गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

पर्यावरण परिक्रमा
वर्ष २०१४ सबसे गर्म साल रहा
जब से हमारे पास मौसम के रिकार्ड उपलब्ध है, यानी १८९१ से लेकर आज तक २०१४ सबसे गर्म वर्ष रहा है । जापान मौसम विज्ञान एजेंसी के मुताबिक १९८१ से २०१० के औसत तापमान की तुलना में २०१४ लगभग ०.२७ डिग्री अधिक गर्म रहा । 
इससे पहले दिसम्बर में राष्ट्र संघ विश्व मौसम संगठन ने जनवरी से अक्टूबर २०१४ के तापमान के प्रारंभिक विश्लेषण के आधार पर अनुमान लगाया था कि २०१४ रिकॉर्ड गर्म वर्ष रहेगा । यूके के मौसम विभाग के आंकड़े भी यही कहते हैं । 
२०१४ की गर्मी के संदर्भ में एक बात और गौरतलब है : एक नीनो की अनुपस्थिति । इससे पहले जो तीन वर्ष सबसे गर्म माने गए थे - २०१०, २००५ और १९९८ - उन सबमें एल नीनो दक्षिणी दोलन नामक मौसमी घटना हुई थी जो तापमान को बढ़ाने का काम करती है । एक नीनो - दक्षिणी दोलन के दौरन भूमध्यरैखीय पूर्वी प्रशांत महासागर के सतह का पानी गर्म हो जाता है और इसकी वजह से पानी की गर्मी वायुमण्डल में पहुंच जाती है । 
लिहाजा यह आश्चर्य का विषय है कि एक नीनो न होने के बावजूद २०१४ इतना गर्म वर्ष रहा । इसका एक ही मतलब है कि धरती औसतन गर्म होती जा रही है । दरअसल, २०१४ का यह उच्च् तापमान एक दशक बाद आया है और इस दौरान माना जा रहा था कि तापमान में वृद्धि धीमी हो रही है । वर्ष १९५१ से २०१२ के बीच औसत वैश्विक तापमान में सालाना ०.१२ डिग्री की वृद्धि दर्ज की गई थी जबकि १९९८ से २०१२ के बीच वृद्धि दर मात्र ०.०५ डिग्री सालाना रही थी । 
जहां कुछ वैज्ञानिक मान रहे हैं कि तापमान की वृद्धि दर में कमी वास्तविक थी वहीं कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि वृद्धि दर धीमी नहीं पड़ी थी बल्कि सारी गर्मी समुद्रों के पेदे में जमा होती जा रही थी । लिहाजा २०१४ की गर्मी एक निरन्तर वृद्धि के पैटर्न का ही हिस्सा है । हां, इतना जरूर है कि २०१४ के उच्च् औसत तापमान ने दर्शा दिया है कि जो लोग यह कहने लगे थे कि अब तापमान में वृद्धि धीमी पड़ गई है, वे गलत  थे ।  २०१४ का मौसम सिर्फ यह दर्शाता है कि तापमान के मामले में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे मगर  रूझान वृद्धि का ही है । 

रमन इफेक्ट सेशुरू हुआ विज्ञान दिवस 
वर्ष १९२१ में विदेश से लौटकर रमन समुद्र के नीले रंग के रहस्य के कारण की खोज में जुट गए थे । सात साल की कड़ी मेहनत के बाद २८ फरवरी १९२८ को उन्होनें अपनी खोज को रमन इफेक्ट नाम दिया । इसीलिए प्रतिवर्ष २८ फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है । 
उन्होनें उसी साल १६ मार्च को अपनी खोज पर बंगलौर स्थित साउथ इंडियन साइंस एसोसिएशन में भाषण दिया । यह खोज भारत में विज्ञान की प्रगति के लिए मील का पत्थर साबित हुई । इस खोज के लिए १९३० में रमन को नोबल पुरस्कार मिला । 
वर्ष १९९३ में डॉ. रमन बेगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सांइसेज के साथ जुड़े । यहां उन्होनें १९४८ तक काम किया । बाद में उन्होनें बगैर सरकारी सहायता के बेहतर प्रयोगशाला वाले शोध संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की । रमन का यह सपना था कि वे खुद के रिसर्च इंस्टीट्यूट में शोध कार्य करें । यहां उन्होनें जीवन के अंतिम दिनों तक शोधकार्य किए । यहां उन्होनें अपनी पंसद के अन्य विषयों पर भी खोजबीन की । जो कुछ भी चमकता वह उनके खोज का विषय होता था इसीलिए उन्होनें ३०० हीरे खरीदे और उनकी आंतरिक संरचना व भौतिक गुणों का अध्ययन किया । उन्होनें  पक्षियों, तितलियों के पंख, फूलोंकी पत्तियों तक के बारे में खोज की कि ये सब रंग-बिरंगे क्यों है । 
इस अध्ययन के बाद उन्होनें विजन और कलर का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे पुस्तक द फिजियोलॉजी आफ विजन में लिखा  है । सोवियत संघ ने भी उन्हें  १९५८ में लेनिन पुरस्कार प्रदान किया । 
अक्टूबर १९७० में उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई तो अस्पताल में भर्ती करवाया गया । लेकिन उन्होनें वहां रूकने से मना कर दिया । वे अपना अंतिम समय इंस्टीट्यूट में बिताना चाहते थे । २१ नवम्बर १९७० की सुबह रमन ने अपने इंस्टीट्यूट में ही अंतिम सांस ली । 

