प्राणी जगत
जीव-जन्तु भी करते हैं नशा
नरेन्द्र देवांगन
मधुमक्खियां भांग व मैरीजुआना जैसे नशीले पौधों को बेहद पंसद करती हैं । बारहसिंगा से लेकर हाथियों तक जीव-जंतुआें की दुनिया ऐसे जानवरों से भरी पड़ी है, जो इस तरह के पौधे या कीड़े-मकोड़े जानबूझकर खाते हैं जिनमें हैल्यूसिनोजेनिक रसायन ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं ।
बारहसिंगा को एमैनिटा मसकेरिया नामक नशीला मशरूम पसंद है । यह मशरूम साइकोएक्टिव प्रकार की औषधि है जिस पर सफेद फंगस रहता है । इसको फ्लाई एगैरिक के नाम से भी जाना जाता है । जानकारों का कहना है कि इसको खाने के बाद बारहसिंगा जब जंगल में कूदते-फांदते हुए दौड़ता है, तो उसे ऐसा एहसास होता है कि वह उड़ रहा है ।
लोकोवीड लगभग २० प्रकार के जंगली पौधों का एक समूह है, जो पश्चिमी अमरीका में पाया जाता है । यह पौधा जाड़ों में पनपता है और घोड़ों का पंसदीदा भोजन है । एक-दो बार इसको खाने के बाद घोड़े इसके आदी हो जाते हैं और बार-बार इसे खाने के लिए आते रहते हैं । इस जहरीले पौधे की लत इन घोड़ों को इस कदर लगती है कि वे इसे तब तक खाते रहते हैं जब तक कि वे मर न जाएं ।
लोकोवीड के नशे के कारण घोड़े हिनहिनाते रहते हैं या साथ ही जबड़े को भी खोलते व बंद करते रहते हैं । जो घोड़े इसे अधिक मात्रा में खा लेते हैं उनको या तो डायरिया हो जाता है या वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं ।
मधुमक्खी व बरैया जैसी प्रजातियां सड़े हुए फलों का रस पीती हैं । इस तरह का रस पीने वाली मक्खियां हिंसक, असामाजिक व उड़ने की कम शौकीन होती हैं । जो मक्खियां ज्यादा रस पी लेती हैं उन्हें अक्सर पैरों को ऊपर उठाकर जमीन पर पीठ के बल लेटा देखा जा सकता है ।
एनिमल प्लेनेट के अनुसार बंदरोंजैसी दिखने वाली एक प्रजाति काले लीमर अपने दांतों की सहायता से बड़े-बड़े कनखजूरों को उनके सिर की तरफ से कुतर डालते हैं जबकि कनखजूरे बहुत जहरीले होते हैं । कनखजूरा अपने बचाव में सायनाइड जैसे जहरीले रसायन शरीर से बाहर निकालने लगता है । यदि यह रसायन लीमर के शरीर के भीतर पहुंच जाए तो घातक हो सकता है । लेकिन लीमर पहले ही चालाकी से कनखजूरे का सिर दांतों से कुतर डालता है । इस प्रकार विषैला रसायन सिर्फ लीमर के शरीर पर ही लग पाता जिससे लीमर को हल्का नशा-सा होने लगता है । तनाव के दौर से निबटने के लिए लीमर इस नशे का अक्सर प्रयोग करते हैं ।
लाइकेन की एक प्रजाति बहुत दुर्लभ होती है और धीरे-धीरे बढ़ती है । यह इतनी दुर्लभ है कि कभी-कभी चट्टानी पहाड़ों के ढेर में किसी एक ही चट्टान पर उगती है । लेकिन यह जानते हुए भी कि इस प्रकार की लाइकेन को पाना आसान नहींऔर इसमें कोई पोषक तत्व भी नहीं, भेड़ें अपनी जान जोखिम में डालकर इसको ढूंढती हैं । एक बार लाइकेन तक पहुंचने के बाद भेड़ें इसको अपने दांतों से कुरेद-कुरेद कर तब तक खाती रहती हैं जब तक यह चट्टान से पूरी तरह साफ न हो जाए।
रैवन, जे ब्लैकबर्ड व तोते जेसे पक्षी चींटियों को मसल कर अपने पंखों में दबा लेते हैं । पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पहले यह सोचा कि चींटियों से निकलने वाले फॉर्मिक अम्ल को पाने के लिए पक्षी ऐसा करते हें ताकि अपने शरीर से परजीवियों का सफाया कर सकें । पक्षियों के व्यवहार के बारे में ऐसी सोच तब तक कायम रही जब तक वैज्ञानिकों ने मैना के अजीब व्यवहार पर शोध नहीं किया । मैना कीड़ों को तंबाकू की राख पर मसलने के बाद ही अपने शरीर पर लगाती है । वैज्ञानिकोंने पक्षियों के इस अजीब व्यवहार को देखकर नतीजा निकाला कि पक्षियों को ऐसा करने से आनंद प्राप्त् होता है । इस अजीब नशे के लिए पक्षी कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं और इसके आदी भी हो जाते हैं ।
जब अफ्रीका के जंगलोंमें मैरूला नामक फल पक जाता है तो ऐसा लगता है कि सारी कुदरत मैरूला के पेड़ों के पास जमा हो गई है । लेकिन यहां इस पके हुए फल को कोई जानवर नहींखाता बल्कि वे इसके जमीन पर गिरने के बाद सड़ जाने तक इंतजार करते हैं । हाथी, बंदर वअन्य प्रकार के स्तनपायी जानवर इन सड़े हुए फलों को खाने के बाद या तो आपस मेंझगड़ा करते हैं या फिर अपने सहचर के साथ संभोग । इसके बाद वे तब तक जमीन पर पड़े रहते हैं, जब तक फल के नशे का असर खत्म न हो जाए ।
बकरियां बहुत उत्साह से कॉफी बीन्स खाती हैं और सुअर भांग के बीज खाकर मस्त रहते हैं । जगुआर भी एक खास तरह के पौधे की बेल खाकर झूमता रहता है। चींटीयों का झुंड हमेशा एकेसिया के पेड़ की रक्षा करता है, क्योंकि इस पेड़ से चीटियों को एक मीठा सीरप मिलता है । कैटनिप नामक पौधे को खाने के बाद बिल्लियां मस्ती के चरम पर पहुंच जाती हैं और इधर-उधर उछलकूद करने लगती हैं । जिस तरह दुनिया में ये जीव-जंतु रहते हैं उसको देखते हुए अगर ये अपने आनंद की तलाश इस तरह से करते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं ।
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