गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

हमारा भूमण्डल 
निवेश संधियों से बढ़ते जोखिम 
केविन पी गाल्लाधेर
उभरती और विकासशील देशों को अर्थव्यवस्था को अपने अधीनस्थ रखने की कवायद में महाकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मिली सफलता से अभिभूत हो अमेरिका टीटीआईपी के माध्यम से अब युरोपीय एवं विकसित देशों की सरकारों को अपनी कंपनियों के अधीन लाने का प्रयास कर रहा है । जर्मनी ने इस चालबाजी को समझ कर विरोध करना प्रारंभ कर दिया   है । 
जर्मनी एवं यूरोप के बाकी देशों ने अमेरिका के साथ ट्रांस अटलांटिक व्यापार एवं निवेश भागीदारी (टीटीआईपी) के अन्तर्गत बड़े पैमाने पर व्यापार एवं निवेश समझौतो पर बातचीत के दौरान इस पर हस्ताक्षर करने पर यह कहते हुए सवाल उठाए हैंकि उनकी सरकारंे किन आधारों पर निजी निवेशकों को यह अनुमति दे दें जिससे कि नए नियमन के तहत उन्हें अपनी आर्थिक समृद्धता को प्रोत्साहित करने के  लिए संबंधित सरकारों पर मुकदमा दायर करने की अनुमति मिल    जाए । वैसे उभरते हुए बाजारों एवं विकासशील देशों के लिए यह समाचार पुराना हो चुका है क्योंकि वे अपने नागरिकों के विकास के  लिए मानव अधिकार नीतियों एवं पर्यावरण संरक्षण के मसले पर अपनी सरकारों के विरुद्ध कारपोरेट जगत की कानूनी मार पहले ही झेल चुके  हैं। एक ओर युरोप इसमें निहित कमियों के चलते अमेरिका के साथ इस सौदे की लागत एवं लाभों पर विचार कर रहा है तो दूसरी ओर इस दिशा में पहल करने वाले दक्षिण अफीका एवं इक्वाडोर जैसे देश इस मामले मंंे सन्तुलित रहने का पाठ  पढ़ा रहे हैं। 
दक्षिण अफीका और इक्वाडोर दोनों में पूर्व में अति दक्षिणपंथी सरकारें रहीं हैंजो कि विदेश केद्रित कुलीनतंत्र के पक्ष में  थीं । इस शताब्दी की शुरुआत में दोनों ही देशो में इन सरकारों का तख्तापलट हो गया और ऐसी सरकारों की स्थापना हो गई जो कि विगत में व्याप्त असमानताओं को दूर करने के साथ अपने-अपने देश को व्यापक आधार केद्रित समानतावादी समृद्धि की ओर ले जाने को तत्पर थीं । लेकिन इनके साथियों को अब इस बात की चिंता सता रही है कि दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर में नई सरकारों के पदग्रहण कर लेने के  पश्चात कहीं ये सरकारेंविश्व के े निवेशकर्ताओं यानि ''दक्षिणपंथियों'' को यह संकेत न भेज दें कि उनके लिए व्यापार के द्वार खुले हैं । इससे नांव के मझधार में डूबने का खतरा बढ़ जाएगा । 
दोनों देशों के समक्ष रहस्योद्घाटन हुआ है कि उन्होने ऐसी संधियो पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिनके अंतर्गत इस बात की अनुमति मिली हुई है कि उन्हें गुप्त ट्रिब्युनलों के समक्ष जवाबदेह ठहराया जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप जिस समाज को वे उसका न्यायोचित हक दिलवाना चाहते है उसकी नींव ही दरक जाएगी । पिछले कुछ दशकों के दौरान यदि विकासशील देशों ने अमेरिका या किसी युरोपीय देश के  साथ संधि पर हस्ताक्षर किए हैंतो वह अत्यधिक सूक्ष्म निरीक्षण में है । दूसरी ओर यदि यह देश महज विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं, तो वहां पर केवल एक राष्ट्र ही दूसरे राष्ट्र के खिलाफ मामला दायर कर सकता  है । परन्तु विकासशील देशों के साथ अक्सर ऐसे समझौते नहीं होते और निजी कंपनियों को सीधे सरकार पर मुकदमा दायर करने की अनुमति होती है । 
दक्षिण अफ्रीका में विदेशी निवेशकों को आकर्षक खनिज क्षेत्र को लेकर सरकार के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए अधिक समानता वाली धारा में कुछ कमियां पकड़ में आई । दक्षिण अफ्रीका में अब आवश्यकहै कि ऐसी कंपनियों का आंशिक स्वामित्व ''ऐतिहासिक रूप से लाभ से वंचित व्यक्तियों`` के पास हो । इक्वाडोर में विदेशी निवेशकों ने उन नए पर्यावरणीय नियमों के आधार पर देश पर हमला बोला जिसके अन्तर्गत विदेशी फर्मों को अपने कार्य ठीक से करने के  लिए बाध्य किया गया था । यह नियम है कि उन स्थानीय एवं देश समुदायों के साथ मिलकर कार्य करना जिनका लंबे समय से शोषण किया जा रहा था ।
