ज्ञान विज्ञान
ऑस्टियो आर्थ्राइटिस का नया इलाज
ब्रिटेन मेें शोधकर्ताआें ने एक नया माइक्रोकैप्सूल विकसित किया है, जो ऑस्टियो आर्थ्राइटिस के कारण उपस्थियों (कार्टिलेज) में होने वाली सूजन को कम कर सकता है और क्षतिग्रस्त ऊत्तकों का पुननिर्माण कर सकता है । इस शोध को लंदन के क्वीन मेरी विवि में भारतीय मूल की शोधकर्ता टीना चौधरी और उनके दल ने अजांम दिया है । सुश्री चौधरी ने बताया कि इस विधि का इस्तेमाल मरीजों के इलाज में किया गया, तो यह ऑस्टियो आर्थ्राइटिस की प्रक्रिया को बहुत हद तक धीमा कर सकता है और यहां तक कि क्षतिग्रस्त ऊत्तकों का भी पुननिर्माण कर सकता है । एक प्रोटीन अणु जिसे सी-टाइप न्यूट्रिरेरिटक पेप्टाइड कहा जाता है, मानव शरीर में स्वाभाविक तौर पर पाया जाता है । यह सृजन को कम करने तथा क्षतिग्रस्त ऊत्तकों की मरम्मत करने वाले प्रोटीन के तौर पर जाना जाता है ।
सीएनपी का इस्तेमाल इलाज में नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बेहद आसानी से टूट जाता है और लक्षित जगह तक नहीं पहुंच पाता । शोधकर्ताआें की टीम ने छोटे कैप्सूल का विकास किया, जिसमें कई स्तर होते है और इन स्तरों के भीतर सीएपी होता है, जो धीर-धीरे प्रोटीन का रिसाव करता है और प्रभावी तरीके से उपचार करने में सक्षम होता है । शोध में पाया गया कि विकसीत माइक्रोकैप्सूल सीएनपी को प्रभावी तरीके से शरीर के रोगग्रस्त क्षेत्र में भेजता है । वर्तमान में सीएनपी का इस्तेमाल सिर्फ अस्थि रोगों और ह्दय संबंधी रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है । सुश्री चौधरी ने कहा कि हम माइक्रोकैप्सल से इंजेक्शन तैयार कर सके, तो इसका मतलब होगा कि यह तकनीक बेहद कम कीमत पर अस्पताल या घर पर मरीजों के उपचार के लिए मुहैया हो सकेगी ।
अनुमान से कहींधीमा दौड़ता है चीता
अब तक यह माना जाता है कि चीता धरती पर दौड़ने वाला सबसे तेज वन्यजीव है और इसकी रफ्तार ७०-७५ मील/घंटा (११२-१२० कि.मी./घंटा) तक होती है । लेकिन नए दावे के मुताबिक, यह उतना तेज नहीं दौड़ता जितना उसके बारे में माना जाता है । शोध बताता है कि चीता ५८ मील/घंटे (९३ किमी/घंटा) की अधिकतम रफ्तार से ही दौड़ पाता है ।
साइंस नेचर क्यूरियोसिटीज की नई श्रृंखला तैयार कर रहे जाने-माने वैज्ञानी सर डेविड एटेनबरो ने विभिन्न चरणों का अध्ययन किया और पाया कि बीती आधी शताब्दी से चीते रफ्तार का आंकलन बढ़ा-चढ़ाकर किया जा रहा है । श्री एटेनबरो के मुताबिक, चीते का ७०-७५ मील/घंटे की गति से दौड़ना एक विचार मात्र है, इसकी वास्तविक गति अब तक ५८ मील/घंटे से ऊपर नहीं पहुंच पाई है । उन्होनें दावा करते हुए कि चीता अब तक की मान्यता के मुताबिक धरती पर सबसे तेज भागने वाला जानवर है । शोधार्थियों ने यह दावा अलग-अलग जगहों से चीते की भागने की गति पर संकलित किए गए ३६७ आंकड़ों के आधार पर किया है ।
कुपोषण से हर साल मर रहे १० लाख बच्च्े
विश्व में सबसे तेजी से प्रगति करने का दम भरने वाले देश में जब ५ साल से कम उम्र के करीब १० लाख बच्च्े हर साल कुपोषण के कारण मर रहे हो तो चिंता होना लाजिमी है । युनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुपोषण की स्थिति और भी अधिक विकराल होती जा रही है । इतना ही नहीं कुपोषण के मामले में भारत दक्षिण एशिया का अग्रणी देश बन गया है ।
राजस्थान के बारन और मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में सर्वे से पता चला है कि कुपोषण के कारण बच्च्े ऐसी मौत का शिकार होते है, जिसको रोका जा सकता है । सामाजिक कार्यकर्ताआें ने कुपोषण को चिकित्सकीय इमरजेंसी घोषित किए जाने की मांग की है ।
