदी शिविर लगाने का दबाव बनता है ।
इस मामले मेंमहिला विरोधी सेाच भी सामने आती है - महिलाआें की नसबंदी अधिक कठिन होने के बावजूद ज्यादातर नसबंदियां महिलाआें की ही होती है । यह काफी सामान्य बात है कि सर्जरी के लिए अनुकूल स्थितियों के अभाव में ही महिलाआें की नसबंदी होती है जिससे अनेक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती है ।
मातृ व बाल सुरक्षा के लिए प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में स्वास्थ्य सेवाआें को वर्तमान की अपेक्षा बहुत बेहतर करना जरूरी है । आज स्थिति है कि प्रसव के लिए अधिक माताएं इन स्वास्थ्य केन्द्रों में पहुंच तो रही है पर उन्हें समुचित सुविधाएं नहीं मिल रही हैं । इस स्थिति में परिवार नियोजन के विविध उपायों के लिए जरूरी काउंसलिंग भी नहीं हो पाती है । न तो पर्याप्त् डॉक्टर उपलब्ध हैं न पैरामेडिकल स्टाफ । इसके साथ जब लक्ष्य प्राप्त् करने की जल्दबाजी जुड़ जाती है तो गंभीर गलतियों की संभावना बढ़ती है ।
भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है जिससे घटिया दवा व उपकरणों की आशंका बढ़ जाती है । ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए उपलब्ध सीमित बजट का भी सही उपयोग नहीं हो पाता है ।
ऐसे माहौल में गलतियों पर लीपापोती करने की प्रवृत्ति पनपती है । छत्तीसगढ़ में महिलाआें के गर्भाशय अनुचित ढंग से निकालने, नेत्र शिविरों में मरीजों के दृष्टिहीन होने के गंभीर मामलों पर पहले भी उचित दंड नहीं दिए गए थे । वर्ष २०१० में राज्य में मलेरिया से सैकड़ों मौते हुई थी जिन्हें सरकारी रिकॉर्ड में दिखाया ही नहीं गया ।
स्पष्ट है कि देश में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओ व विशेषकर परिवार नियोजन सेवाआें में बहुत सुधार की जरूरत है ताकि हाल की नसबंदी मौतों जैसी गंभीर असहनीय त्रासदियों से बचा जा सके ।
मूल बात केवल यह नहीं है कि किसी देश में कितने अस्पताल व डॉक्टर है, अपितु यह भी है कि जरूरतमंद लोगों तक ठीक से उनका लाभ पहुंच रहा है या नहीं । यह सवाल विशेषकर भारत जैसे देशों के संदर्भ में तो बहुत महत्वपूर्ण है जहां अमीर और गरीब, शहर और गांव के बीच स्वास्थ्य सेवाआें की उपलब्धि में बहुत विषमता है ।
अत: जहां एक ओर स्वास्थ्य सेवाआें, डॉक्टरों, नर्सो, तकनीशियनों और सभी स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धि को देश की जरूरतों के अनुसार बढ़ाने व इनकी गुणवत्ता बनाए रखने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि इनकी सेवाएं अधिक जरूरतमंद लोगों तक, विशेषकर दूर-दूर के गांवों के लोगों तक पहुंच सके ।
यदि स्वास्थ्य सेवाआें को जरूरतमंदो तक पहुंचाना है तो सरकार को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने में अपनी प्रमुख जिम्मेदारी बनाए रखनी होगी । निजी क्षेत्र के माध्यम से सब जरूरतमंदों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का कार्य ठीक से नहीं हो सकता है, विशेषकर भारत जैसे देशों में जहां गरीब लोगों की और बहुत कम क्रय क्षमता वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है ।
सामुदायिक स्वास्थ्य प्रयासों की भी बहुत अधिक जरूरत है जिनमें उचित इलाज के साथ-साथ बीमारियों, स्वास्थ्य समस्याआें व दुर्घटनाआें की रोकथाम के प्रयासों को भी समान व समुचित महत्व मिले ।
सभी जरूरतमंदों की स्वास्थ्य आवश्यकताआें को पूरा करने के लिए सरकार को जितने खर्च की आवश्यकता है, उसके अनुकूल ही सरकार को स्वास्थ्य बजट निर्धारित करना चाहिए । इसे उचित प्राथमिकता मिलनी चाहिए व इसमें कोई कटौती नहीं होनी चाहिए । विशेषकर गांवों की स्वास्थ्य जरूरतों के अनुकूल बजट उपलब्ध होना बहुत जरूरी हो गया है ।
अलबत्ता केवल स्वास्थ्य का बजट बढ़ाना पर्याप्त् नहीं है । यदि बजट बढ़ गया पर स्वास्थ्य के क्षेत्र मेंमुनाफाखोरी की प्रवृत्तियां छाई रहीं तो बढ़ा हुआ बजट मुनाफाखोरी की भेंट चढ़ जाएगा । अत: बजट बढ़ाने के साथ मुनाफाखोरी पर रोक लगाना व वास्तविक जरूरत को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र का नियमन करना जरूरी है ।
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