विदेशी फर्मों द्वारा अश्वेतों के सशक्तिकरण संबंधित कानून पर हमला किए जाने के पश्चात, दक्षिण अफीका की सरकार ने एक प्रक्र्रिया प्रारंभ की है। इसके अंतर्गत सभी भागीदार प्रत्येक द्विपक्षीय निवेश संधियों की समीक्षा करेंगे । सरकार का यह निष्कर्ष था कि ये संधियां उस नए संविधान के तारतम्य में नहीं हैं जिसका कि लक्ष्य है मानव अधिकारों की पुर्नस्थापना एवं दक्षिण अफ्रीका नागरिकों के लिए रोजगार के  अवसरो में बढ़ोत्तरी करना । समीक्षा में पाया गया कि द्विपक्षीय निवेश नीतियां संवैधानिक रूपांतरण के  एजेंडे को लागू करने की राह में सरकार की क्षमता के सामने जोखिम एवं सीमाएं प्रस्तुत कर रही हैं। 
समीक्षा के पश्चात दक्षिण अफ्रीका की सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि द्विपक्षीय निवेश नीतियां अब बेकार हो चुकी हैंऔर जनहित में नीतियां बनाने की दिशा में जोखिम बढ़ाती जा रही हैं। इस आधार पर सरकार ने हाल ही में अनेक द्विपक्षीय निवेश नीतियों को रद्द करने की दिशा में कदम उठाया है। दक्षिण अफ्रीका अभी भी विदेशी पंूजी के जाल में फसा हुआ है । वह अत्यन्त सावधानीपूर्वक इन संधियों से अपने को अलग करते हुए पुन: नए समझौते के लिए भी तैयार है । 
आक्सीडेंटल एवं अन्य कंपनियां इक्वाडोर के नए संविधान से टकराहट पर हैंजिसके अन्तर्गत वह अतीत की असमानताओं को दूर करना चाहता हैंएवं अपने देश निवासियों के साथ बेहतर व्यवहार करते हुए अपनी समृद्ध परिस्थितिकी का संरक्षण करना चाहता है ।
यह दोनो ही देश अत्यन्त सुद्धढ़ नैतिक एवं आर्थिक आधार पर खड़े हैं। दोनो ही देशों में ऐसी सत्ता रही है जिसने कटु अतियों एवं अन्यायमूलक असमानता के बल पर शासन किया था । दूसरा यह कि इन व्यापार एवं निवेश नीतियों ने वह लाभ नहीं पहुंचाए जिनका कि उन्होने वायदा किया था । इस तरह की संधियां दावा करती हैंकि इनके माध्यम से अधिक मात्रा में विदेशी निवेश आएगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी । जबकि अधिकांश आर्थिक विश्लेषकांे का मत है कि इस तरह की संधियों से वैसे तो विदेशी निवेश आता ही नहीं है और यदि आता भी है तो यह आवश्यक नहीं है कि आर्थिक वृद्धि से तालमेल बैठ पाए । 
ब्राजील एक ऐसा देश है जिसने इन संधियों पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है लेेकिन इसके बावजूद वहां विकासशील देशों में दूसरा सर्वाधिक विदेशी निवेश हुआ  है । संयुक्त राष्ट्र की व्यापार एवं विकास सम्मेलन की नवीनतम रिपोर्ट ने यह स्थापित कर दिया है कि निवेश संधियां विदेशी निवेश आकर्षित करने मे बहुत मददगार साबित नहीं हुई हैं। इसके अतिरिक्त पीटरसन इंस्टिट्यूट फॉर इंटर नेशनल लईकॉनामिक्स के नए शोध में यह सुनिश्चित किया है कि यदि विदेशी निवेश किसी देश मंे आया भी हो तो यह आवश्यक नही कि वह आर्थिक वृद्धि में सहायक होेगा । 
वस्तु स्थिति यह है कि अनेक मामलों मे विदेशी फर्मो ने ऐसे व्यापार में धन लगाया जिससे स्थानीय लोगोंे का रोजगार छिन गया और उसका नकारात्मक प्रभाव    पड़ा । दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर दोनो के द्वारा इन नीतियों का पुर्नमुल्यांकन किए जाने के बावजूद उनकी स्थिति मजबूत बनी रही हैंठीक ऐसा ही जर्मनी एवं अन्य यूरोपीय देशों के साथ भी होगा । हाल के वर्षों में इक्वाडोर की '' क्रेडिट रेंटिंग'' में जबरदस्त सुधार हुआ है । 
वैश्विक आर्थिक प्रशासन और वैश्विक पंूजी बाजारों ने भी यह महसूस करना शुरु कर दिया है कि राष्ट्रीय सरकारो के ऊपर निजी पूंजी को वरीयता देने से लाभ के बजाए राजनीतिक व आर्थिक संकट अधिक पैदा होंगे । जर्मनी और यूरोप के उसके जोड़ीदार देशों को चाहिए कि इस दिशा में पहल करें और यह सुनिश्चित कराएं कि टीटीआईपी केवल बाजार पूंजीवांद एवं और अपने नागरिकांे के कल्याण की दिशा में  ही कार्य करे । 

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