एसीएफ इंडिया और फाइट हंगर फाउंडेशन ने जेनरेशनल न्यूट्रिशनल प्रोग्राम के लॉन्च की घोषणा की । प्रोग्राम के बारे में बात करते हुए एसीएफ इंडिया के डिप्टी कंट्री डायरेक्टर राजीव टंडन ने कहा कि कुपोषण की समस्या को हल करने के लिए पॉलिसी बनाने एवं इसके क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त् बजट की आवश्यकता पर भी जोर दिया ।
एसीएफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अनुसूचित जनजाति (२८ फीसदी), अनुसूचित जाति (२१ फीसदी), अन्य पिछड़ा वर्ग (२० फीसदी) और ग्रामीण समुदायों (२१ फीसदी) में कुपोषण के सर्वाधिक मामले पाए जाते हैं । फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) का तीसरी रिपोर्ट के अनुसार, ४० प्रतिशत बच्च्े ग्रोथ की समस्या के शिकार है, ६० फीसदी बच्च्े कम वजन का शिकार है ।
खतरनाक हो सकते हैंब्लड प्रेशर ऐप्स
आजकल स्मार्ट फोन पर तरह-तरह के ऐप्स प्रकट हो रहे है । इनमें से एक ब्लड प्रेशर नापने का दावा करता है । अलबत्ता हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि ब्लड प्रेशर नापने के ये ऐप्स अनजांचे हैं, त्रुटिपूर्ण परिणाम देते है और खतरनाक हो सकते हैं ।
मैसाचुसेट्स स्थित कैम्ब्रिज हेल्थकेयर एलायंस के चिकित्सक डॉ. निलय कुमार और उनकी टीम ने १०७ ऐसे ऐप्स का विश्लेषण किया, जो उक्त रक्तचाप के लिए बनाए गए हैं । ये सारे गूगल प्ले स्टोर तथा एपल आई ट्यून्स से डाउनलोड किए जा सकते हैं । शोधकर्ताआें को ७ एण्ड्रॉइड ऐप्स मिले जिनमें दावा किया गया था कि आपको सिर्फ इतना करना है कि अपनी उंगलियों को फोन के स्क्रीन या कैमरा पर दबाकर रखें और वह आपका ब्लड प्रेशर बता देगा । शोधकर्ताआें के मुताबिक ये दावे बोगस है ।
श्री कुमार व उनकी टीम को यह देखकर हैरत हुई कि स्मार्टफोन आधारित ब्लड प्रेशर मापी ऐप्स अत्यन्त लोकप्रिय हो चले हैं । इन्हें कम से कम २४ लाख बार डाउनलोड किया गया है । श्री कुमार को यह स्पष्ट नहीं था कि यह टेक्नॉ-लॉजी ठीक-ठीक किस तरह काम करती है । संभवत: फोन का कैमरा उंगली की नब्ज को पढ़ता होगा । मगर वे इतना जानते हैं कि यह टेक्नॉलॉजी अभी अनुसंधान व विकास के चरण में है और उपयोग के लिए तैयार नहीं है । बहुत संभावना इस बात की है कि यह आपको गलत ब्लड प्रेशर बताएगी और आप बेकार में परेशान होते रहेंगे । उससे भी ज्यादा परेशानी तो तब हो सकती है जब यह अनपरखी टेक्नॉलॉजी आपको बताती रहेगी कि सब कुछ ठीक-ठाक है जबकि हो सकता है कि आपको डॉक्टरी मदद की जरूरत हो ।
जर्नल ऑफ दी अमेरिकन सोसायटी ऑफ हायपरटेंशन में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि आज काफी सारे लोग अपने मेडिकल आंकड़े प्राप्त् करने के लिए मोबाइल ऐप्स का उपयोग कर रहे हैं । कम से कम ७२ प्रतिशत ऐप्स व्यक्ति को अपनी मेडिकल जानकारी हासिल करने की गुंजाइश प्रदान करते हैं ।
कई ऐप्स में तो यहां तक व्यवस्था है कि यह जानकारी सीधे आपके डॉक्टर के पास पहुंच जाएगी। इसके अलावा कुछ ऐप्स में दवाई लेने वगैरह को याद दिलाने की व्यवस्था भी है । मगर इन ऐप्स में मात्र २.८ प्रतिशत का विकास ही किसी स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा किया गया है । यूएस खाद्य व औषधि प्रशासन ने ब्लड प्रेशर नापने के एक भी ऐप्स को अनुमति नहीं दी है । लिहाजा अध्ययन का निष्कर्ष है कि ये ऐप्स मरीजों की सुरक्षा संबंधी चिंता को बढ़ा रहे हैं ।
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