बिल गेट्स ने पीया सीवरेज का पानी 
सामाजिक सरोकारों को पूरा करने में जूटे मिलिंग गेट फाउंडेशन ने विश्व में गहराते पीने के पानी के संकट को दूर करने की दिशा में बड़ी सफलता पाई है । संस्था ने जैनीकी बायोएनर्जी के साथ मिलकर ओमनी प्रोसेसर संयंत्र का विकास किया है । यह संयंत्र सीवरेज के पानी को साफ कर पेयजल जैसा बना देता है और बिजली का भी उत्पादन करता है । परीक्षण के तौर पर इससे साफ पानी को दुनिया के धनी व्यक्ति बिल गेट्स ने पीया और बोतलबंद जैसा    बताया । दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सह संस्थापक बिल गेट्स अमेरिका के सिएटल की कंपनी जैनीकी बायोएनर्जी के साथ सीवरेज के पानी को पीने लायक बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं । उनके फाउंडेशन और कंपनी ने ओमनीप्रोसेसर प्लांट बनाया है । यह प्लांट अभी परीक्षण के दौर में है । 
इस प्लांट में फिल्टर सीवरेज के पानी के बाद बिल गेट्स ने इसे पूरी तरह से शुद्ध बताया । उन्होनें अपने ब्लॉग पर लिखा - इसका स्वाद किसी बोतलबंद पानी जैसा है । यह बड़ी सफाई और अन्य मानकों का पालन करके बन रहा है, मैं इसे खुशी-खुशी रोज पीने को तैयार हॅू । यह सुरक्षित है । जैनीकी बॉयोएनर्जी के संस्थापक पीटर जैनीकी ने ओमनी प्रोसेसर प्लांट की स्थापना और उसकी लागत का अनुमान लगाने के लिए भारत और अफ्रीका जैसे देशोंका दौरा किया । 
ओमनी प्रोसेसर एक लाख लोगों के सीवरेज वाटर से रोजाना ८६,००० लीटर पीने योग्य पानी तैयार कर सकेगा । संयंत्र २५० किलो वॉट बिजली का उत्पादन भी करेगा । सीवरेज के अपशिष्ट पदार्थोको १००० डिग्री के टेम्प्रेचर पर जलाया जाता है, जिससे उसकी बदबू खत्म हो जाती है।

गौनायल से होगी सरकारी दफ््तरों की सफाई 
नई सरकार के आने के बाद से केन्द्र सरकार के दफ्तरों में ढेर सारे बदलाव हो रहे हैं, लेकिन एक बड़ा बदलाव सफाई के मोर्चे पर देखा जा रहा है । अब वहां सफाई के लिए फिनॉयल की बजाय गौमूत्र का इस्तेमाल होगा । इसका नाम होगा गौनायल । यह प्राकृतिक गुणों से भरपूर है । यह गौमूत्र से बनेगा और इसे खुशबूदार बनाने के लिए इसमें नीम तथा अन्य जड़ी-बूटियां मिलाई जाएगी । 
इसे बहुत वैज्ञानिक ढंग से बनाया जा रहा है । इसके लिए मथुरा के निकट बरसाना को चुना गया है। आईआईटी, दिल्ली के एक प्रोफेसर ने कहा कि गौमुत्र से बने उत्पाद के फायदे ज्यादा है और इसका साइड इफेक्ट नहीं होता । यह जैविक उत्पाद है और यह फिनायल का विकल्प बन सकता है । 
रसायनों के इस्तेमाल से सफाई कर्मचारियों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है । यह आइडिया शुरू में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का था । गौनायल बनाने वाले एनजीओ होली काउ फांउडेशन की प्रमुख अनुराधा मोदी ने कहा कि कई महीनों तक देशभर की गौशालाआें को देखने के बाद उन्होनें यह प्रॉडक्ट तैयार किया है । 
कहा जा रहा है कि इस तरह के उत्पाद के इस्तेमाल से हानिकारक रसायनोंसे बचाव होगा और इससे गौशालाआें को आर्थिक लाभ भी होगा । वे गायों को बेहतर ढंग से रख सकेगी । एक एनजीओ ने केन्द्रीय भण्डार को इस आश्रय का प्रस्ताव दिया था जिसे मान लिया गया और अब भण्डार सप्लाई का इंतजार कर रहा है । उसके एमडी जगदीश भाटिया ने बताया कि यह न केवल सफाई कर्मचारियों बल्कि गायों के लिए भी शानदार कदम है । 

एक फीसदी लोगों के पास है दुनिया की आधी दौलत
एक शोध में यह बात सामने आई है कि दुनियाभर के ९९ फीसदी लोगों के पास जितनी संपत्ति है, उतना ही धन अकेले एक फीसदी लोगों के पास है । ऑक्सफैम चैरिटी की रिपोर्ट के अनुसार २०१६ तक यह आंकड़ा भी पार हो जाएगा और एक फीसदी लोगों के पास अन्य ९९ फीसदी लोगों से ज्यादा धन हो जाएगा । 
समाज कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम चैरिटी ने स्विट्जरलैण्ड के दावोस में आयोजित वार्षिक वर्ल्ड इकोनॉमिक फारेम में यह रिपोर्ट जारी की । ऐसे रहे नतीजे रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के ८० अमीर लोगों के पास १.९ खरब डॉलर (करीब १२० खरब रूपए) संपत्ति है । वैश्विक तौर पर ३.५ अरब लोगों के पास इतनी संपित्त है । पिछले साल अरबपतियों की संख्या ८५ थी । साथ ही, लाखों की संख्या में दुनियाभर के एक फीसदी अमीर लोगों के पास दुनिया की आधी संपत्ति है । 

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