गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

कीट-जगत
क्या शाकाहारी कीट वर्गीकरण करते हैं ?
डॉ. किशोर पंवार

शाकाहारी जीव-जंतु वैसे तो कुछ भी चरते-कुतरते रहते हैं और ऐसा लगता है कि उनकी कोई पसंद- नापसंद नहीं होती । परन्तु देखा गया है कि कुछ कीट-पतंगे खास जाति केे पौधोंका चुनाव अपने भोजन हेतु करते हैं । जैसे कॉमन केस्टर तितली के लार्वा अरंडी की पत्तियों को ही खाते हैं, किसी ओर पत्ती की तरफ देखते भी नहीं । इस तरह की यह विशिष्ट पसंद होस्ट प्लांट स्पेशलाइजेशन कहलाती हैं । 
यह एक-एक की संगति है यानी एक प्रजाति की तितली के लिए एक खाद्य प्रजाति का पौधा । ऐसा ही लेमन पेन्सी नाम की तितली के साथ है । 
सवाल यह है कि पौधों की भीड़ में ये कीट अपने पसंदीदा भोजन को कैसे ढूंढते हैं । क्या इन्होंने लीनियस का वर्गीकरण घोंट रखा    है ? आखिर यह कुल और प्रजाति का अंतर जानते हैं, नहीं तो एक ही मटके में लगे बार्लेरिआ में से लेमन पेंसी (बार्लेरिआ प्रॉयनॉटिस) को केसेपहचानती । हालांकि एक-दो पत्ती सफेद फूल वाले पौधे की भी कुतरी हुई मिली, परन्तु ९९ प्रतिशत सही पहचान क्या कम है । 
मजेदार बात यह है कि अपने आने वाले बच्चेंके लिए सही भोजन का चुनाव मादा कीट ही करती है । पौधोंके चुनाव के लिहाज से कीटों को मनोफेगस यानी एक ही प्रजाति के पौधोंसे अपना भोजन प्राप्त् करने वाले ओर ओलिगोफेगस अर्थात एक कुल के मिलते-जुलते पौधोंको कुतरने वाले मेंबांटा जाता है । कुछ कीट पॉलीफेगस भी होते हैं । कीट विज्ञानी जे.एच. फेबर का मानना है कि अंडे देने वाली मांआें के पास एक वानस्पितक अंतर्बोध होता है अर्थात वे सही प्रजाति को पहचानने की क्षमता से लैस रहती हैं । मतलब यह कि कॉमन केस्टर तितली रिसिनस कम्युनिस और जेट्रोफा क्विरकस में फर्क जानती है । दोनों पास-पास लगे हों तो भी कॉमन केस्टर केवल रिसिनस के पत्तोंपर ही अंडेदेती है । 
कीट एक ही कुल के मिलते-जुलते पोधों को पहचानते    हैं । जेसे प्लेन टायगर तितली ओलिगोफेगस है और केलोट्रॉपिस प्रोसेरा, केलोट्रॉपिस गायगेन्टिया और एस्क्लेपिआज कुरासेविका के पौधों को अच्छी तरह जानती है । ये सब एक ही कुल के हैं । यानी प्लने टाइगर तितली इस कुल के पौधों को पहचानती है । 
कीटों के इस गुण का उपयोग वर्गीकरण विज्ञानियों की अपनी भूल सुधारने में भी बहुत काम आया है । जैसे थायरीडिया के लार्वा को जब स्क्र ोफुलेरिआसी कुल के सदस्य बुनसेफेलिसिया पौधे की पत्ती को कुतरते देखा गया तो वनस्पति विज्ञानियोंका माथा ठनका क्योंकि थायरीडिया की अन्य सभी प्रजातियों सोलेनेसी कुल के पौधोंका ही भक्षण करती पाई गई थी । जांच से पता चला की थायरीडिया के लार्वा की पहचान ही सही है क्योंकि रासायनिक जांच में यह पाया गया कि यह पोधा सोलेनसी कुल का ही है । अत: इसे सोलेनसी में रखा   गया । धन्यवाद थायरीडिया । 
यह कोई एक अकेलाउदाहरण नहीं है जहां कीट पतंगों ने हमारी मदद की हो । जैसे पापुलस की प्रजातियों की सही पहचान में भी इनकी मदद मिली    है । तो लगता है की ये कीट पतंगे बहुत बुद्धिमान वनस्पति विज्ञानी है जो पौधों के कुल, वंश ओर प्रजाति को हमारी ही तरह पहचान लेते हैं । बात यह है कि ये कीट वास्तव में पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले खास रसायनों को पहचानते हैं । आजकल वर्गीकरण वैज्ञानिक आकारिकी लक्षणों के साथ पादप-रसायनों के अनुसार पौधों का वर्गीकरण करते हैं । 
दरअसल मिलते-जुलते पौधों की पत्तियों में मिलने वाले रसायन भी समान होते हैं । जैसे अकाव कुल के सभी पौधों में लेटेक्स पाया जाता    है । इसमें कुछ खास किस्म के एल्केलॉइड्स होते हैं । असल में ये कीट कुल, वंश और प्रजातियों के अनुसार पौधे नहीं ढूंढते हैं । वे तो ऐसी पत्तियों को खोजते हैं जिनका रासायनिक प्रोफाइल उनकी सर्च इमेज में फिट है । यह प्रोफाइल संकीर्ण हो सकता है, जैसे मोनोफेगस कीटों में या विस्तृत हो सकता है जैसे ओलिगोफे गस कीटों में । उदाहरण के तौर पर इंडियन कैबेज व्हाइट तितली ब्रेसीकेसी कुल के सभी पौधो को जानती है और इसकी मादा इनकी पत्तियोंपर अंडे देती हैं । 
यह सच है इनके पास हमारी तरह उन्नत तकनीक से लैस प्रयोगशालाएं नहीं होती । मगर इनके पास बड़ी-बड़ी संयुक्त आंखें और स्पर्श व रसायनों के प्रति संवेदी अंग तो हैं जो उनके मैमोरी कार्ड में दर्ज है । अत: वे पत्ती-पहेली को बूझ लेते हैं । पत्ती पर बैठते ही उन्हें पता चल जाता है कि वह अपने काम की है या नहीं । यानी रासायनिक पहचान ही सही पहचान है गर याद रहे । 

कोई टिप्पणी नहीं: