गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

स्वास्थ्य
ईबोला विषाणु से नष्ट होती अर्थव्यवस्थाएं
किंसले इघोबोर
इबोला विषाणु के सर्वाधिक प्रभावित तीन देशों गुयाना, लाइबेरिया एवं सिएरालीओन में इससे पड़े आर्थिक प्रभाव पूरी तरह से सामने नहीं आए हैं । अभी भी आंकड़े इकट्ठे किए जा रहे हैं और यह निश्चित नहीं है कि इस विषाणु पर कब काबू पाया जा सकेगा । ईबोला के फैलने के पहले ही यह तीनों पश्चिमी अफ्रीकी देश दुनिया के निर्धनतम देशों में थे । सन २०१४ के संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का मानव विकास सूचकांक जो कि आय, जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता के आधार पर देशों की रेकिंग तय करता है ने कुल १८७ देशों में से सिएरालिओन  को १८३वें, गुयाना को १७९ और लाइबेरिया को १७५वें स्थान पर रखता है । अब यह डर व्यक्त  किया जा रहा है कि इन देशों में जो थोड़ा बहुत सुधार हो रहा था, ईबोला उसे भी हजम कर जाएगा ।
विश्व बैंक द्वारा वर्र्ष २०१४ में ईबोला महामारी के प्रभावों का आंकलन करते हुए दो संभाव्य स्थितियों पर प्रकाश डाला है । पहली है ''न्यून ईबोला`` । यह तब संभव है कि इस महामारी को सन २०१५ की शुरूआत में रोक दिया जाए । इस दौरान करीब २० हजार मामले सामने आ सकते हैंऔर देशों की आर्थिक स्थिति में धीरे-धीरे सुधार आ सकता है। दूसरी स्थिति है, ''उच्च् या असंयत ईबोला`` । यह तब घटित होगी जब इसको जल्दी सीमित नहीं किया जा सकेगा और संबंधित मामले २ लाख तक पहुंच सकते हैं। उच्च् ईबोला की स्थिति में पश्चिम अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ३२ अरब डालर की हानि और न्यून ईबोला की स्थिति में इस क्षेत्र की जीडीपी में ४ अरब डालर तक की कमी आ सकती है । न्यून ईबोला की स्थिति में गुयाना की जीडीपी ४.५ प्रतिशत से घटकर २.४ प्रतिशत, लाइबेरिया की ५.९ प्रतिशत से २.५ प्रतिशत एवं सिएरालिओन की ११.३ प्रतिशत से घटकर ८ प्रतिशत पर आ सकती है । स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतर रही है । सिएरालीओन के कृषि मंत्री का कहना है कि, ''ईबोला की वजह से सिएरालीओन की अर्थव्यवस्था में ३० प्रतिशत की गिरावट आ सकती है ।``
यूएनडीपी की रिपोर्ट के  अनुसार ईबोला की वजह से सिएरालीओन पर पड़ रहे आर्थिक व सामाजिक प्रभावों के फलस्वरूप देश ने युद्ध के बाद जो भी प्रगति की थी उस पर पानी पड़ सकता है। वर्तमान मंे यहां पर खाद्य सामग्री की कमी हो गई है और स्थानीय मुद्रा लीओन का भी तेजी से अवमूल्यन हो रहा है। महामारी फैलने के पश्चात लाइबेरिया में चावल व अन्य खाघान्नों के मूल्यों में २५ प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। सरकार द्वारा स्थानीय ''बुुममीट`` खाने के खिलाफ चेतावनी देने के पश्चात मछली के दाम में भी असाधारण वृद्धि हुई है । 
इतना ही साफ सफाई के व प्लास्टिक उत्पाद भी महंगे हो गए हैं। बुरी तरह प्रभावित देशोें से विदेशी निवेशक भी पलायन कर रहे हैं । विश्व के सबसे बड़े इस्पात निर्माता आर्सेलेन मित्तल ने अपने विशेषज्ञों को लाइबेरिया से वापस बुला लिया  है । सिएरालीओन में निवेश करने वाली ब्रिटिश कंपनी लंदन माइनिंग ने भी अपने कर्मचारियों को सिएरालीओन से वापस बुला लिया है । विश्व मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वर्ष २०१३ में सिएरालीओन की वृद्धि २० प्रतिशत आंकी थी जो अब घटकर महज  ५.५ प्रतिशत पर आ गई है । कर्मचारियों की सुरक्षा से डरकर अनेक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन भी इस क्षेत्र से किनारा कर गए हैं ।
घाना में अभी तकईबोला का एक भी प्रमाणित मामला सामने न आने के बावजूद खनन कंपनियां अपने कर्मचारियों को देश से बाहर भेज रही है। घाना के प्रकाशन ''बिजनेस डे`` का कहना है घाना की राजधानी अक्करा की बड़ी होटलें हमेशा पूरी तरह से भरी रहती थीं अब वहां मुश्किल से ३० प्रतिशत लोग आते हैं। घाना व कोटे डी आईवोरीजा दुनिया का ६० प्रतिशत कोका का उत्पादन करते थे अब ईबोला की वजह से दोनों ही अत्यधिक संकट में है । पिछले दिनों कोका के वैश्विक मूल्यों में १८ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है । 
ईबोला विषाणु से अधोसंरचना परियोजनाएं भी प्रभावित हुई हैं। उदाहरण के लिए विश्व बैंक की अत्यंत महत्वाकांक्षी लाईबेरिया को सड़क मार्ग से गुयाना से जोड़ने वाली सड़क परियोजना स्थगित कर दी गई है और इसके ठेकेदार चीन के हेनान अंतर्राष्ट्रीय निगम समूह ने अपने कर्मचारियों को वहां से वापस बुला लिया है । इसके अतिरिक्त सीमा के आर-पार होने वाला व्यापार घटकर महज १२ प्रतिशत रह गया है । एक व्यापारी का कहना है, ''हम नाइजीरिया से सामान आयात कर यहां (सिएरालीओन) में बेचते थे, अब हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि सभी विमान सेवाएं स्थगित हो गई हैं। इस क्षेत्र के एक अन्य देश गांबिया की आमदनी का १६ प्रतिशत पर्यटन से आता था । अब उसमें ६५ प्रतिशत की कमी आ गई है । यही स्थिति सेनेगल की भी होती जा रही है ।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खतरे की घंटी बज चुकी है परंतु कई विकास विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल घबड़ाहट की कोई आवश्यकता नहीं है। विश्व बैंक ने ईबोला के आर्थिक प्रभावों से निपटने हेतु राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया है । विश्व मुद्रा कोष ईबोला प्रभावित देशों को १३ करोड डॉलर की सहायता उपलब्ध करा रहा है । अमेरिका भी धन उपलब्ध कराने हेतु उत्सुक है ।
नवंबर २०१४ के मध्य आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में हुए जी-२० देशों के सम्मेलन में विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने दानदाताओं से राशि बढ़ाने का अनुरोध किया था । संयुक्त राष्ट्र संघ ने शुरूआत में ईबोला से निपटने हेतु एक अरब डॉलर की मांग की थी, इसमें से ८० करोड़ डालर प्राप्त् भी हो चुके है । 

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