सर्वोच्च् न्यायालय की नवाचारी पहल
पिछले दिनों सर्वोच्च् न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए नवाचारी पहल की है, जो सराहनीय और प्रेरणादायी है ।
न्यायालय ने अपनी कार्य प्रणाली में पर्यावरण मित्र कदम उठाते हुए १ फरवरी २०१५ से दो महत्त्वपूर्ण काम प्रारंभ किये हे जिनके परिणाम स्वरूप हर साल २१०० पेड़ों को कटने से बचाया जा सकेगा । पहला काम यह है कि फैसले की छापी जानेवाली प्रतियों की संख्या घटेगी । अब किसी भी फैसले की १४,१६ या १८ प्रतियां ही छपेगी जो अब तक ८० छपती थी । दूसरा बड़ा काम यह होगा कि रोजाना के मामलों की जानकारी देने वाली ११ तरह की प्रकरण सूची का प्रकाशन बंद कर इसे नेट पर ऑन लाईन देखा जा सकेगा ।
पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से इन दोनों कदमों के दुरगामी परिणाम होंगे । सर्वोच्च् न्यायालय में हर साल औसत ७५० फैसले घोषित होते है, एक फैसला करीब १५० पृष्ठों का होता है, इस प्रकार ९ लाख पृष्ठों का कागज बचेगा, इसको बनाने में करीब १२०० पेड़ कटने से बचेंगे । न्यायालय में दैनिक प्रकरण सूची करीब १०० पृष्ठों की होती है, एक सूची की ३३९ प्रतियां तैयार होती थी, इसमें ३३,९०० पृष्ठ कागज खर्च होता था, इस को बनाने में ९०४ पेड़ों की जरूरत होती थी ।
इस प्रकार करीब २१०० पेड़ कटने से बचेंगे, कागज बनने में लगने वाला पानी, छपाई में लगने वाली स्याही, बिजली ओर मानव श्रम भी बचेगा । यह तो पर्यावरण की बात हुई लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से देखें तो न्यायालय को इस प्रक्रिया में आनेवाले खर्च की राशि २ करोड़ रूपयों की बचत होगी । अब राज्यों के उच्च् न्यायालयों और जिला न्यायालयों से भी इस दिशा में पहल की उम्मीद करनी चाहिये । जिससे सारे देश में पर्यावरण मित्र न्याय व्यवस्था कायम हो सकें ।
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